बहस भ्र्ष्टाचार पर वो कर रहे थे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
बहस भ्रष्टाचार पर वो कर रहे थेजो दयानतदार थे वो डर रहे थे।
बाढ़ पर काबू पे थी अब वारताएं
डूब कर जब लोग उस में मर रहे थे।
पी रहे हैं अब ज़रा थक कर जो दिन भर
मय पे पाबंदी की बातें कर रहे थे।
खुद ही बन बैठे वो अपने जांचकर्ता
रिश्वतें लेकर जो जेबें भर रहे थे।
वो सभाएं शोक की करते हैं ,जो कल
कातिलों से मिल के साज़िश कर रहे थे।
भाईचारे का मिला इनाम उनको
बीज नफरत के जो रोपित कर रहे थे।
👍👌 बाढ़ पर काबू पे थी वार्ताऐं👍
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