अगस्त 12, 2012

POST : 39 हमको जीने की दुआ देने लगे (ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हमको जीने की दुआ देने लगे (ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हमको जीने की दुआ देने लगे
आप ये कैसी सज़ा देने लगे ।

दर्द दुनिया को दिखाये थे कभी
दर्द बढ़ने की दवा देने लगे ।

लोग आये थे बुझाने को मगर
आग को फिर हैं हवा देने लगे ।

अब नहीं उनसे रहा कोई गिला
अब सितम उनके मज़ा देने लगे ।

साथ रहते थे मगर देखा नहीं
दूर से अब हैं सदा देने लगे ।

प्यार का कोई सबक आता नहीं
बेवफा को हैं वफ़ा देने लगे ।

कल तलक मुझ से सभी अनजान थे
अब मुझे मेरा पता देने लगे ।

मांगता था मौत "तनहा" रात दिन
जब लगा जीने , कज़ा देने लगे । 
 

 

1 टिप्पणी: