अगस्त 12, 2012

POST : 38 ग़म से इतनी मुहब्बत नहीं करते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ग़म से इतनी मुहब्बत नहीं करते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ग़म से इतनी मुहब्बत नहीं करते
खुद से ऐसे अदावत नहीं करते ।

ज़ुल्म की इन्तिहा हो गई लेकिन
लोग फिर भी बगावत नहीं करते ।

इस कदर भा गया है कफस हमको
अब रिहाई की हसरत नहीं करते ।

हम भरोसा करें किस तरह उन पर
जो किसी से भी उल्फत नहीं करते ।

आप हंस हंस के गैरों से मिलते हैं
हम कभी ये शिकायत नहीं करते ।

पांव जिनके  ज़मीं  पर हैं मत समझो
चाँद छूने की चाहत नहीं करते ।

तुम खुदा हो तुम्हारी खुदाई है
हम तुम्हारी इबादत नहीं करते ।

पास कुछ भी नहीं अब बचा "तनहा"
लोग ऐसी वसीयत नहीं करते । 
 

 

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