दिसंबर 17, 2024

POST : 1929 गरीब की गरीबी सत्ता की चाबी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

      गरीब की गरीबी सत्ता की चाबी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

गरीबी गरीबों के लिए अभिशाप है लेकिन राजनेताओं धर्म उपदेशकों से लेकर धनवान साहूकार लोगों के लिए गरीबों की गरीबी किसी वरदान से कम नहीं है । कभी गरीबों की गरीबी ख़त्म हो गई तो इन सभी का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है इसलिए ये संगठित हैं इस विषय पर कि गरीबी को बढ़ाते जाना है कभी खत्म नहीं होने देना है । संसद में 75 साल बाद चर्चा हुई तब भी सभी एकमत थे कि देश में बढ़ती गई भूख गरीबी कोई अनहोनी बात नहीं है चिंता उनकी नहीं करनी है कोशिश करनी है कि नेताओं अधिकारियों सरकारी कर्मचारियों से लेकर तमाम धनवान रईस लोगों कारोबार उद्योग चलाने वालों नाम शोहरत वाले अभिजात्य वर्ग खिलाड़ी अभिनेता टीवी वालों अख़बार वालों को शासन और सत्ता का चाटुकार बनाने को तरह तरह से कुछ रेवड़ियां बांटते रहना है । उन सभी को सच और ईमानदारी की खोखली बातें करनी हैं उन को समझना नहीं कभी गलती से उन पर चलना नहीं है । जब तक लोग अधिकांश नागरिक भूखे नंगे बेघर हैं तब तक उनका साम्राज्य और रुतबा कायम रह सकता है अगर किसी दिन उनकी दरिद्रता का अंत हुआ तो ख़ास लोगों की दुनिया का जो हाल होगा कोई कल्पना नहीं कर सकता । 
 
संविधान सभी को समानता के अधिकार देता है लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है क्योंकि सत्ता और दौलत जिनकी बांदी है उनको ऐसा कभी होने नहीं देना है ।लोकतांत्रिक प्रणाली में सत्ता की चाबी गरीब की गरीबी पर निर्भर करती है । 75 साल में सभी दलों की सरकारों ने यही किया है कि निम्न वर्ग शोषित वर्ग दबे कुचले लोगों को कभी भी बदहाली से निकलने नहीं देना तभी उनकी संख्या आज़ादी के बाद बढ़ती गई है और अमीरी गरीबी में जो खाई है उसे भी और गहरा बड़ा किया गया है सभी सरकारों ने और ख़ास कहलाने वाले लोगों के समाज ने ।  हमारे देश में ही नहीं बल्कि अब तो दुनिया के तमाम देश सहमत हैं कि भूख गरीबी पर भाषण देने हैं उनके नाम की संस्थाएं संघठन और कितनी योजनाएं घोषित करनी हैं लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात होना है । कथनी को सच नहीं होने देना कहना कुछ करना विपरीत है ।  

     हमारा देश समाज इक पुरातन परंपरा का कायल है जिस में धनवान होने का अर्थ ही मतलबी होकर जो कोई सहारा दे उसी को गिराना है । पैसा इंसान से इंसानियत शराफ़त छीन कर बेरहम और संवेदनहीन बना देता है धनवान को पैसे को भगवान से अधिक महत्व देना सिखाता है । कहानियों कथाओं में आदमी को भला और परोपकारी तभी तक बताया जाता है जब तक दुःखी है परेशान है मगर जैसे ही साधन सम्पन्न होते हैं स्वार्थी बनते जाते हैं । उपदेशक भाषणवीर नेता अधिकारी अभिनेता इत्यादि कभी किसी गरीब की भलाई नहीं करते बल्कि खुद अमीर बनते उनसे दूरी बना खास लोगों से करीबी नाता कायम कर और भी धन दौलत ताकत शोहरत की कामना करते हैं । समाज में अच्छाई और इंसानियत का सारा बोझ गरीबों को उठाना होता है उनको परंपराओं रिवाज़ों कुरीतियों को निभाना है । गरीब की गरीबी बड़े और ऊंचे पायदान पर खड़े सभी ख़ास लोगों के लिए सुरक्षाकवच है हमको अपने देश की गरीबी पर शर्मिंदा नहीं होना है बल्कि महान कहना है । 
 
सरकार शान से घोषित करती है कि 80 करोड़ को खाने को अनाज बांटती है लेकिन कभी नहीं बताती है कि खुद उस से कितने लाख गुणा ये लोग खज़ाने से अपना अधिकार मानकर छीनते रहते हैं । अगर ये इतना धन देश की अर्थव्यवस्था से अपने खुद को आबंटित नहीं करते तो देश में कोई गरीब भूखा बेघर नहीं होता ।
गरीबों को न्याय तो क्या शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का भी अधिकार नहीं है उसे सिर्फ खैरात मिलती है अधिकार कभी नहीं ।  गरीब जनता को समझाया गया है कि यही पहचान है इसी से तुम्हारा नाम है अपनी पहचान को हमेशा ही कायम रखना है , किसी ने गरीब महिला की वास्तविक सुंदरता का बख़ान कर उसे रानी बनाकर सिंहासन पर बिठाया । फिल्म टीवी वालों ने गरीबी की फ़टी हुई कमीज़ चोली पर इतना कैमरा रखे रखा कि देखने वालों को गरीबी शानदार लगने लगी । आजकल अमीरी भी आधा बदन नंगा रख कर आधुनिकता की दौड़ में सोचती है बाज़ार में बिकना सबसे ज़रूरी है उनकी क्या ग़ज़ब मज़बूरी है । सरकार नेताओं ने कभी इस की चर्चा नहीं की कि उनकी अमीरी शान ठाठ बाठ और धन वैभव का कितना अंबार कैसे जमा हुआ है । गरीब लोग गरीब होने का प्रमाण देते हैं लेकिन बहुत धनवान भी खुद को गरीब साबित करना चाहते है उनकी गरीब कहलाना असीम सुःख देता है ।
 
 चिंता : गरीबी का दुश्चक्र | Jansatta
 
 
 
 
 

1 टिप्पणी:

  1. उम्दा आलेख....गरीबी सत्ता तक पहुंचने का रास्ता है कोई भी इसे खत्म नही करना चाहता

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