पचहत्तर साल का बाबा ( तीर ए नज़र ) डॉ लोक सेतिया
सालों की गिनती का क्या महत्व है किताब की बात हो तो जो लिखा गया वही होता है पढ़ना हो अगर मगर उनको संविधान की किताब से कोई सबक नहीं सीखना उस में समझाई बातों पर अमल नहीं करना सिर्फ उसका लाभ उठाना है सत्ता मिलती है उसी का करिश्मा है । अचानक किसी को लगा कितने साल से उस की चर्चा करने की ज़रूरत नहीं महसूस हुई अब जब राजनीति की नैया डोलने लगी हिचकोले खाने लगी सत्ता की डोली घबराने लगी सियासत अपना ढंग दिखाने लगी किसी चौखट पर सर झुकाने लगी । हमको बचपन की बात याद आई बाबा जी कहते थे सभी परिवार रिश्तेदार गांव शहर वाले , जीवन भर बड़ी मेहनत से कमाई की कितना कुछ बनाया । पुराने बज़ुर्ग बड़े सीधे सादे भोले हुआ करते थे जिस ने हाथ जोड़ जो भी मांगा बिना सोचे दे देते हर कोई सहायता मांगने चला आता । बूढ़े हुए तो घर की बैठक या ड्योढ़ी में चौखट पर बैठे कभी विश्राम करते आदत थी छोटे बड़े से आदर से प्यार से बात करते तो किसी को कोई परेशानी नहीं थी । इक घटना वास्तविक है हम बच्चे सभी भाई चुपचाप ख़ामोशी से रात को छोटे दरवाज़े से सिनेमा देखने चले गए बिना अनुमति बिना बतलाए । चतुराई की थी बैठक का दरवाज़ा भीतर से खुला छोड़ बाहर से सांकल लगा आये थे । फिल्म देख वापस आने पर बैठक का दरवाज़ा खोला तो सामने बाबा जी हाथ में उनकी इक खूंडी हमेशा रहती थी , सभी घबरा गए लेकिन बाबा जी ने कोई शब्द नहीं बोला न कुछ भी सज़ा ही दी । लेकिन कुछ था उनकी नज़रों में जो हमको हमेशा याद रहा । बाबा जी कहते थे तुम लोग चाहे जहां भी जाओ कुछ भी खादी का साधरण कपड़ा पहन रखा हो तुम्हारी पहचान मेरे पोते हो हमेशा रहेगी । बाबा जी का निधन पचास साल पहले हुआ तो हमको शायद ही समझ आया हो हमने कितना शानदार रिश्ता खो दिया है ।
मुझे ये कहने और स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि हमारे सैंकड़ों लोगों के बड़े परिवार में उन जैसा कभी कोई नहीं बन पाया । उनके विचार उनकी सभी को अपना बनाने भरोसा करने की आदत किसी में नहीं है निस्वार्थ और ईमानदारी से आचरण करना और कभी किसी से नहीं डरना खराब हालात का डटकर सामना करना इक ऐसा किरदार था जिस में कोई अहंकार कभी नहीं दिखाई दिया , कोई बड़ा छोटा नहीं सभी बराबर थे उनके लिए । संविधान की किताब का उन से कोई मतलब नहीं है लेकिन खुद अनपढ़ होने के बाद भी हमको पढ़ना लिखना उन्हीं ने सिखाया था । मुझसे हमेशा धार्मिक किताबें पढ़ कर सुनाने को कहते और मैं कभी इनकार नहीं करता था बाकी भाई बहाना बना बचते थे । आज लगा ये जितने लोग संविधान की वर्षगांठ मनाने का आयोजन उत्स्व मना रहे हैं क्या पढ़ते हैं किताब को समझते हैं अनुपालना करते हैं । शायद लोग भगवान धार्मिक कथाओं को भी पढ़ते समझते नहीं बस उनको अलमारी में या किसी जगह सजावट की तरह रख कर सर झुकाते हैं । विडंबना इस बात की है कि सर भी झुकाते हैं तो किसी स्वार्थ की खातिर कुछ चाहते हैं या फिर किसी डर से या गलती की क्षमा मांगने के लिए । आजकल बड़े बज़ुर्गों की तस्वीरें बनवा दीवार पर टंगवाने और फूलमाला चढ़ाने का चलन है , हम लोगों ने बाबा जी की कोई तस्वीर नहीं बनवाई , किसी ने नहीं लगवाई मरे पर पासपोर्ट साइज़ की अलबम में अवश्य सुरक्षित है ।
किताब से आवाज़ आती सुनाई दे रही है , बेबस लाचार बना दिया है मुझे इन्हीं लोगों ने जो भाषण में मुझे कितना महान बतला रहे हैं । वास्तव में मुझे अपने मतलब की खातिर दरवाज़े पर बिठाया हुआ है क्योंकि मेरा शरीर देखने में बड़ा बलशाली लगता है कोई चोर लुटेरा घर में प्रवेश करते घबराएगा । असल में मुझसे हिला भी नहीं जाता और रात भर जागता रहता हूं कितनी चिंताएं हैं मेरी भावनाओं की परवाह किसी को नहीं है ।
बढ़िया आलेख आज जो संविधान पर दिखावा हो रहा है बखूबी बात की है। साथ ही संस्मरण से और जीवंत हो गया है लेख
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