अक्टूबर 18, 2024

POST : 1911 आडंबर शानो - शौकत पर पैसे की बर्बादी ( विमर्श ) डॉ लोक सेतिया

 आडंबर शानो - शौकत पर पैसे की बर्बादी ( विमर्श ) डॉ लोक सेतिया 

लगता है अब तो किसी को सरकारी धन संसाधनों की बर्बादी की कोई चिंता ही नहीं है सुरसा के मुंह की तरह थमने का नाम नहीं लेते सरकार के बढ़ते हुए खर्चे जिनका मकसद सामाजिक सरोकार नहीं शासकों का अपनी शोहरत का ढिंढोरा पीटना है । लोकतंत्र में चुनाव जीतना सत्ता हासिल करना वास्तव में जनता की अपेक्षाओं आकांक्षाओं पर खरा साबित होने का दायित्व उठाना है शपथ ग्रहण करने का अभिप्राय कोई जश्न मनाना नहीं होना चाहिए । लेकिन राजनेताओं को जश्न मनाने का अवसर लगता है क्योंकि शायद किसी को जनता समाज की समस्याओं बुनियादी ज़रूरतों और सामन्य लोगों का जीवन स्तर बेहतर करने की चिंता नहीं सत्ता के अधिकारों का मनमाना उपयोग करने की छूट मिलना लगता है । हरियाणा में नवनिर्वाचित सरकार का शपथ ग्रहण समारोह भव्यता और शानो - शौकत की मिसाल था जिस में पचास हज़ार लोगों के लिए पंडाल एवं अन्य कितने ही संसाधन सुविधाओं का प्रबंध किया गया जिस पर समाचार है पचीस करोड़ रूपये खर्च किए जाने का । आप सोचते रहें नेताओं को मिलने वाले अनगिनत लाभ सुविधाओं और संसद बनने के बाद या विधायक बन चुकने उपरांत मिलनी वाली कितनी पेंशन के औचित्य पर यहां अभी शुरुआत है और आगे पांच साल तक जनकल्याण नहीं शासकों की अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति पर पैसा इसी तरह पानी की बहाया जाएगा ।    
 
लोकलाज की बात कौन करे आजकल सत्ता पर आसीन है शख़्स खुद को शाहंशाह समझता है और जनता का धन मनचाहे तरीके से गुलछर्रे उड़ाने पर खर्च करता है । अभी समाचार पढ़ा साहित्य अकादमी के पुरूस्कार हरियाणा से बाहर कितने राज्यों के लेखकों को देने का ऐलान किया गया है । सत्ता मिलते ही नियम कायदे छोड़ अपनों को रेवड़ियां बांटते हैं सभी हमने तो ये भी देखा है कोई लेखक नहीं बल्कि प्रकाशक साहित्य अकादमी का निर्देशक बनाया गया । जानकारी तलाश की तो पता चला 2014 में मोदी जी के शपथ ग्रहण समारोह पर खर्च हुआ था 17.6 करोड़ जिस में चार हज़ार महमान आमंत्रित थे लेकिन जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के शपथ ग्रहण पर उस से अधिक पैसे खर्च हुए तब भारतीय जनता पार्टी ने उसकी आलोचना की थी । सवाल केजरीवाल का नहीं है वो भी राजनेताओं में शामिल हैं जिनकी कथनी और करनी अलग अलग होती है ।
 
हमारे समाज में कोई वास्तविक नायक नहीं है गांधी जी शास्त्री जी जैसा जो देश को सादगी से ईमानदारी से जीवन यापन करने की राह दिखाने को खुद अपना आचरण उसी तरह से निभाना ज़रूरी समझे । कितने आयोजन कितने तरह के समारोह पर धार्मिक दिखावे पर पैसा खर्च किया जाता है कुछ पल में करोड़ों रूपये धुंवां बन उड़ जाते हैं जिनका उपयोग दीन दुखियों की सहायता में किया जाता तो शायद बहुत सार्थक प्रयास हो सकता था । नववर्ष या अन्य अवसर पर कुछ लोग जिस संस्था के अध्यक्ष सचिव होते हैं उस संस्था का धन खुद अपने नाम से विज्ञापन प्रचार में करने से संकोच नहीं करते हैं । मेरी मर्ज़ी जैसे खर्च करूं का युग है कभी सुनते थे जब चोरी का माल हो तो बांसों के गज से पैमाईश की जाती है , माल ए मुफ़्त दिल ए बेरहम । अलीबाबा चालीस चोर की आधुनिक कथा यही है खाना खिलाना ही नहीं उड़ाना भी है हसरत अभी बाक़ी है शीशा है प्याला है और साक़ी है , आगाज़ है अंजाम क्या होगा ये झांकी है ।
 
         माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम..... | Quotes & Writings by Mrinal Singh | YourQuote

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