जादूगर का खेल तमाशा ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया
चलो बुलावा आया है , इक आलमपनाह ने दरबार सजाया है ,
जीत का जश्न मना लिया , अब ताजपोशी का दिन आया है ।
आधुनिक ढंग की सियासत ने , ग़ज़ब का ये चलन चलाया है
लोकतंत्र चीथड़े पहने हुए खड़ा , सत्ता को मुकट पहनाया है ।
ये सत्ता की इक बस्ती है जिसमें , महंगी ज़िंदगी मौत सस्ती है ,
अच्छा क्या बुरा क्या छोड़ो अभी , खूब नाचना करनी मस्ती है ।
सबका मज़हब धन दौलत है , शासक बनकर के होती हस्ती है
इंसान नहीं भगवान है राजा , क्या मिसाल की बुत - परस्ती है ।
उस दुनिया के निवासी हैं जिस में , भुखमरी नसीब हमारा है
कोशिश जितनी कर देखी बदलाव की जनमत हमेशा हारा है ।
भाषण की मशाल वादों की शमां का बस खेल उनका सारा है
कुछ भी नहीं नज़र आता , चहुंओर ही फैला हुआ अंधियारा है ।
अब ऐसा हाल है , जूतों में बंटती दाल है , तिरछी टेढ़ी चाल है
गिरगिट सा किरदार , रंग बदल कर कालिख़ बन जाती गुलाल है ।
कानून जिसकी ढाल है , फैली तोंद भी फूले हुए लाल गाल है
हर चेहरा बदला बदला है , आईने ने किया क्या क्या कमाल है ।
जिसका कोई हल नहीं निकलता , गरीबी ऐसा कठिन सवाल है
बेख़बर हक़ीक़त से बड़बोला है , उसका नाम अख़बारी लाल है ।
सोना सस्ता है महंगा पीतल है , राजनीति की खुली टकसाल है
बाढ़ सूखा अकाल भूकंप , राहत सामग्री खा जाता कोई दलाल है ।
सूअर की आंख में किसका बाल , ख़त्म नहीं होती जांच पड़ताल है
करोड़ों के घोटाले होते देश में , नहीं कहना अर्थ व्यवस्था कंगाल है ।
बारिश है आंकड़ों की हां सूखा रहता , जनता का हर इक ताल है
बबूल बोन वाले लोगों को मिलते हैं आम खाने को किया कमाल है ।
महमान बन कर आये थे नेता , खुद मालिक घर से दिया नकाल है
समस्या विकट है गंजे सर कितने बाल , संसद में मचा ये बवाल है ।
हवाओं में ज़हर है घोलता , शिकारी कौन किसका बिछाया जाल है
सत्ता के गलियारों की यही करताल है , जेल नहीं गुंडों की ससुराल है ।
लोकतंत्र से मत पूछो कैसा हुआ उसका हाल है , किस दर्द से बेहाल है
भविष्य क्या बताये कोई भूतकाल से भयानक होता वर्तमान का काल है ।
खेल तमाशा जादूगर का नहीं होता , सच वही जो नज़र सबको आता है
महलों में रहने वाला ताजमहल बनवा , सब गरीबों का मज़ाक उड़ाता है ।
चोर सिपाही भाई भाई , दुल्हन ने सेज सजाई सुनते हैं बजती शहनाई
बड़े बड़े प्यारे सपनों से दिल बहलाता , शासक बना कोई मुंगेरीलाल है ।
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