अक्टूबर 16, 2024

POST : 1910 जादूगर का खेल तमाशा ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   जादूगर का खेल तमाशा ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

चलो बुलावा आया है , इक आलमपनाह ने दरबार सजाया है ,
जीत का जश्न मना लिया , अब ताजपोशी का दिन आया है । 
 
आधुनिक ढंग की सियासत ने , ग़ज़ब का ये चलन चलाया है 
लोकतंत्र चीथड़े पहने हुए खड़ा , सत्ता को मुकट पहनाया है । 
 
ये सत्ता की इक बस्ती है जिसमें , महंगी ज़िंदगी मौत सस्ती है ,
अच्छा क्या बुरा क्या छोड़ो अभी , खूब नाचना करनी मस्ती है ।
 
सबका मज़हब धन दौलत है , शासक बनकर के होती हस्ती है
इंसान नहीं भगवान है राजा , क्या  मिसाल की बुत - परस्ती है ।
 
उस दुनिया के निवासी हैं जिस में , भुखमरी नसीब हमारा है 
कोशिश जितनी कर देखी बदलाव की जनमत हमेशा हारा है । 
 
भाषण की मशाल वादों की शमां का बस खेल उनका सारा है 
कुछ भी नहीं नज़र आता , चहुंओर ही फैला हुआ अंधियारा है ।
 
अब ऐसा हाल है , जूतों में बंटती दाल है , तिरछी टेढ़ी चाल है
गिरगिट सा किरदार , रंग बदल कर कालिख़ बन जाती गुलाल है । 
 
कानून जिसकी ढाल है , फैली तोंद भी फूले हुए लाल गाल है 
हर चेहरा बदला बदला है , आईने ने किया क्या क्या कमाल है । 
 
जिसका कोई हल नहीं निकलता , गरीबी ऐसा कठिन सवाल है 
बेख़बर हक़ीक़त से बड़बोला है  , उसका नाम अख़बारी लाल है ।
 
सोना सस्ता है महंगा पीतल है , राजनीति की खुली टकसाल है
बाढ़ सूखा अकाल भूकंप , राहत सामग्री खा जाता कोई दलाल है । 
 
सूअर की आंख में किसका बाल , ख़त्म नहीं होती जांच पड़ताल है
करोड़ों के घोटाले होते देश में , नहीं कहना अर्थ व्यवस्था कंगाल है । 
 
बारिश है आंकड़ों की हां सूखा रहता , जनता का हर इक ताल है      
बबूल बोन वाले लोगों को मिलते हैं आम खाने को किया कमाल है ।
 
महमान बन कर आये थे नेता , खुद मालिक घर से दिया नकाल है
समस्या विकट है गंजे सर कितने बाल , संसद में मचा ये बवाल है ।  
 
हवाओं में ज़हर है घोलता , शिकारी कौन किसका बिछाया जाल है 
सत्ता के गलियारों की यही करताल है , जेल नहीं गुंडों की ससुराल है ।
 
लोकतंत्र से मत पूछो कैसा हुआ उसका हाल है , किस दर्द से बेहाल है
भविष्य क्या बताये कोई भूतकाल से भयानक होता वर्तमान का काल है ।
 
खेल तमाशा जादूगर का नहीं होता , सच वही जो नज़र सबको आता है
महलों में रहने वाला ताजमहल बनवा , सब गरीबों का मज़ाक उड़ाता है । 
 
चोर सिपाही भाई भाई , दुल्हन ने सेज सजाई सुनते हैं बजती शहनाई 
बड़े बड़े प्यारे सपनों से दिल बहलाता , शासक बना कोई मुंगेरीलाल है ।   


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