जुलाई 09, 2024

POST : 1860 आज हमने छोड़ दिया ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

      आज हमने छोड़ दिया ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

 सभी समझाते हैं और मैं भी मान जाता हूं छोड़ देना है , छोड़ना ही है किसी दिन , चलो आज से छोड़ देता हूं । कुछ ख़ास है भी नहीं मेरे पास जिसे छोड़ने से कुछ बदलेगा , हाथ में इक कलम की तरह स्मार्ट फोन या इक लैपटॉप ही तो रहता है मेज़ पर , किसी को इनकी ज़रूरत नहीं बस लिखना उन सभी को थोड़ा नागवार गुज़रता है । जब भी छोड़ने की तैयारी करता हूं कुछ बात कोई घटना कोई विषय सामने ख़ुद ही चला आता है तब चलो आज कसम तोड़ देते हैं छोड़ने की बात को ही छोड़ देते हैं । इक कहावत है नशा कोई भी हो जाता नहीं है सुबह तौबा करते हैं पीने वाले शाम होते ही आख़िरी बार जाम छलका लेते हैं सोचते सोचते उम्र बीत जाती है । ज़माने वाले कितना कुछ बटोरते रहते हैं जितना भी मिले थोड़ा लगता है रत्ती भर भी हाथ से फिसले कैसे मुमकिन है , लेकिन बड़े लोग बड़ी बड़ी बातें दुनिया को नसीहत देने का लुत्फ़ ही और है । हम क्या हैं लोग दामन बचा कर निकलते हैं हमने किसी का दामन कभी पकड़ा ही नहीं छोड़ना छुड़ाना क्या होता है क्या मालूम । महफ़िल सजाना छोड़ दिया हमने आना जाना रूठना मनाना छोड़ दिया दुनिया को समझना अपने को भी समझाना छोड़ दिया हर अफ़साना छोड़ दिया ज़िंदगी से रिश्ता नाता तोड़ लिया । कश्ती का रुख किनारे से और भी फ़ासला बढ़ाने को उधर मोड़ दिया दिल का किस्सा अनकहा रहने दिया मुंह मोड़ लिया जिस तरफ मुहब्बत बिकती उधर से गुज़रना छोड़ दिया । आज हमने निराशा को छोड़ आशा से रिश्ता जोड़ लिया है । 
 
वो जो मुझे बड़े ही प्यार से दोस्त बनकर समझा रहे थे छोड़ देने को , खुद कितना कुछ पकड़े जकड़े हैं अभी सागर को अपने भीतर भरने को व्याकुल हैं । कारोबार के साथ कितने और खेल खिलवाड़ उन्होंने फैलाए हुए हैं समाज सेवा से लेकर राजनीति का कितना बोझ उठाए हुए हैं । कितने घर बदल कर वापस जहां से चले लौट आये हुए हैं । पिछली बार मिले तो कहने लगे भाड़ में जाएं जो लोग उनको अपना भाग्य विधाता नहीं बनाते नहीं समझना चाहते । इतने प्यासे हैं जैसे खुद से उकताए हुए हैं । बोलते बहुत हैं बोल कर झट से दूर चले जाते हैं हमको लिखने को छोड़ जाते हैं । सौतन की बेटी फ़िल्म से सावन कुमार का लिखा गीत किशोर कुमार की आवाज़ में पढ़ने को प्रस्तुत है ।  लिखना नहीं बोलना भी नहीं कोई बात नहीं सोचने समझने को दुनिया की अजीब बातें सुनने से अच्छा है कुछ दिल को छूने वाले पुराने गीत सुन कर सभी को पढ़ने को दोहराये जाएं सुकून मिलेगा ।
 
कौन सुनेगा ? किसको सुनायें ?
कौन सुनेगा ? किसको सुनायें ?
 इसलिए चुप रहते हैं ,

हमसे अपने, रूठ न जाएँइसलिए चुप रहते हैं । 

मेरी सूरत देखने वालोंमैं भी इक आइना था
 
टूटा जब ये , शीशा ये दिलसावन का महीना था ,
 
टुकड़े दिल के किसको दिखाएँ ?इसलिए चुप रहते हैं
हमसे अपने, रूठ न जाएँइसलिए चुप रहते हैं । 


आज ख़ुशी की , इस महफ़िल मेंअपना जी भर आया है ,

ग़म की कोई बात नहीं हैहमे ख़ुशी ने रुलाया है ,

आँख से आँसू बह ना जाएँइसलिए चुप रहते हैं ,
हमसे अपने रूठ न जाएँइसलिए चुप रहते हैं । 

प्यार के फूल चुने थे हमनेख़ुशी की सेज सजाने को
 
पतजड़ बनकर आई बहांरेंघर में आग लगाने को ,

आग में गम की जल न जाएँ
इसलिए चुप रहते हैं । 

कौन सुनेगा ? किसको सुनायें ?

इसलिए चुप रहते हैं , इसलिए चुप रहते हैं ।


ये भी जैसे कोई अधूरा ख़्वाब था दोस्ती प्यार रिश्तों का सभी का बकाया चुकाना है असल साथ ब्याज भी जोड़कर हिसाब था कि कोई किताब था । उलझन नहीं थी बीत गई सो बात गई शिकवे गिले पुराने सभी छोड़ना ही पड़ता है दिल से दिल जोड़ने को यादों का दर्पण तोड़ना ही पड़ता है । ख़िज़ाओं का मौसम ज़िंदगी भर आस पास रहा है सूखे पत्तों को डाली से तोड़ना नहीं पड़ता ख़ुद ही शाख़ से टूट कर बिखर जाते हैं । यहां लोग मौसम की तरह मिजाज़ बदलते हैं , कभी अंदाज़ कभी अल्फ़ाज़ कभी अपनी आवाज़ बदलते हैं , हम जैसे लोग टूटा हुआ साज़ हैं सुर निकलता है साथी ढूंढते हैं दुनिया वाले हमदर्द बदलते हैं हमराज़ बदलते हैं । कभी बहुत पहले इक फ़िल्म देखी थी बहारें फिर भी आयेंगी उस में  कैफ़ी आज़मी का लिखा गायक महेन्दर कपूर का गाया गीत दिल को गहराई तक छू गया , बदल जाये अगर माली चमन होता नहीं ख़ाली आज आपको पढ़ने को पेश करता हूं ।

 

बदल जाये अगर माली  , चमन होता नहीं ख़ाली 

हारें फिर भी आती हैं , बहारें फिर भी आयेंगी । 

थकन कैसी घुटन कैसी , चल अपनी धुन में दीवाने 

खिला ले फूल कांटों में , सजा ले अपने वीराने

हवाएं आग भड़काएं , फ़ज़ाएं ज़हर बरसाएं 

बहारें फिर भी आती हैं , बहारें फिर भी आयेंगी । 

अंधेरे क्या उजाले क्या , ना ये अपने ना वो अपने 

तेरे काम आयेंगे प्यारे , तेरे अरमां तेरे सपने 

ज़माना तुझ से हो बरहम , ना आए राहबर मौसम 

बहारें फिर भी आती हैं , बहारें फिर भी आयेंगी । 

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