जून 25, 2024

POST : 1849 पकड़ो पकड़ो डोर सजनियां ( हास्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

 पकड़ो पकड़ो डोर सजनियां ( हास्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

 
लोकतंत्र भाग्य तेरा ऐसा संविधान का छीका टूटा , 
मत पूछो किस किस ने कितना कैसे क्यों है लूटा ।
 
जनता की तकदीर है खोटी छिन गई इक धोती ,
पहेली कौन बूझे नेता सब के सब ही हैं पनौती । 
 
किस सांसद का है कौन जगह कैसा मज़बूत खूंटा
रस्सी छूटी कमज़ोर ज़रा गठबंधन से नाता ही छूटा । 
 
भूल-भुलैयां चलो संग संग सैंयां डाल के गलबहियां ,
हमको मिल कर  करनी है ता-ता-थैया ता-ता-थैया । 
 
दुल्हन मंडप छोड़ भाग गई बारात है नाच दिखाती  ,
रपट लिख़ाओ मिल नहीं सकेगा चितचोर सिपहियां ।   

शोर है यही चहुंओर लागा चोर को मोर सजनियां ,
कटी पतंग उड़ चली पकड़ो पकड़ो डोर सजनियां ।  
 
सत्तासुंदरी नाच रही है हर दिन का है वही तमाशा ,
ख़ुश हैं शासक मौज मनाते जनता की बढ़ी हताशा ।  


   कटी पतंग - Paperwiff
 
 

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