मारे गये गुलफ़ाम ( ऐतबार मत करना ) डॉ लोक सेतिया
सच्ची बात कही थी मैंनेसच्ची बात कही थी मैंने
लोगों ने सूली पे चढ़ायामुझको ज़हर का जाम पिलायाफिर भी उनको चैन ना आया
सच्ची बात कही थी मैंने
( सच्ची बात कही थी मैंने )
ले के जहाँ भी वक़्त गया हैज़ुल्म मिला है, ज़ुल्म सहा हैसच का ये इनाम मिला है
सच्ची बात कही थी मैंने
( सच्ची बात कही थी मैंने )
सब से बेहतर कभी ना बननाजग के रहबर कभी ना बननापीर पयम्बर कभी ना बनना
सच्ची बात कही थी मैंने
( सच्ची बात कही थी मैंने )
चुप रह कर ही वक़्त गुज़ारोसच कहने पे जाँ मत वारोकुछ तो सीखो मुझसे, यारो
( सच्ची बात कही थी मैंने )
( सच्ची बात कही थी मैंने )
( सच्ची बात कही थी मैंने )
सच्ची बात कही थी मैंने सबीर दत्त की ग़ज़ल है जो हरियाणा के इक शायर हैं , तीसरी कसम फिल्म बनी थी फणीश्वर नाथ ' रेणु ' जी की कहानी पर बड़ी शानदार थी असफ़ल होना ही नसीब था । वो आंदोलन पीछे छूट गया लेकिन जनाब अन्ना हज़ारे को लोग अभी तक सोशल मीडिया पर क्या कुछ नहीं कहते जैसे कोई बड़ा गुनाह किया हो उन्होंने । कौन है जो कभी किसी पर ऐतबार नहीं करता कि जो कह रहा है कुछ करने को वास्तव में करना चाहता है या नहीं अथवा कर सकेगा भी या नहीं । इतनी पुरानी कहानी है जिसका आधुनिक संस्करण कह सकते हैं । अच्छा हुआ मुझे शुरुआत से ही यकीन नहीं आया था जब देखा उस अंदोलन में सभी चोर उचक्के शामिल थे । कभी मोदी जी से नहीं सवाल किया वादे क्या हुए अन्ना जी से कोई खतरा नहीं उनको लताड़ते रहते हैं , आपने क्या अपनी समझ से कोई काम नहीं किया बस किसी पर आरोप लगा रहे सब उन्हीं का किया धरा है । आपको इक और कवि हरिभजन सिंह रेणु की किताब ' तुम कबीर न बनना ' से इसी शीर्षक की कविता पढ़ने को पेश करता हूं , वो भी हरियाणा से ही थे , पंजाबी के बड़े शायर थे हिंदी में किताब का अनुवाद किया था मेरी मित्र गीतांजलि जी ने ।
तुम कबीर न बनना ( कविता )
जब
मेरे दोस्त
मुझे कबीर बना रहे थे
मैं प्यादों की ताकत से
ऊंटों की शह मात
बचा रहा था
घोड़े दौड़ा रहा था
तभी
मेरे भीतर बैठा कबीर
कह रहा था
तुम कबीर मत बनना ।
ये अक्षरों
गोटियों का खेल त्याग
और मेरे साथ चल
ताणा बुन
ध्यान दे
घर का
गुज़ारा चलाती
लोई का
कमाले को किसी काम लगा
धूणे पर फिरता है
उसको हटा ।
कबीर बनेगा
तो लोग कहेंगे
गंगा घाट मिला
गुमनाम विधवा ब्राह्मणी का
लावारिस है ।
नीरू मुस्लमान के घर पला
कबीर जुलाहा है
अंधेरे में पड़े
हमारे गुरु ने
पांव छूकर ज्ञानी बनाया है ।
दिन में बुनता और गाता है
रात भर जागता और रोता है
दिल में आई कहता है
मुंह में आई बकता है
काशी से निकल मगहर आया
कहीं की मिट्टी कहीं ले आया
राम रहीम इक सार उचारे
अढ़ाई अक्षर पढ़े बेचारे ।
तुम कबीर मन बनना
मैंने धीरे से कहा
ताणा तो मैं डाल लेता हूं
चादर तो मैं भी बुन लेता हूं ।
पर
सिंह बकरी को खाता रहे
मंदिर मस्जिद लड़वाते रहें
किसी कमाल के हिस्से
चरखा सूत ना आए
लहू धब्बे धोते-पौंछते
कालिख़ मिट्टी बुहारते
हाथ काले हो जाएं
तो मैं क्या करूं ।
मुझ से धरी नहीं जाती चादर
ज्यों की त्यों ।
तो मुझे लगा
वो भी मन में सोच रहा था
कबीर को किसने कहा था
कबीर बन !
कबीर बन !!
ये राजनीति का गोरखधंधा भलेमानुष लोग कब समझते हैं , काला धन सफ़ेद करते करते जिन के हाथ ही नहीं सारा बदन कालिख़ से ढक जाए उनको लाज शर्म नहीं आती क्योंकि जिस हम्माम में सभी नंगे हों उस सत्ता की हवेली में ऐसे चश्में बिकते हैं कि हर किसी को हरियाली दिखाई देती है । अन्ना बेचारे नसीब के मारे फिरते हैं किसी सागर किनारे अपना सब कुछ हारे । ऐसे कितने लोगों को सीढ़ी बनाकर लोग सत्ता पर बैठ कर कीर्तिमान स्थापित करते रहे और जिन्होंने भ्र्ष्टाचार तानाशाही के ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू की उनकी पीठ पर स्वार्थी झूठे मक्कार लोग छुरा घौंपते रहे । आजकल अजीब घटनाएं घटित होने लगी हैं अवतार कहलाने लगे हैं । काशी से अब कोई फिर से ख़ुद को क़बीर नहीं कह सकता या बड़ा दुश्वार कार्य है भूले से भी मत कहना मैं कबीर मैं क़बीर , मैं क़बीर नहीं हूं सच कहता हूं । क़बीर सभी के भीतर रहता है । लोग मैली चादर पर तंज कसते हैं जिनका सब सूट बूट कोट काला है उनकी तारीफ़ में क्या शान है कहते हैं । मरे गए गुलफ़ाम अजी हां मारे गए गुलफ़ाम ।
सही कहा अन्ना जैसे सीधे सादे लोगो से सियासी लोग फायदा उठाते रहते हैं
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