अप्रैल 15, 2024

घोषणापत्र की भूल-भुलैया ( अप्सरा कल्पना ) डॉ लोक सेतिया

    घोषणापत्र की भूल-भुलैया ( अप्सरा कल्पना ) डॉ लोक सेतिया 

हर चुनाव में ये भी रस्म निभाई जाती है , दुल्हन की डोली सजाई जाती है उसको ससुराल की सतरंगी दुनिया की रंगीन तस्वीर दिखलाई जाती है । बस ग्रह प्रवेश तक फूल राह पर बिछाए जाते हैं कांटों की सेज की असलियत छुपाई जाती है । कभी कोई कभी कोई और नाम देते हैं सभी राजनीतिक दल वाले वफ़ा चाहते हैं खुद वफ़ा से वाक़िफ़ नहीं होते लोग झूठों को सच छिपाने का नाहक इल्ज़ाम देते हैं । अभी तक जो हुआ किसी को खबर नहीं भविष्य में क्या होगा भगवान भी नहीं जानते मगर वोट मांगने वाले जनता को खैरात देने का वादा करते हैं अजब काम करते हैं । कौन दाता है कौन भिखारी है ये इक लाईलाज बिमारी है । कौन जाने कब तक कैसे जीना है हर किसी की सौ बरस जीने की तयारी है । शान से जीना क्या होता है स्वाभिमान से जीना किसे कहते हैं शायद हमने गुलामी को बरकत समझ लिया है । जिनको खुद हम चुनते हैं वही हम पर शासक बनकर कोड़े बरसाते हैं और हम दया करने की विनती करते हैं कायर बन सर झुकाते हैं । चलिए आज सभी राजनैतिक दलों के पुराने घोषणापत्र पढ़ते हैं और उनका मतलब समझाते हैं , इधर उधर की नहीं साफ़ साफ़ विषय पर आते हैं । 
 
सत्ताधारी उम्मीदवार से कहा आपके दल ने जो संकल्प पत्र जारी किया है ज़रा पढ़ कर सुनाओ और समझाओ । चार दिन बाद जिस को आधार बना कर वोट मांगते हैं अभी पढ़ा ही नहीं ठीक से बस कुछ शीर्षक जैसे रटे हुए थे जिनका अर्थ नहीं मालूम न ही ये समझते हैं कि उन को करना कैसे है । कोई दार्शनिक थे बोले नादान हैं इतना भी नहीं समझते कि जनता से सभी कुछ लिया जाता है अधिकांश खुद पर अपने साधनों सुविधाओं पर खर्च किया जाता है बच जाता है जितना जनता को लौटाया जाता है सैंकड़ों अड़चनों को लांघने की शर्त पूरी कर सकते हैं तभी ऊंठ के मुंह में जीरे की तरह । आपकी रगों से खून निचोड़ते हैं उस के बाद आपको खून बढ़ाने की दवा देने का वादा किया है लेकिन कितनों को मिलेगा कितने तड़पते तड़पते किसी और दुनिया में चले जाएंगे इस की गरंटी कौन दे सकता है । चतुर सुजान बतला रहे थे कि जिनकी किस्मत खराब होती है वही भिखारी बनकर हाथ फैलते हैं जिनको खुद पर भरोसा होता है उनको किसी से कोई खैरात नहीं मांगनी पड़ती वो अपने दम पर मेहनत से ज़िंदगी बसर कर लिया करते हैं । 
 
आपको अभी तक समझ नहीं आया कि जम्हूरियत वो तर्ज़े हुक़ूमत है जिस में बंदों को गिना करते हैं तोला नहीं करते , अर्थात आदमी की क़ाबलियत की नहीं संख्या का महत्व समझा जाता है । शासन करने वाले राजनेता अधिकारी तमाम संस्थाओं पर नियुक्त लोग देश को कुछ भी देते नहीं न देना चाहते हैं उनको सभी अधिकार खुद अपने लिए चाहिएं कोई फ़र्ज़ निभाना लाज़मी नहीं तभी 75 साल बाद देश की अधिकांश जनसंख्या मौलिक अधिकारों और बुनियादी सुविधाओं से महरूम है बेबस है लाचार है । देश और जनता की सेवा करने वालों को चुनने का कोई विकल्प ही नहीं है सभी सत्ता का अनुचित उपयोग करने वाले खड़े हैं । जैसे अधिकांश लोग अपनी लड़की का रिश्ता लोभी लालची और खुदगर्ज़ परिवार में नाकाबिल लड़के से कर पछताते हैं जनता भी सही ईमानदार की तलाश करने की कोशिश छोड़ जल्दी में गलत निर्णय लेती रही है । अब पछताए क्या होय जब चिड़िया चुग गई खेत , इन सभी राजनेताओं ने बाढ़ बनकर खेल की सुरक्षा करने की जगह सभी कुछ खा लिया है । इनके पेट ही नहीं आलीशान भवन शान ओ शौकत सभी गरीब जनता की दो वक़्त की रोटी छीन कर ही कायम है । ये तीसरा व्यक्ति कोई और नहीं सरकार नाम का इक दैत्य है जो रोटी बनाता नहीं रोटी खाता भी नहीं रोटी से खेलता है । 
 
जनहित और लोककल्याण की बात मत करना ये किसी और युग की बात है आजकल सभी सिर्फ और सिर्फ खुद या अपने दल संघठन की चिंता भी तभी तक करते हैं जब तक कोई मकसद पूरा होता रहता है अन्यथा किसी को बदलते देर नहीं लगती । विचारधारा से कोई मतलब नहीं किसी को और अपराधी बदमाश भी अपनी टोली में शामिल होते ही भलेमानस लगते हैं । सच तो ये है कि जनता की बात क्या खुद किसी राजनीतिक दल के लोग भी अपने घोषणापत्र को देखते तक नहीं है और उनकी कीमत रद्दी से बढ़कर नहीं रहती है चुनाव ख़त्म होते किसी को उनकी आवश्यकता नहीं रहती है । पौराणिक कथाओं में देवता हुआ करते थे जो खुद कुछ नहीं संचय करते थे अन्य लोगों को बांटते थे जितना पास होता , लेकिन कुछ राक्षस भी हुआ करते थे जो सभी से सभी छीन कर भी भूखे ही रहते थे । आज भी जिनको सब अपनी खातिर चाहिए वो राक्षस ही हैं लेकिन उनकी पहचान करना आसान नहीं है अक्सर जिसे देवता समझा वही दानव निकलता है । 
 
 himachal election bjp congress money spend election commission detail 68  सीट वाले हिमाचल प्रदेश चुनाव पर कांग्रेस और बीजेपी ने इतने करोड़ खर्च कर  डाले | Jansatta

1 टिप्पणी: