जो गुनहगार पकड़े नहीं जाते ( दरअस्ल ) डॉ लोक सेतिया
ये इक पुरानी कहानी है इक युवक को जब अदालत मुजरिम घोषित करती है तब वो अपनी मां को पास बुलाता है और उसका कान काट खाता है । कारण समझाता है कि उसकी मां को सब खबर थी तब भी उस ने अपने बेटे को अनुचित राह पर चलने से रोका नहीं , जबकि उसका फ़र्ज़ था ऐसा करना । बताने की ज़रूरत नहीं कि आज जब भी खुले आम अनुचित कार्य अपराध और सामाजिक नियम कायदे की कोई परवाह नहीं कर कितने ही लोग निडरता से गुनाह करते हैं तब जिनको ऐसा करने से रोकना चाहिए वो सरकारी विभाग और जिनको ऐसा होने पर समाज को जागरूक करना चाहिए वो सोशल मीडिया से अखबार टीवी चैनल अपने अपने स्वार्थ में अंधे हो कर ख़ामोशी से सब देखते रहते हैं । राजनीति धर्म तमाम कारोबार से लेकर शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं का नैतिकता का पतन होने का बड़ा कारण ये सभी लोग हैं जिनको शायद कभी खुद अपने अपकर्मों का एहसास तक नहीं होता है । सरकारी विभाग के अधिकारी सरकारी नियम कायदे का पालन करवाना छोड़ अवैध कार्य करने वालों को सहयोग देते रहते हैं जितना भी संभव हो और कभी कोई पकड़ा भी जाता है तो सज़ा उसको मिलती है सरकारी विभाग के कर्मचारी अधिकारी कभी नहीं अपने अपराध के लिए कोई सज़ा पाते हैं । पुलिस का अपराधियों से गहरा रिश्ता शरीफ़ लोगों के प्रति अनुचित एवं अपमानजनक ढंग देश में अपराध को बढ़ावा देता रहा है । सत्ताधारी शासक भी बिना सरकारी विभाग के अधिकारी की मिलीभगत कोई भी अनुचित कार्य कर ही नहीं सकते हैं । अदालत कानून व्यवस्था की सुरक्षा करने को नियुक्त तमाम लोग देश समाज के प्रति अपना कर्तव्य और ईमानदारी को भुला बैठे हैं तभी हर दिन समाज की दशा और खराब होती जा रही है ।
सरकार और उस के विभाग बड़ी बड़ी बातें करते हैं और दावे करते हैं जनता की समस्याओं का उचित और शीघ्र समाधान करने का और लोगों से आग्रह करते हैं कुछ भी अनुचित होता हो तो उनको जानकारी दे कर सहयोग करें । लेकिन वास्तव में उनको खुद जिन बातों को रोकना चाहिए जानते देखते समझते हुए भी होने ही नहीं देते बल्कि अधिकांश खुद अपराधी के साथ खड़े दिखाई देते हैं , सरकारी प्लॉट्स पर अतिक्रमण से गंदगी फ़ैलाने ही नहीं बल्कि गुंडागर्दी और लूट अनैतिक कार्य नशे का धंधा जैसे अपराध इन्हीं से मिले लोग धड़ल्ले से करते हैं , जो शिकायत करे उसकी मुसीबत खड़ी हो जाती है । हमारे देश के प्रशासन का तौर तरीका अपराध को रोकना ख़त्म करना नहीं बल्कि बढ़ाना है क्योंकि इनको भले कितना वेतन कितनी सुविधाएं मिलती हों इन्हें अपने पदों और अधिकारों का दुरूपयोग करना अनुचित नहीं लगता और ऐसा कर धन दौलत जमा करना इनको महान कार्य लगता है । हमने राष्ट्रीय चरित्र को खो दिया है और कोई भी अपने अपकर्मों पर शर्मसार नहीं होता है । अधिकांश सामाजिक अपराध कभी थमते नहीं हैं क्योंकि हम लोग भी ऐसे असमाजिक तत्वों को स्वीकार ही नहीं करते बल्कि उनका ख़ामोशी से समर्थन देते हैं भले कारण या आधार जो भी हो । यहां कोई भी सच के साथ खड़ा नहीं होता बल्कि झूठ के पैरोकार तमाम लोग टीवी चैनल अख़बार सोशल मीडिया पर उनका बचाव करते नज़र आते हैं ।
कौन हैं जो खुद को धार्मिक समझते हैं ।
आपने खुद देखा ही नहीं अनुचित कामों को होते हुए बल्कि आप शामिल रहे किसी
के अनुचित और अधर्म के कामों में , क्या यही शिक्षा हासिल की आपने धर्म की ।
आप खुद तो अधर्म की नगरी में अपनी ख़ुशी से रहते रहे औरों को भी विवश किया
अधर्म की नगरी में आकर बसने को । धर्म के नाम पर आपने अधर्म का साथ दिया तो
आपका अपराध और अधिक हो जाता है । शायद ये सभी धर्म को न मानते हैं न ही
समझते हैं , इनका धर्म से कोई सरोकार नहीं है । इन सब का मकसद कुछ और ही रहा
है । भगवान से तो इनको कोई डर लगता ही नहीं है वर्ना अधर्म की राह पर चलने
से बचते । आज इक गुनहगार पकड़ा गया मगर कितने गुनहगार अभी आज़ाद हैं और उनको
कोई सज़ा नहीं होगी केवल इतनी सी बात नहीं है । इस से खराब बात ये होगी कि
उनको अपने किये अपराधों का कभी पछतावा तो क्या एहसास भी नहीं होगा । ये
समझते ही नहीं हैं इन्होंने कितना अक्षम्य अपराध किया है ।
हमने किसी सत्येंदर दुबे का क़त्ल होता देखा ही नहीं ख़बर भी याद नहीं , आई ई इस इंजीनयर सेंट्रल नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ़ इण्डिया में जनरल मैनेजर पद पर नियुक्त अधिकारी की हत्या इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने ततकलीन प्रधानमंत्री कार्यालय को भ्र्ष्टाचार की जानकारी देने को इक गोपनीय पत्र लिखा
था । 27 नवंबर 1973 को शाहपुर में जन्में तीस वर्षीय ईमानदार शख़्स को 27 नवंबर 2003 को गया में उनके जन्म दिन को ही क़त्ल किया गया मगर अपराधी की पहचान मालूम होने पर भी अपराधी को पकड़ने में सी बी आई को सात साल लग गए थे । जिस देश में इतना होने पर भी किसी शासक किसी सरकारी विभाग पर रत्ती भर भी असर नहीं हुआ हो उस को अंधेर नगरी चौपट राजा नहीं तो क्या कहा जाए । शायद ही अपने गुनाहों पर कभी प्रशासन या राजनेताशर्मिंदा होते हैं । पर्यावरण के लोग हैरान हैं कि गिद्धों की संख्या घटती जा रही है जबकि सरकारी दफ्तरों में गिद्ध विराजमान हैं कुर्सियों पर ज़िंदा इंसानों का मांस नोच नोच कर खाते हुए ।
शायर जाँनिसार अख़्तर कहते हैं :-
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