दिसंबर 03, 2023

ईमानदारी की किताब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया - भूमिका

    ईमानदारी की किताब ( व्यंग्य  ) डॉ लोक सेतिया  -   भूमिका 

आप देख सकते हैं मैंने इस विषय पर दो साल पहले अपनी फेसबुक पर लिखने की शुरुआत की थी , सभी से सवाल पूछा था कि बताना कोई किताब उपलब्ध है ईमानदारी का सबक सीखने की । ईमानदारी की बात थी तभी किसी ने कोई लाइक कमेंट नहीं किया था । विचार आया था कोशिश कर मैं खुद इक किताब इस विषय की लिखूं मगर फिर ईमानदारी सामने आकर खड़ी थी मुझसे सवाल करती क्या मैं ईमानदार हूं सच में या बस सोचता हूं कि ईमानदार व्यक्ति हूं । जैसे लोग खुद को देशभक्त समझते हैं धार्मिक समझते हैं जाने क्या क्या समझते हैं जबकि वो सब क्या होता है मतलब तक नहीं जानते हैं । काफी चिंतन मनन करने के बाद मैंने निर्णय किया कि किसी विषय पर लिखने के लिए आपको उस की समझ जानकारी होना काफी है ऐसा लाज़मी नहीं है कि आपको जो मालूम हो आप वास्तविक आचरण में जीवन में उसी पर अमल भी करते हों । अब आपको पता चल गया होगा कि मैं कोई दावा ईमानदारी का कदापि नहीं कर रहा । हर किताब की शुरुआत इक भूमिका या प्राक्कथन से की जाती है यही कर रहा हूं अभी आगे की रब जाने या सब जाने । अचानक इक दार्शनिक से मिलना हुआ तो लगा उनसे विषय पर सार्थक संवाद किया जा सकता है । थोड़ी देर ख़ामोशी छाई रही उस के बाद उन्होंने समझाना शुरू किया । 
 
कहने लगे ईमानदारी बड़ी कीमती चीज़ होती है हर किसी की हैसियत नहीं होती उस से रिश्ता बनाने की जान तक देनी पड़ती है उसकी ख़ातिर । आजकल चलन से बाहर है जैसे सरकार जिन जिन करंसी नोटों को बंद कर देती है उनकी कीमत रद्दी जैसी हो जाया करती है । हमारे समाज देश ही नहीं पूरी दुनिया में ईमानदारी को ज़िंदा दफ़्न कर दिया गया है क्योंकि ऐसा मान लिया गया है कि इस से दुनियादारी चल नहीं सकती है लेकिन इसको त्यागने से दुनिया बड़ी तेज़ी से भाग सकती है । बुलेट ट्रैन और जेट विमान से चंद्रयान तक के युग में कछुआ चाल से चलना कौन चाहता है । उन्होंने समझाया कि ईमानदारी की कथाएं और कहानियां पढ़ सकते हैं सुना सकते हैं मगर उसकी किताब कौन छापेगा कोई नहीं ख़रीदेगा मुफ़्त में भी नहीं । उपहार की तरह बांट भी दोगे तो लोग कहीं किसी कोने में रखी बेकार चीज़ों के साथ रख कर भूले से उठाएंगें नहीं कभी जीवन भर । 
 
इक छोटी सी लघुकथा है , इक व्यक्ति किसी से एक घोड़ा खरीद कर लाया और अपने नौकर से कहा उस की काठी उतार कर अस्तबल में बांधने को । नौकर ने घोड़े की पीठ से काठी हटाई तो देखा इक पोटली छुपा कर नीचे रखी हुई है । मालिक को दिखाई पोटली जिस में कीमती हीरे थे कई , उस व्यक्ति ने कहा इस को जाकर घोड़ा बेचने वाले को लौटाना चाहिए क्योंकि मैंने घोड़ा ख़रीदा है उसकी कीमत चुकाई है ये हीरे तो बेशक़ीमती हैं । नौकर ने कहा कि जब बेचने वाले ने घोड़ा बेचा तो उसका सब सामान खरीदने वाले का हुआ आपको उसे बताने की ज़रूरत क्या है , लेकिन उस ने कहा ऐसा अनुचित है ये पोटली और हीरे घोड़े की वस्तुओं में शामिल नहीं है । और उस व्यक्ति ने पोटली ली और घोड़े बेचने वाले के घर चला गया और उसको पोटली थमाई और बताया कि ये काठी के नीचे से मिली है । घोड़ा बेचने वाला आचंभित और हैरान तथा खुश होकर बोला कि कल रात किसी नगर से ये हीरे खरीद कर आया था और जाने कैसे इस पोटली को काठी के नीचे से निकलना ही भूल गया ये एक से बढ़कर एक बहुमूल्य हीरा है । और उस ने पोटली से एक हीरा निकाल उस व्यक्ति को देते हुए बोला कि आप इस को भेंट समझ रख लें । लेकिन उस व्यक्ति ने ऐसा करने से मना कर दिया तब घोड़ा बेचने वाला कहने लगा आपको एक तो लेना ही होगा इनकार नहीं करें । उनकी बात सुनकर व्यक्ति ने कहा मैंने दो सबसे कीमती हीरे पहले ही अपने पास रख लिए हैं सुरक्षित , इस को सुनते ही घोड़ा बेचने वाला कहने लगा ये तो उचित नहीं और पोटली से सभी हीरे निकाल गिनती की ये देखने को कि कितने हीरे कम हैं । लेकिन हीरे तो पूरे के पूरे निकले गिनती करने पर , तब उस ने कहा पोटली के सभी हीरे सही हैं गिनने पर फिर आपने कैसे दो हीरे निकालने की बात कही है । उस व्यक्ति ने बताया कि मैं सभी हीरे रख सकता था और आप या किसी को बताता नहीं कि मुझे मिले हैं लेकिन मैंने इन से कीमती दो हीरे अपने बचा कर सुरक्षित रखना अधिक सही समझा । और वो हैं मेरा ज़मीर और मेरी ईमानदारी । 
 
दार्शनिक ने बताया कि आजकल धर्म राजनीति समाज कारोबार से आपसी संबंधों रिश्ते नातों तक तमाम तरह से झूठ छल कपट धोखा और आडंबर होता है । ईमानदारी कहीं भी दिखाई नहीं देती सब खुदगर्ज़ और सिर्फ अपने फ़ायदे की बात करते हैं । सत्ताधारी संविधान की झूठी शपथ उठाते हैं देशसेवा की झूठी तक़रीर करते हैं धर्म उपदेशक अपने मतलब की बात करते हैं भीड़ के शोर में कभी ईश्वर की उपासना नहीं हो सकती है क्योंकि सैंकड़ों की आवाज़ एक साथ किसी इंसान या भगवान को समझ नहीं आ सकती बल्कि परेशान ही करती होगी । प्रार्थना अरदास प्रभु नाम सिमरण चुपचाप अकेले बैठ शांति पूर्वक मन ही मन किए जाते हैं और ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु अंतर्मन की आवाज़ सुनते हैं । उस विधाता को जो सबको सभी देता है कोई कुछ भी कैसे दे सकता है ये बात समझना कठिन नहीं कि जो सबको देने वाला है उसको भिखारी समझना उस का उपहास ही हो सकता है । धर्म के नाम पर जो लोग कारोबार करते हैं रोज़ कुछ न कुछ नया लुभावना ढंग आज़माते हैं कोई साधु संत नहीं धोखेबाज़ छलिया बनकर ठगने का कार्य करते हैं । उनके उपदेशों में कोई सच्चाई कोई ईमानदारी नहीं हो सकती है और वो राह नहीं दिखलाते भटकाते हैं सिर्फ अपने को सबसे ज्ञानवान साबित करने की भूल करते हैं । ऐसे शिक्षकों की बात समझने को इक पुराना चुटकुला सुनते हैं । 
 
  कुछ बच्चे मैदान में खेल रहे थे कि तभी उनके अध्यापक वहां से गुज़रे और उन से पूछा बच्चो क्या खेल खेल रहे हैं आज सभी मिलकर । बच्चों ने बताया मास्टरजी हमारे पास ये इक पिल्ला है और हमने इक शर्त लगाई हुई है कि सब झूठ मूठ की बातें बताएंगे और जो भी सबसे बड़ा झूठा साबित होगा उसी को ये पिल्ला ईनाम में दिया जाएगा । उनकी बात सुनकर अध्यापक बोले कैसे छात्र हैं आप जब हम आपकी उम्र के थे हमको पता ही नहीं था झूठ क्या होता है कैसे बोलते हैं । अध्यापक की बात सुनते ही सभी बच्चे कह उठे मास्टरजी लो ये पिल्ला आपको मिलता है , क्योंकि इस से बढ़कर झूठ कोई नहीं बोल सकता सबको मालूम था । 



 
 
  

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