बड़ी महंगी हुई दोस्ती ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
इक छोटी सी घटना ने मुझे वो समझा दिया जिस को समझने में मैंने सालों बिता दिए । इक व्यक्ति जिस को मैंने हमेशा अपना दोस्त माना रास्ते पर चलते फिरते मिल गया । मुझे इक रोग का इंजैक्शन लगा कर मुझसे उसकी कीमत वसूल कर ली जबकि लगाने से पहले अपनी संस्था की समाजसेवा की खातिर उस रोग से बचाव का कार्य समाजसेवा की खातिर कर रहे हैं घोषित किया था । लेकिन मुझे ध्यान आया कि तभी तभी मैंने एटीएम से पैसे निकलवाए थे अन्यथा अपमानित महसूस करता कि जेब ख़ाली थी । तभी उस ने इक और रसीद भी पकड़ा दी कुछ महीने के उस के बिल की जो मैंने कभी मंगवाया भी नहीं और मुझे कभी मिला भी नहीं । आपको अजीब लगेगा कि मुझे उसको पैसे देने से पहले ये बात पूछने का ख़्याल तक नहीं आया । बाद में सोचा ये तो मैं खुद ही मूर्ख बन गया , समझदार होता तो बिना संकोच कहता भाई मुझे इस इंजैक्शन की कोई ज़रूरत नहीं और जिस की रसीद आप ने बना रखी है मैंने कभी मंगवाया नहीं मुझे कभी भेजा ही नहीं गया । आज मुझे अपने सवाल का जवाब मिल ही गया कि जीवन भर मैंने दोस्तों की दोस्ती की खातिर क्या क्या नहीं किया लेकिन तब भी आज कोई भी दोस्त मेरे साथ खड़ा नहीं है । ज़िंदगी ग़ुज़ार दी दोस्ती को ईबादत समझते समझते मगर हासिल कुछ भी नहीं हुआ अब सोचता हूं कहां मुझसे क्या ख़ता हुई जो मुझे ऐसी सज़ा मिली कि अब सोच रहा ' कोई दोस्त है न रकीब है , तेरा शहर कितना अजीब है '।
आजकल दोस्ती शुद्ध लेन - देन का कारोबार है कुछ आपको चाहिए कुछ उसको जिस से आपको दोस्ती करनी है ये मैंने कभी सोचा तक नहीं था । मैंने दोस्ती की खातिर सब किया जो शायद मेरे बस में नहीं था मगर इक चीज़ कभी नहीं की झूठ फ़रेब और अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना कर किसी की गलत बात को सही बताकर रिश्ते बचाना । लेकिन यहां सभी दोस्ती का मतलब दोस्त बनना नहीं दोस्त कहलाना है तो सबको अनुचित और झूठ की राह पर चलने पर भी शाबास बहुत बढ़िया कर रहे हैं बोल कर हौंसला बढ़ाना होता है । सही रास्ता दिखलाना गलत रास्ते जाने से रोकना और सच कहना कि ऐसा क्यों करते हैं आप जब जानते हैं कि ये तरीका ठीक नहीं आपको सभी आलोचक नहीं विरोधी और कभी दुश्मन समझने लगते हैं । दोस्ती निभाने की कीमत सभी चाहते थे जो उनको पसंद है वही बोलना वही करना वही समझना भी , खुद को जो बिल्कुल भी पसंद नहीं अनुचित लगता है साथ देने को उस पर चलना भी और और बिना किसी सोच विचार किए समर्थन भी करते रहना । ये संभव नहीं हुआ हमसे न कभी होगा कि अपने किरदार को खुद ही मिटा दें झूठी दोस्ती की ख़ातिर ।
सच बोलने की आदत ने हमको बर्बाद कर दिया है तो क्या हुआ इस का अफ़सोस नहीं है सच बोलना कोई सामाजिक सरोकार की जनहित की बात लिखने वाला लेखक कभी छोड़ नहीं सकता है । शायर बशीर बद्र जी कहते हैं ' दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे , जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों । मैंने तो जितना भी लिखा है सिर्फ इक दोस्त की तलाश की खातिर ही लिखा है सब उसी को समर्पित है लेकिन दो रचनाएं अपने अनुभव की भी कही हैं ग़ज़ल पेश करता हूं ।
1
सच बोलना तुम न किसी से कभी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ।
सच बोलना तुम न किसी से कभी
बन जाएंगे दुश्मन , दोस्त सभी ।
तुम सब पे यक़ीं कर लेते हो
नादान हो तुम ऐ दोस्त अभी ।
बच कर रहना तुम उनसे ज़रा
कांटे होते हैं , फूलों में भी ।
पहचानते भी वो नहीं हमको
इक साथ रहे हम घर में कभी ।
फिर वो याद मुझे ' तनहा ' आया
सीने में दर्द उठा है तभी ।
2
झूठ सच से बड़ा हो गया ।
अब तो मंदिर ही भगवान से ,
कद में कितना बड़ा हो गया ।
कश्तियां डूबने लग गई ,
नाखुदाओ ये क्या हो गया ।
सच था पूछा ,बताया उसे ,
किसलिये फिर खफ़ा हो गया ।
साथ रहने की खा कर कसम ,
यार फिर से जुदा हो गया ।
राज़ खुलने लगे जब कई ,
ज़ख्म फिर इक नया हो गया ।
हाल अपना , बतायें किसे ,
जो हुआ , बस हुआ , हो गया ।
देख हैरान "तनहा" हुआ ,
एक पत्थर खुदा हो गया ।
फिर वही हादिसा हो गया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ।
फिर वही हादिसा हो गया ,झूठ सच से बड़ा हो गया ।
अब तो मंदिर ही भगवान से ,
कद में कितना बड़ा हो गया ।
कश्तियां डूबने लग गई ,
नाखुदाओ ये क्या हो गया ।
सच था पूछा ,बताया उसे ,
किसलिये फिर खफ़ा हो गया ।
साथ रहने की खा कर कसम ,
यार फिर से जुदा हो गया ।
राज़ खुलने लगे जब कई ,
ज़ख्म फिर इक नया हो गया ।
हाल अपना , बतायें किसे ,
जो हुआ , बस हुआ , हो गया ।
देख हैरान "तनहा" हुआ ,
एक पत्थर खुदा हो गया ।
स्वार्थी दोस्ती को लेकर अच्छा सार्थक लेख यही चल रहा है आजकल👌👍
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