मई 22, 2023

बदनसीब को बद्दुआ लग गई ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   बदनसीब को बद्दुआ लग गई ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया  

       मेरी ये पुरानी ग़ज़ल दो हज़ार रूपये के नोट की व्यथा को समझाती है उसके दर्द को बयां करती है ।

शिकवा तकदीर का करें कैसे
हो खफा मौत तो मरें कैसे ।

बागबां ही अगर उन्हें मसले
फूल फिर आरज़ू करें कैसे ।

ज़ख्म दे कर हमें वो भूल गये
ज़ख्म दिल के ये अब भरें कैसे ।

हमको खुद पर ही जब यकीन नहीं
फिर यकीं गैर का करें कैसे ।

हो के मज़बूर  ज़ुल्म सहते हैं
बेजुबां ज़िक्र भी करें कैसे ।
 
भूल जायें तुम्हें कहो क्यों कर
खुद से खुद को जुदा करें कैसे ।

रहनुमा ही जो हमको भटकाए
सूए - मंजिल कदम धरें कैसे । 
 
      जिसको बनाने वाला खुद मिटाने का ऐलान करे उसकी फरियाद कौन सुनेगा । शायद तभी ये फैसला खुद शाहंशाह नहीं सुना सकता था और किसी विदेशी दौरे पर निकल गया । कागज़ का होने से बोल नहीं सकता लेकिन कागज़ का लिखा कोई मिटा भी नहीं सकता ये कोई कच्ची स्याही से लिखी कहानी नहीं है । दो हज़ार का नोट शाहंशाह को दिलो जान से प्यारा था ये उनकी आपसी चाहत की इन्तिहा है जिस की खातिर शान से आया लाया गया उसी की मर्ज़ी उसकी ख़ुशी की खातिर कुर्बान भी होना पड़ा । वफ़ा की मिसाल और बेवफाई की दास्तां दोनों दो हज़ार के नोट की ज़िंदगी से ज़ाहिर होती हैं । जब जन्म हुआ था तब दो हज़ार के नोट का आगमन का अभिनंदन का जश्न मना रही थी सरकार और रिज़र्व बैंक मिलकर लेकिन जिन पांच सौ और एक हज़ार वाले दो नोटों को अलविदा कहा जा रहा था उनके लिए कोई विदाई सभा क्या श्रद्धा सुमन तक किसी को चढ़ाने ध्यान नहीं रहे । उन की आत्मा की शांति सद्गति की प्रार्थना सभा तक नहीं आयोजित की गई बस जाते जाते उन्होंने दो हज़ार वाले नोट को श्राप या बद्दुआ दी थी आह निकली थी कि तुम्हारा हाल हम से भी बुरा होगा । खुद तुम्हें बनाने वाला कब चुप चाप तुम्हारा अस्तित्व मिटा देगा तुम्हारा इस्तेमाल करने के बाद दूध की मख्खी की तरह निकाल फैंकेगा ।  
 
  आई मौज फ़क़ीर की दिया झौंपड़ा फूंक , मनमौजी हैं जो चाहे करते हैं सौ बार मन की बात हुई तो दिल ने चाहा जो खिलौना खुद बनवाया था बहुत खेला कोई मज़ा नहीं आया । जाने किसी ज्योतिष विशेषज्ञ की कही बात हो कि अर्थव्यस्था की बदहाली से काला धन तक से लेकर जितनी योजनाएं बनाई असफल साबित होने का कारण दो हज़ार वाला गुलाबी रंग का नोट इक पनौती है । अब अगला चुनाव किसी और मूल्य और रंग के नोट से लड़ना होगा अन्यथा काठ की हांडी कितनी बार चढ़ सकती है । भले चंगे तंदरुस्त को आईसीयू में भेजना और अंतिम दिनों की गिनती शुरू करते हुए क्या होगा क्या मुमकिन है सब पर पर्दा रखना साबित करता है बहुत कुछ है जो छिपाना भी है और जनता को फिर से अच्छे दिन का टूटा ख़्वाब सच होगा भरोसा दिलाना भी है । आपको ध्यान रखना होगा पहले की तरह जैसे पांच सौ और हज़ार रूपये वाले नोटों को उचित ढंग से विदा नहीं किया था इस बार मत करना । अभी फूलमाला नहीं चढ़ानी है अभी संयम धैर्य से दिलासा देना है जो आया उसे इक न इक दिन जाना होता है पर इतनी जल्दी ऐसा नहीं होना चाहिए था । दो हज़ार के नोट तुमने देश को बहुत कुछ दिखलाया है चाहे कैसा भी हो तुझे भुलाना संभव नहीं होगा । हर किसी की कितनी यादें जुड़ी हुई हैं तुम्हारा गुलाबी रंग और चमक किसी शाहंशाह से कम कदापि नहीं हैं । बाबू मोशाय ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं , मैं मरने से पहले मरना नहीं चाहता , आनंद फिल्म का नायक अपने दोस्त से कहता है ख़ूब लोकप्रिय डायलॉग है सुपरस्टार राजेश खन्ना का । दो हज़ार रूपये के नोट की अंतिम इच्छा यही हो सकती है कि आठ तारीख़ आठ बजे जो शाहंशाह ने किया था फिर से दोहराया जाए ताकि चुपके चुपके की तरह नकली किरदार का अंत आदरणीय ओम प्रकाश जी के हाथों से ही हो । ये गुलाबी रंग के खूबसूरत फूल हैं जिनका सही विधि पूर्वक विसर्जन किया जाना चाहिए हरिद्वार में या वाराणसी में ये खुद शाहंशाह की मर्ज़ी से निर्धारित किया जा सकता है । मुझे इक लाल किताब वाले ने बताया है चुनाव से पहले ऐसा करना शुभ फलदाई हो सकता है अगर पिछले हज़ार पांच सौ वाले नोटों की भी यही विधि अभी भी साथ साथ की जाए तो उनका भी कल्याण होगा । किस का कल्याण कैसे होगा शाहंशाह खूब जानते हैं बस उनको क्या करना है ये कोई नहीं जानता भगवान भी नहीं । 
 

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया ग़ज़ल से युक्त सारगर्भित सामयिक लेख👌👍

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-05-2023) को   "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं