मार्च 09, 2023

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

   अब तो इस तालाब का पानी बदल दो  ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

   कोशिश है जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण मुख्य बातों पर संक्षेप में साधारण शब्दावली में विचार विमर्श करना ताकि साधारण व्यक्ति समझ कर अपना सके और फ़ायदा उठा सके । सबसे पहले अच्छा जीवन बिताने के लिए जो बातें अतिआवश्यक हैं उनकी चर्चा , शारीरिक और मानसिक के साथ सामाजिक स्वास्थ्य के बिना कुछ भी संभव नहीं है । खुश रहना मौज मस्ती करना शानदार रहन-सहन साधन सुविधाएं वास्तव में अच्छे जीने के लिए उस सीमा तक ज़रूरी हैं जहां तक पहले वर्णित शारीरिक मानसिक सामाजिक स्वस्थ्य हासिल करने में कोई बाधा उतपन्न नहीं करते ये सब अन्यथा भौतिक चीज़ों की दौड़ में वास्तविक जीवन चौपट हो जाता है । आजकल यही होने लगा है और समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है । देश की समाज की व्यवस्था जर्जर हो चुकी है सब कुछ जैसा होना चाहिए उस के विपरीत हो गया है । बदलाव का शोर है बदलाव हो नहीं रहा क्योंकि खुद को कोई भी बदलना नहीं ज़रूरी समझता है।

   ये कोई मनघडंत कहानी नहीं है बहुत पुरानी इक किताब है जो धर्म शासन व्यवस्था सामाजिक मान मर्यादा को लेकर लिखी गई है और जिस में नीति-कथाओं बोध-कथाएं लोक-कथाएं से सही गलत अच्छे बुरे की व्याख्या की गई है । इक बोध कथा संत महात्मा और राक्षस का अंतर समझाती है , साधु जीवन भर जितना भोजन खा कर जीवित रहता है राक्षस का पेट उतना खाने पर एक बार भी भरता नहीं है । देवता कहते हैं उन को जो देते हैं सबको बांटते हैं थोड़ा पास रखते है आवश्यकता भर को जमा कर रखते नहीं कल की खातिर । दान और पुण्य की परिभाषा भी है कि धनवान भूखे गरीब की सहायता करते हैं रास्ते पर मुसाफिर की सुविधा पानी छांव रात भर आराम करने को मुसाफिरखाना बनाते हैं तभी ईश्वर का धन्यवाद करते हैं कोई नाम शोहरत पाने को दिखाने को कुछ नहीं करते कभी । वास्तविक धर्म समाज का कल्याण और उपकार की भावना से कर्म करना है जब कोई मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरिजाघर दानपेटी में किसी भी तरह अर्जित धन को देकर ऐसा समझता है ऊपरवाला खुश होगा आशीर्वाद वरदान देगा तो वो खुद को औरों को धोखे में रख रहा होता है । शायद यही सबसे बड़ी अज्ञानता की बात है कि कोई खुद को दाता और ईश्वर को भिखारी समझता है । विधाता ने सभी को सब आवश्यकता का मिले ये व्यवस्था की है अगर ध्यान पूर्वक समझा जाए तो , लेकिन बाक़ी सब तौर तरीके मतलबी लोगों ने अपने स्वार्थ हासिल करने को लागू कर के सब से उनका अधिकार छीन कर वही किया है जो दानव किया करते थे कथाओं में पढ़ते हैं देवताओं पर अन्याय अत्याचार कर अपनी भूख अपनी हवस मिटाने को । वास्तव में ऐसे लोग धर्म को ईश्वर को न तो मानते हैं न समझते हैं  सिर्फ आडंबर करते हैं । अधिक कहना ज़रूरी नहीं विचार करेंगे तो सब खुद अपने विवेक से जान जाओगे , आखिर में महात्मा गांधी जी की समझाई बात । हमें खुद वो बदलाव बनना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं , तभी हम अंधेरे में रौशनी की किरण फैला सकते हैं । 
 
 हैं उधर सारे लोग भी जा रहे  ,    रास्ता अंधे सब को दिखा रहे ।

सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो ,   गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।

सबको है उनपे ही एतबार भी ,    रात को दिन जो लोग बता रहे ।

लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर  ,        दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।

घर बनाने के वादे कर रहे  ,        झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।

हक़ दिलाने की बात को भूलकर ,  लाठियां हम पर आज चला रहे ।

बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं  ,   हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
 
 
 कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं: दुष्यंत कुमार - YouTube








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