सुबह का इंतिज़ार कब तक ( दर्द की दास्तां ) डॉ लोक सेतिया
क्या
बतलाएं हम ने कैसे सांझ सवेरे देखे हैं , सूरज के आसन पर बैठे घने अंधेरे
देखे हैं । किसी बड़े शायर का शेर वर्तमान समाज की दशा को परिभाषित करने में
सक्षम है । शासक वर्ग ईश्वर धर्म के नाम पर जनता को ठगने का कार्य करते
हैं छलिया बन कर भेस बदलते रहते हैं और अधिकारी कमाल का अभिनय करते हैं जब
नागरिक उन को मिलते हैं उनसे समस्याओं पर बात करने को छोड़ उपदेशात्मक रवैया
अपना कर अपना पल्ला झाड़ कर सरकार की मनमानी की परेशानी बताते हैं जबकि
सिफ़ारिश घूस वालों के लिए सब आसान हो जाता है । आम नागरिक को ऊपरवाले पर
अर्थात भगवान पर भरोसा करने की बात कहते हैं और जतलाते हैं कि जैसे उनके
अधिकार होते हुए भी सही फैसला करने की अनुमति नहीं है । निर्णय उनको लेना
है नियम यही है मगर उनका विवेक कोई काम तभी करता है जब उनका फायदा या
मज़बूरी हो । राजनेता अफ़्सर कर्मचारी सभी आपस में मिले हुए होते हैं मगर
जिनको न्याय नहीं मिलता उनको दूसरे का दोष बताकर खुद को मासूम दिखलाने की
कोशिश करते हैं । आम जनता सब समझती है मगर खामोश रहती है क्योंकि जानती है
कि तलवार से घाव मिलता है मरहम नहीं ।
संत बनकर उपदेश देने वाले सरकारी अनुकंपा पा कर अनुचित को उचित करवा लेते
हैं वोट का गणित काम आता है और देश राज्य की सरकार उनकी चरण वंदना करते हैं
जबकि सामन्य नागरिक पर बेरहमी से जब चाहे जो नियम बनाकर लूट का अवसर खोजते
रहते हैं । अधर्म धर्म बन गया है और मानवीयता का वास्तविक धर्म किसी सरकार
किसी प्रशासन किसी संगठन किसी संस्था यहां तक कि किसी न्यायालय को याद तक
नहीं है । बड़े ख़ास लोगों पर सरकार की अनुकंपा रहती है और उसी कार्य के लिए
साधारण व्यक्ति पर कोई तरस नहीं खाता उसको दर दर ठोकरें खाने को विवश किया
जाता है । टीवी पर सोशल मीडिया पर सभी शासक सरकारें लोक कल्याण और जनता की
सेवा भलाई की चर्चा भाषण करते हैं जबकि वास्तविकता विपरीत मिलती है जब किसी
आम नागरिक को अनावश्यक परेशानी होती है । गुरु नानक जी ने इक शासक को कहा
था एती मार पई करलाने तैं कि दर्द न आया । बाबर के ज़ुल्म की बात थी शायद ।
लेख पढ़कर-
जवाब देंहटाएंलोग मुद्दत से भूखे प्यासे हैं।
फिर भी मिलते उन्हें दिलासे हैं।।
यथार्थ
जवाब देंहटाएंसत्य वचन
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