भगवान परेशान मैं हैरान ( होली की ठिठोली ) डॉ लोक सेतिया
नशे का चढ़ा हुआ खुमार था
मैं था फुटपाथ पर खड़ा हुआ
कर रहा नहीं आने वाले का
बड़ी बेताबी से इंतिज़ार था ।
होली के रंगों का सजा इक
हुड़दंग का खुला बाज़ार था
अजनबी जाना पहचाना वही
घोड़े पर शान से सवार था ।
उसने मुझे आवाज़ देकर बुला
नाम पता ठिकाना पूछ लिया
याद नहीं देखा लगते कहा तो
बतलाया कलयुगी अवतार था ।
कहने लगा मुझे लिखते हो क्या
किसलिए भला मिलता है क्या
मैंने कहा खुद क्या तुमने किया
दुनिया बना नहीं बंदा खुश था ।
ऐसा लगा परेशान था ख़ुदा बड़ा
थोड़ा सा घबरा गया शरमा गया
कोई जवाब नहीं देने को सूझा
बेबस बेचारा हुआ लाचार था ।
उसने सुनाई दास्तां ज़ुबानी तब
दुःखी आवाज़ भरा हुआ गला
दुनिया ज़माने से इंसानों से
भगवान हो गया बेज़ार था ।
दिल में छुपा कर रखते हैं
मुहब्बत जिस को कहते हैं
सोशल मीडिया पर क्योंकर
तमाशा बनाया दिलदार था ।
बस शोर है हर तरफ मचा यही
भगवान है धर्म क्या चीज़ क्या
वजूद बदल गया कोई बोलो
कब भला मैं कहीं सरकार था ।
जिस ने जैसा चाहा मर्ज़ी से
खिलौना बना खेला है मेरे संग
हैरान हूं परेशान हूं इंसाफ़ करो
बेख़ता सज़ा का न हक़दार था ।
तस्वीरों तकरीरों सोशल मीडिया
के जंगल में भटका दिया मुझको
नहीं जानता कौन भगवान बना हुआ
मैं तो ऐसा नहीं बस रूहानी प्यार था ।
👌👍👍👍
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