मार्च 06, 2023

भांग पड़ी कुंएं में आग लगी धुंएं में ( होली कथा ) डॉ लोक सेतिया

 भांग पड़ी कुंएं में आग लगी धुंएं में ( होली कथा ) डॉ लोक सेतिया  

   अच्छा हुआ कि खराब हुआ अब इस पर सोचना बेकार है बस जो होना था हुआ हो गया । शोध चल रहा था जिस रोग की दवा खोजने का वो रामबाण दवा आखिर बन ही गई ये अलग बात है वक़्त तो लगता ही है और वक़्त इतना लग गया कि दवा की ज़रूरत नहीं रही रोग खुद ही ख़त्म हो गया । होली का शुभ दिन है उस नामुराद का नाम भी नहीं लेना अच्छा है । बड़े साहब से आदेश मिला होली मनानी है कोई बढ़िया चीज़ असरदार बना कर भेजनी है । शोध पर ध्यान देकर गहन विचार विमर्श किया तो बेहद अद्भुत जानकारी मिली कि बनाई गई दवा आदमी को पिला कर सच्चाई और ईमानदारी पैदा हो जाती है और इंसान को सही गलत की पहचान होने लगती है मुर्दा ज़मीर ज़िंदा हो जाता है । अपनी प्रयोगशाला में सभी साथी कर्मचारियों पर आज़माया और परिणाम सफल रहा । बड़े साहब को गोपनीय जानकारी दी गई और भरोसा दिलवाया गया कि होली पर आपके सभी साथी सहयोगी अधीनस्थ कर्मचारियों अधिकारियों को भांग में मिलाकर ये दवा पिलाई जाए तो सभी अच्छे सच्चे ईमानदार बन जाएंगे । भांग का नशा उतरेगा लेकिन दवा का असर साल से अधिक अवधि तक रहेगा ही रहेगा और उस के बाद अगली होली पर दूसरी खुराक पिलाई जा सकेगी ।  
 
बड़े साहब समझदार हैं उन्हें भलीभांति मालूम है कि खास कुछ लोगों और खुद अपने आप को ईमानदारी की दवा कदापि नहीं पिलानी है बाकी सभी को वफ़ादार और ईमानदार बनाना फायदे की बात है । साहब ने उस दवा को देश भर में जहां जहां उनकी महिमा का विस्तार था भिजवा दी ताकि सभी उनके समर्थक उनको मसीहा समझने वाले उनके ही बनकर जीवन सफल करने की धारणा बनाए रखें । असंख्य लोगों को दवा पिलाई गई जो भांग या नशा नहीं करते थे उनको भी साहब की सलामती की शपथ देकर पीने को मनवा लिया गया । 
 
चार दिन बाद परिणाम सामने था जिन्होंने दवा मिली भांग पी थी वो जब भी झूठ बेईमानी हेराफेरी घूसखोरी का कार्य करने लगते आस पास सभी को इक दुर्गंध का आभास होता और इक घबराहट बेचैनी भ्र्ष्टाचार अनुचित कार्य करने वाले को महसूस होने लगती । दवा बनाने वालों से इस पर सपष्टीकरण मांगा गया क्योंकि साहब को अपने आस पास हर किसी से दुर्गंध आने लगी थी । दवा बनाते समय ये उपाय किया गया था कि जिन्होंने दवा की ख़ुराक ली उनको रोग करीब आने की आहट इक सुगंधित खुशबू की तरह लगे लेकिन फिर से चपेट में आने का खतरा होने पर दुर्गंध का एहसास जहां तक हवा की पहुंच हो वहां तलक पता चल जाए ।
साहब को बताया गया कि ये तो खुद एक जांच की तरह है रिश्वतखोर चोर अनुचित कार्य करने वालों से दुर्गंध मिलते ही लोग समझ जाएंगे कि आदमी खराब है । निकलो न बेनकाब ज़माना ख़राब है ग़ज़ल की तरह है । साहब की समस्या ख़त्म नहीं हुई बढ़ गई है अब किसी पर भी भरोसा करना तो क्या अपना हुक़्म चलाना कठिन होने लगा है । जैसे साहब कोई काम करने को आदेश देते हैं गुलाम जी हज़ूर कहते हैं और उनका कमरा ही नहीं घर से मीलों दूर तक बदबू लोगों को परेशान करने लगती है जैसे उनके आलीशान भवन जैसे महल में दुनिया भर की गंदगी का ढेर पड़ा हुआ है । कालीन जिन को ढके छुपाए रहते थे सब को खबर हो रही है । 
 

होली पर स्वदेशी गीत : - 

सबको हमने फूल बनाया , फूल उगाना था बेकार 

( उल्लू - अप्रैल फूल )   

लाये हैं कांटों की बहार , इक हूं मैं दूजे मेरे यार । 

तुम हो सत्ता की कुर्सी , खाती वफ़ादारी की कसमें 

कौन चोर कौन साहूकार , कुछ मत पूछो मुझसे यार । 

दोनों लगा कर रंग बेशर्मी का , राजनीति की होली खेलें 

लोकलाज को छोड़ो भी अब , टीवी की नकली तकरार । 

मैं करता हर किसी से छेड़छाड़ , रोक सकेगा मुझे कौन 

डुबोकर सबको जाना पार है , मेरी जीत सभी की हार । 

जोड़ी क्या  खूब बनाई अपनी , तुम हो झूठी मैं मक्क़ार । 


 

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