ख़ूबसूरत लगते हैं गुनाहगार लोग ( ये मुहब्बत है ) डॉ लोक सेतिया
मैंने सोचा सोच सोच कर बार बार सोच कर समझा तब जाकर समझ पाया कि अपराध क्या है अपराधी कौन नहीं है और यकीन हुआ कि दुनिया में मुजरिम हर शख़्स है । किसी शायर ने कहा भी इक फुर्सत ए गुनाह दी वो भी चार दिन , देखे हैं हौंसले परवरदिगार के । ऊपरवाले के दरबार में हम सब खड़े होते हैं गुनाहगार की तरह । जुर्म अपराध पर चर्चा बहुत की जाती है पर खुद अपने गिरेबान में कोई नहीं झांकता । कहने को हर कोई कह देता है जीना गुनाह है पर क्या क्या गुनाह नहीं किया कोई किसी को नहीं बताता है । गुनाह करने से जो लज़्ज़त जो ख़ुशी मिलती है उसका लुत्फ़ ही और है । यहां सभी ग़ालिब की तरह कह नहीं सकते कि मस्जिद के ज़ेरे साया घर बना लिया है , ये बंदा ए कमीना हमसाया ए खुदा है । शराफ़त बस इक मुखौटा है असली चेहरा दिखाई दे जाता तो आदमी चेहरा दिखाने के काबिल नहीं होता । दुनिया बनाने वाले ने अच्छा किया या खराब किया पर उस ने सब की भीतर मन की बात को किसी और तो क्या खुद को भी पता नहीं चलने दिया तभी भगवान भी आदमी की असलियत को समझ नहीं पाया । उसके सामने आकर भूल अपराध जाने अनजाने किए सब की क्षमा याचना करता है और पल भर बाद वही दोहराता है क्योंकि बुरे कर्म करने में बड़ा मज़ा आता है । क्या कमाल की बात है हम अपने आप से अपनी वास्तविकता को छुपकर जीते हैं नहीं तो शर्म से ही मर जाते । दार्शनिक लोग सब समझते हैं उनको मालूम है कि दुनिया में सभी अच्छे-सच्चे होते तो दुनिया बेरंगी और बोझिल लगती ये तो अपराधी लोग ही हैं जिन्होंने दुनिया को कितने रंगों से भरा है लाल रंग खून की निशानी है और काला रंग घनी ज़ुल्फ़ों से लेकर काला टीका नज़र लगने से बचाने से काजल की कोठरी वाला बहुरंगी होता है । गोरा और काला दोनों भाई भाई हैं और हरा लाल नीला पीला जामुनी गुलाबी उनका परिवार हैं ज़रा आगे ध्यान से पढ़िये सरकारी इश्तिहार हैं अपराधी सांसद विधायक हैं शासक शानदार किरदार हैं यहां राजनीति में सभी दिलदार हैं दोस्त हैं दुश्मनी को हमेशा तैयार हैं ।
अपराध जगत के महारथी समझे जाने वाले से राजनीति के अपराधीकरण विषय पर साक्षात्कार करने का अवसर मिला उन्होंने बहुत सारा व्याख्यान दिया उनकी बात को संक्षेप में वर्णन करते हैं । सत्ता की बहती गंगा में कितनी तरह से कहां कहां से आया है सब काम गंदे ख़राब छल कपट धोखा हेराफेरी लूटपाट से क़त्ल करने के करने के बाद सत्ता की चौखट पर सर झुकाया है सब पाप धुल गए हैं बेगुनाह साबित हुआ जब इस में नहाया है । झूठ को सच बताकर सच को अफ़वाह बताया है हमने धर्म देशभक्ति को अपना हथियार बनाया है रंगे हाथ पकड़े गए हाथ ख़ाली लेकर आए थे राजनीति में सभी पर हर कोई झोली भर घर लाया है । पाप क्या पुण्य क्या है ये भेदभाव मिटाया है बस इतना समझ लो हमको नहीं उसने बनाया जिस को भगवान हमने बनाया है । दुनिया कहती है झूठी मोह माया है हमने सिर्फ ईमान को बेचा है बदले में जो भी चाहा खूब पाया है । सबको उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करने का हुनर राजनीति कहलाती है ये वो डायन है जो सबका लहू पीती है और अपनी प्यास बुझाती है क्या कभी किसी धनवान को शासक को शर्म ओ हया आती है । ये भी इक तपस्या है जो बंद खिड़कियों दरवाज़ों में चुपके से की जाती है सरकार चलाना आसान नहीं है गंगा उलटी बहती है नीचे से ऊपर को जाती है । ध्यान से पढ़ना सब इतने में सार की बात समझाई है राजनेता की चतुराई है हर शख़्स हरजाई है ।
मुझे अपने गुनाह स्वीकार हैं मैंने कोई अपराध छोड़ा नहीं है , सबसे मुहब्बत करना भी गुनाह होता है और सच लिखना सच कह देना भी जुर्म ही है जो रोज़ किया है और सज़ा भी मंज़ूर की है । आखिर में मुझे हमेशा दस्तक़ फिल्म की ग़ज़ल पसंद रही है उसी से अपनी बात ख़त्म करते हैं । सब सच कहा लिखा है और कुछ भी झूठ नहीं शपथ लेता हूं ।
...मुहब्बत करना और सच लिखना- गुनाह ही है सही कहा सर
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