दिसंबर 11, 2022

बनाकर खुद इस को परेशान ( इंसान भगवान ) डॉ लोक सेतिया 

   बनाकर खुद इस को परेशान ( इंसान भगवान ) डॉ लोक सेतिया 

     आदमी को भी चैन नहीं आया भगवान की दुनिया से अलग अपनी इक अजीब करिश्माई जहां की तामीर कर ली । नाम कितने हैं सोशल मीडिया व्हाट्सएप्प टीवी स्मार्ट फोन काल्पनिक कितने ही किरदार कठपुतली जैसे बनाए अपनी उंगलियों पर नचाने को खेल से लेकर जंग तक मुहब्बत से लेकर नफरत तक दोस्ती दुश्मनी दोनों आधुनिक दुनिया में कभी कुछ कभी कुछ रंग बदलने वाले । फेसबुक की झूठी दुनिया असली लगने लगी और वास्तविक धरती आसमान हवा पानी पेड़ पशु पंछियों की दुनिया किसी काम की नहीं लगने लगी है । कौन जाने जैसे खुद बनाए इस मायाजाल से आदमी परेशान हुआ लगता है चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा पा रहा , अनावश्यक ही समय व्यर्थ बर्बाद कर रहा है आदत बन गई है नशा बन गया है कुछ भी हासिल नहीं होता फिर भी आशिक़ी की तरह दिल लगता नहीं सोशल मीडिया के बगैर जीना बेकार लगता है , ऊपरवाला भी पशेमान रहता हो जब दुनिया उसके मनचाहे ढंग से नहीं चलती और इधर उधर जिधर किधर भटकती रहती है । इक लोक कथा में दैत्य बना कर कोई सृजनकार खुद उसी का शिकार हो जाता है और जिसको खुद तराशा हाथों से अपने , वही पूछता है बनाने वाले से निशानी होने की उसकी । भगवान से इंसान उसी तरह सवालात करता है और भगवान से जवाब देते नहीं बनता है । 
 
  फेसबुक बनाते समय लगता था यही जगह है ख़ुशी सुकून खूबसूरत रिश्ते दोस्ती प्यार सब मनचाही मुरादें मिल जाती हैं , धीरे धीरे सब कागज़ी फूल हाथ लगाते बिखरते गए । दिन भर तरसते ही रहे कोई बात तो करे  , मुझको कहां खबर भी इशारों का शहर है ये अल्फ़ाज़ मेरे इक स्वर्गवासी दोस्त की ग़ज़ल से लिये हैं । नकली जलते बुझते सितारों की रौशनी से कुदरती नज़ारे छुप गए हैं । सुनहरे ख़्वाबों की दुनिया इतनी भाई है कि हर कोई जागते हुए भी सपने देख कर मस्ती में झूमता रहता है । बंद कमरे में खुद कैद होकर समझते हैं दुनिया भर को कैद कर लिया है । अपने ख़्यालात दिल के जज़्बात ख़ुशी दर्द नर्म मुलायम से सख़्त शब्द तलवार जैसे अल्फ़ाज़ सभी भरी महफ़िल बयां करते हैं बेशक किसी को किसी से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है । बधाई शोक संदेश बुलाना सब औपचरिकता निभाते हैं सिर्फ कहने भर को संदेश भेज कर जवाब दे कर । मिलना जुलना ज़रूरी नहीं लगता है कई बार महीनों सालों वार्तालाप करते रहने के बाद पूछना पड़ता है आप कौन हैं रहते कहां करते क्या हैं । सैंकड़ों हज़ारों की भीड़ में रिश्ते इक तस्वीर बन कर रह गए हैं जो प्रोफाइल पिक्चर बदलते समय नहीं लगता है । 
 
   भगवान की बनाई दुनिया भी जैसी बनाई थी वैसी रही नहीं और इंसानों की इंसानियत ख़त्म होती गई और शैतान की हैवानियत बढ़ती गई , जिस से सभ्यता शराफ़त ईमानदारी का नामो निशान मिट गया और धोखा छल कपट हिंसा अन्याय का आलम स्थपित हो गया है । सोशल मीडिया भी संबंध बनाने के बजाय आपसी मतभेद और अनावश्यक विवाद बढ़ाने का मंच बन गए हैं गंदी राजनीती और संकीर्ण विचारधारा ने फेसबुक व्हाट्सएप्प को हथियार बना कर दोस्तों रिश्तेदारों को विरोधी बना दिया है । इतना ज़हर भर दिया है लोगों के दिल-दिमाग़ में कि लोग बिना ख़ंजर इक दूजे को ज़ख़्मी करने लगे हैं । विडंबना है हर हाथ फूल लिए है और हर सर पर घाव भी दिखाई देता है । टीवी सीरियल से फिल्म तक अख़बार टीवी की बहस से विज्ञापन तक झूठ धोखा डर और भयानक घंटनाओं कहानियों ने माहौल को इस कदर खराब कर दिया है कि हर किसी को अजनबी क्या अपने करीबी लोग तक भरोसे करने के काबिल नहीं लगते हैं । दलदल में धंसे हुए हैं निकलने की कोशिश में और धंसते जाना नियति है । उपाय शायद यही है कि कभी इंटरनेट किसी कारण ख़त्म हो जाए ये सब बेकार होकर अपनी मौत मर जाएं , विनाश करने वालों का आखिर अंत इसी तरह से होता है जब कोई उनका अंजाम आखिर अंत होना है ये बात सच कर दिखला दे । अचानक लिखते लिखते वाई फाई इंटरनेट हमेशा को जाना अर्थात इस पोस्ट का खुद ही डिलीट किए बिना अनपब्लिश रहना । 
 
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