नवंबर 01, 2022

बिना शर्त कुछ नहीं कुछ भी ( ज़िंदगी ) डॉ लोक सेतिया

      बिना शर्त कुछ नहीं कुछ भी ( ज़िंदगी ) डॉ लोक सेतिया 

खुदा ईश्वर या विधाता जो भी है इंसान को जन्म देता है मगर बतलाता नहीं उसकी भी शर्त है दुनिया में जितना भी जैसे भी हासिल करते रहना आखिर मौत के बाद कुछ भी किसी का नहीं रहता है । लेकिन पैदा होते ही रिश्तों संबंधों की अनगिनत शर्तें लागू होती रहती हैं और लाज़मी होता है उनको मंज़ूर करना । जन्म देने वाले संतान को पालते हैं बड़ा करते हैं बहुत प्यार से तमाम तरह से शिक्षा विचार से बुद्धिमान शक्तिशाली बनाते हैं मगर साथ साथ इक अंकुश लगा रहता है उनकी बातों को बगैर कोई सवाल किये मानते रहना । बस जहां चुपचाप हां में हां नहीं मिलाई वहीं टकराव की शुरुआत हो जाती है । कोई समझ नहीं पाता है भविष्य में ऐसे कितने नियम कायदे स्वीकार करने होते हैं ज़िंदा रहने को कदम कदम । और ये सब इस तरह चलता रहता है कि इंसान जानता तक नहीं कैसे इक अजब अनचाहे मोहजाल में फंसता चला जाता है और उन सब में खुद का अस्तित्व दिखाई नहीं देता है । अधिकांश सोचते समझते नहीं उनका जीवन क्या है किसलिए जी रहे हैं बस साल दर साल उम्र की सालों की संख्या बढ़ती जाती है जबकि सौ बरस की ज़िंदगी में जिए कभी नहीं होते सही मायने में ।  

आज़ादी शब्द को लेकर इक जाल बुना गया है चालाक लोगों ने शासन करने को सबको गुलामी की जंज़ीरों में जकड़ा हुआ है । कुछ मुट्ठी भर लोग मनमानी करने ऐशो आराम से शान ओ शौकत से रहने की कीमत भोले लोगों से वसूलते हैं छीनते हैं झूठे वायदे और उनकी देश समाज की भलाई की बातों वाले भाषण देकर । सब नियम सारे कानून संविधान दावा करते हैं अधिकार देने का जबकि दरअसल इसकी आड़ में आपको बेबस और कमज़ोर करते हैं कोई सरकार कोई अदालत कोई सुरक्षा व्यवस्था आपको अधिकार न्याय समानता देने को विवश नहीं है । आपको कायदे नियम पालन नहीं करने पर दंडित करने वाले खुद कर्तव्य नहीं निभाने पर किसी तरह से दंडित नहीं हो सकते हैं । समय बदलता रहता है मगर आम ख़ास बड़े छोटे का भेदभाव नहीं मिटता है । अमीर और अमीर ताकतवर अधिक ताकतवर बनता जाता है और शासक सत्ता बेरहमी से लूट का कारोबार करती रहती है । सामाजिक व्यवस्था समाज की भलाई नहीं करती और परंपराओं की बेड़ियां आदमी को अनचाहे अनुचित बंधनों रीति रिवाज़ों की कैद से मुक्त नहीं होने देती हैं ।
 
किसी आसमान पर कोई भगवान या खुदा ईश्वर है या नहीं लेकिन धरती पर जिसे देखते हैं खुदाई की बात करता है । खुद को साबित करने को कितने हथकंडे अपनाते हैं सभी तथाकथित महान बड़े लोग । माजरा यही समझ नहीं आया किसी को अच्छाई करने वाले को अच्छा कहलाने की चाहत नहीं होती है ।  खराब लोग बुराई करते हैं लेकिन कहलाना भले इंसान चाहते हैं तभी धनवान लोग शासक देशभक्ति का दम भरने वाले धर्म उपदेशक समाजसेवक होते कुछ हैं करते जो भी हैं दिखलाते उसका विपरीत हैं आडंबर करते हैं । लगता है बल्कि यकीनन ऐसा ही हो सकता है कि भगवान ने अपना गुणगान अपनी उपासना इबादत अर्चना की ज़रूरत ही नहीं समझी हो एवं कोई और हैवान जैसा भगवान बनकर अपने खराब कार्यों पर पर्दा डालने का कार्य कर रहा है । अपनी इस दुनिया की हालत देख कर यही लगता है कि यहां शैतान का शासन चलता है हैवान की हैवानियत फलती फूलती है और भलेमानुष लोग बर्बाद होते रहते हैं । शैतान भगवान को असहाय कर मौज मस्ती कर रहा है ।    
 
 

 
  

 

 

 

1 टिप्पणी:

  1. जीवन मरण और शर्तों ,अंकुशों से होता हुआ व्यवस्था पर चोट करता बढ़िया लेख सर

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