हर ख़ुशी हमारे लिए ( राज़ की बात नहीं ) डॉ लोक सेतिया
राज़ की बात नहीं थी खुद हम ही नादान और नासमझ थे जो इतनी सी बात समझने में सालों लग गए कि जिनको हमारी ख़ुशी हमारी पसंद से कोई मतलब नहीं था सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहते थे बदले में मुझे क्या किसी को भी खुश देखना नहीं चाहते थे उनकी चाहत में दुःखी होने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए । चलो देर ही से सही ये नुस्खा समझ आया तो सही । अश्कों से रिश्ता निभाता रहा बिना बात मुस्कराया तो सही । ख़ुशी कब से खड़ी हुई थी उसको बुला कर खुद अपने दिल में बिठाया तो सही । दुनिया से जो प्यार कभी मिलता नहीं वही अपने आप से पाया तो सही । हम अकेले नहीं खुद साथ हैं अपने ज़माने को कर के दिखाया तो सही । ग़मों से दामन छुड़ाया भी नहीं खुशी को गले से लगाया तो सही । चमन कुछ उदास था मुद्दत से बहारों का मौसम आया तो सही । कोई सूरज कोई चांद नहीं दिखाई देता इक छोटा जुगनू टिमटिमाया तो सही । निराशा के घने बदल छाए हुए थे पर आशा का दीपक जलाया तो सही । तकदीर ने लिखी नफ़रतें ही नफ़रतें साहस से लकीरों को मिटाया तो सही । दर्द के गीत कितने मधुर लगते थे ख़ुशी का नग़्मा महफ़िल को सुनाया तो सही ।
भूल हुई जो हमने बेदिल बेरहम दुनिया वालों से जीने की इजाज़त मांगी , मरने की सज़ाएं देने वाले भला किसी को अपनी ज़िंदगी पर इख़्तियार देते हैं । हमको हंसता मुस्कराता देख पूछते हैं माजरा क्या है कैसे ऐसे हालात में खुश रहते हो , रोने की आदत नहीं फिर भी कभी आंखें नम हों तो ज़माना उस पर भी तंज कसता है । हमदर्द ज़माना नहीं है किसी के लिए भी । चतुराई चालाकी चालबाज़ी झूठ का आडंबर नहीं सीखा हमने कभी जिन्होंने इन सभी को आज़माया बहुत कुछ छीना चुराया आखिर उनका अंजाम भी सामने नज़र आया इक दिन उनको खाली हाथ पाया । सच से नज़रें चुराने वाला हमेशा है पछताया दुनिया वालो ने जाने क्यों झूठ का परचम लहराया । हमने कभी नहीं दोस्तों को परखा न कभी आज़माया फिर भी अफ़सोस नहीं है भरोसा किया और धोखा खाया । ऐतबार पर ऐतबार करते हैं ये ख़ता है तो हो हम तो खताएं बार बार करते हैं । आखिर इक बात कहनी है अपनों-बेगानों सभी से , बस और कुछ नहीं चाहता किसी से भी ।
बहुत ही सुन्दर रचना हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआदरणीय सादर