मई 01, 2021

कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं ( अजब-ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया

 कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं ( अजब-ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया 

   जिसको देखते हैं वही भगवान को लेकर ईश्वर परमात्मा खुदा जीसस वाहेगुरु को लेकर सबको बहुत कुछ समझाता नज़र आता है जबकि सच ये है कि खुद नहीं समझता समझाना किसे है समझना क्या है। सदियों से लोग उलझे हुए हैं उस विषय की चर्चा में जो कोई उलझन ही नहीं है उलझाने को उलझन बनाकर नासमझ लोगों ने विश्वास आस्था को काल्पनिकता का सहारा लेकर मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे को उसका घर बता दिया है जिसका निवास कण कण में है हर इंसान जीव जंतु पेड़ पौधे से हवा पानी कुदरत की हर वस्तु में है। आजकल कोरोना को लेकर कुछ उसी तरह से होने लगा है जिसका किसी को कुछ पता नहीं उसको लेकर हर कोई समझाने लगा है दुनिया को। शायद हम अपनी नासमझी पर शर्मिंदा नहीं होते गर्व करते हैं। किसी दार्शनिक ने कहा था जो समझता है उसको सब मालूम है वो कुछ भी नहीं जानता और जो कहता है कि उसे सब पता नहीं वो कुछ समझता है। ये विडंबना है हैरानी है या इत्तेफ़ाक़ है कि भगवान की तरह कोरोना का शोर सभी जगह है लेकिन उसको पहचानता नहीं ठीक से कोई भी। इक भूलभुलैयां में भटकाते हैं लोग और ऐसे भी हैं जो भगवान की ही तरह कोरोना का भी कारोबार करते हैं भयभीत कर अपना अपना स्वार्थ पाने को। कोई उपचार नहीं होने की बात जानकर भी अपने फायदे को उपचार की बात कहकर अपना मकसद तलाशता है तो कोई वैज्ञानिक और विशेषज्ञ लोगों की खोज वैक्सीन पर अनावश्यक टिप्पणी कर आशा की बात को निराशा में बदलने की कोशिश करता है। खेद की बात है मानवीय आपदा को भी निजी हित को उपयोग करने की अमानवीय कोशिश करना। 
 
सोशल मीडिया पर इतनी झूठी सच्ची और आधाररहित जानकारी लोग भेजते हैं और हम बिना विचारे औरों को भेजने का कार्य कर भागीदार बन जाते हैं इक सच को रहस्य बनाने में। जिस का जो काम है जिस विषय की समझ और जानकारी है उन्हीं पर उस विषय को छोड़ना उचित है। सभी को सब कुछ समझ आना संभव नहीं है। कम से कम निराशाजनक और तर्करहित बातों को बढ़ावा देना कभी नहीं करना चाहिए। इन आधी अधूरी कच्ची पक्की बातों से लोग सच पर संदेह और झूठ पर विश्वास कर सकते हैं जिस से उनको ऐसा नुकसान हो सकता है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। सोचिए कोई भटका हुआ आपसे किसी गांव नगर या जगह का रास्ता पूछता है और आपको वास्तव में मालूम नहीं होने पर बिना सोचे किसी डगर पर इशारा करते हैं तब मुमकिन है आप विपरीत दिशा दिखलाकर अच्छाई की जगह बुराई का कार्य कर रहे हैं। व्हाट्सएप्प फेसबुक पर यही पागलपन दिखाई देता है। 
 

          चलो कोशिश करते हैं कुछ समझने की ( चिंतन ) बाकी बात आगे 

  जिनको हमने क्या क्या समझा उन सभी को लेकर सोचना चाहिए। भगवान का नाम लेने से क्या भगवान खुश हो जाएंगे जैसे नेता उपदेशक भगवाधारी अपनी शोहरत के भूखे होते हैं। कभी इस कभी उस स्थल जाकर दर्शन करते हैं अगर दर्शन हो गए तो दूसरी जगह जाना ही नहीं पड़ता सब मिल जाता ईश्वर से मिलकर बाकी क्या रह जाता पाने को। मगर उनको कुछ और चाहिए जितना मिला कम लगता है दाता नहीं भिखारी हैं ये कभी संतुष्ट नहीं होते। और पैसा और ताकत और सत्ता का विस्तार इनकी हवस की कोई सीमा नहीं। आपको जो कलाकार जो टीवी सिनेमा खेल के खिलाड़ी भगवान की तरह लगते हैं उनको पैसे पद और दिखावे के आदर की भूख रहती है ये किसी को कुछ भी देते नहीं देने की बात करते हैं बदले में और पाने को। तथाकथित बाबा लोग कितना धन जमा हो उनको थोड़ा लगता है बातें बड़ी बड़ी करते हैं। अख़बार टीवी वाले लिखने वाले भी खुद को सब जानने समझने की बात कहते हैं वास्तव में पैसे की खातिर रसातल में पहुंच चुके हैं उनका भगवान पैसा है जो खरीदता है उसी को अपना ज़मीर बेचते हैं। धर्म की जनसेवा की बात करने वाले खुद अपने लिए अधिक पाने को पागल होते हैं। इनको आपने आदर्श समझ लिया है यही सब से बड़ा गुनाह है क्योंकि सत्य को छोड़ आप झूठ की महिमा का गुणगान करते हैं। 
 
राम राम जपने से कल्याण होता है तो कोरोना कोरोना की रट लगाने से भी मुमकिन है कोरोना को आप पर दया आ जाये मगर ऐसा नहीं होता लगता है। कोरोना का जाप छोड़ कोई और अच्छा काम करें तो बेहतर होगा और माला फेरने से मोमबत्ती जलाने से इबादत करने से अच्छा है किसी को जाकर सहारा दो किसी भूखे को रोटी खिलाओ किसी बीमार को उपचार उपलब्ध करवाओ किसी को शिक्षा का वरदान देने का दर्दमंद बनकर इंसान को इंसान समझ भाईचारा और मेलजोल बढ़ाने की बात करो। नफरत की अहंकार की बातों से बचकर सही राह अपनाओ।
 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें