अप्रैल 29, 2021

ज़िंदा नहीं क्यों ख़ौफ़ मौत का है ( दरसल ) डॉ लोक सेतिया

    ज़िंदा नहीं क्यों ख़ौफ़ मौत का है ( दरसल ) डॉ लोक सेतिया 

   सोचते रहते हैं सांस की गिनती कितनी है कितनी बाक़ी है दिल की धड़कन बढ़ती घटती रहती है नींद रात रात भर नहीं आती क्या ये जीना है मौत का ख़ौफ़ ज़िंदगी पर भारी है। सच तो ये है हमने जीना कभी सीखा ही नहीं जितना जिये जैसे जिये उसको ज़िंदा रहना कहते ही नहीं बस समझते रहे कि हम ज़िंदा हैं जीना क्या होता है समझा नहीं सीखा नहीं। सच को सच झूठ को झूठ अच्छे को अच्छा बुरे को बुरा कहने का साहस नहीं किया जब जिसने मज़बूर किया हमने सर झुका कर उसको अपना मालिक और खुद को गुलाम बना लिया। बड़ी इज्ज़त से घर बुलाकर बेइज्ज़त किया हर किसी ने और हम डरे सहमे ख़ामोश रहे किसी की दिलफ़रेब बातों को सुनकर झूठी तसल्ली खुद को देते रहे कि ये सितमगर कभी हमारे दुःख दर्द को समझेगा और हमको जीने की आज़ादी देगा। वास्तव में हम बेहद कायर लोग हैं जो अपनी आज़ादी अपने अधिकार की लड़ाई खुद लड़ना नहीं चाहते बस ख़ैरात में हासिल करना चाहते हैं। धीरे धीरे हम पर ज़ुल्म और हम पर शासन करने वाले लोग हमें इतने भाने लगे कि उनसे नफरत करना उनसे जंग लड़ना छोड़ हम उन्हीं के कदमों पर चलने उन जैसा बनने लग गए। सभी अपने से नीचे और अपने से कमज़ोर पर ज़ोर आज़माने लगे और झूठ को सच बताकर सच से नज़रें चुराने लगे। ज़मीर को मारकर  बेजान किसी  लाश जैसे चलते फिरते लोग क्या क्या हैं इसका शोर मचाने लगे। मौत तो हर हाल सभी को इक दिन आनी ही है मगर अफ़सोस इसका है कि हम में से अधिकांश लोग कभी ज़िंदा रहने जीने का ढंग भी नहीं समझ पाये। सालों की गिनती को जीना नहीं कहते हैं जीना कहते हैं हौंसलों से ज़िंदगी की हर चुनौती से हराकर जीतना साहस से अपने दम पर। 
 
  जीना उसी का सार्थक होता है जो सिर्फ अपनी खातिर नहीं देश समाज की खातिर सही मार्ग पर चलकर सच्चाई ईमानदारी और निडरता पूर्वक रहता है हर हालात में कठिनाई से घबराकर गलत से समझौता नहीं करता कभी। धन दौलत से सामान मिलता है ईमान नहीं और पढ़ लिख कर उच्च शिक्षा अथवा पद पाकर भी नैतिकता और आदर्शों का पालन नहीं करना तो अज्ञानता से भी खराब है जैसे आंखें होते आंखों पर स्वार्थ की पट्टी बांध अंधा बनकर जीना। जो उजाला करने को जलने की जगह अंधेरों का कारोबार करते हैं बड़े बदनसीब लोग होते हैं। ऐसी शिक्षा जो आपको अच्छा इंसान नहीं बनाती उसको हासिल करना किस काम का है। हैरानी की बात है लोग शोहरत दौलत को पाकर अहंकार करते हैं ये समझते हैं कि उनके बाद उनका नाम रहेगा जबकि वास्तव में जीते जी ऐसा कुछ नहीं करते जो समाज देश और विश्व कल्याण के लिए उपयोगी साबित हो। हमने इंसान बनकर अपना कर्तव्य निभाना ज़रूरी नहीं समझा है हमने जो कहा आचरण में नहीं किया खुद को अच्छा सच्चा महान कहना वास्तव में छोटे होने का सबूत है। लोग आपको बड़ा समझें ये आपकी चाहत नहीं होनी चाहिए बल्कि सही मार्ग पर चलते इसकी चिंता ही नहीं करनी चाहिए। खुद को अपने सामने रखकर विवेक से सवाल करना चाहिए कि क्या सच में मुझे ऐसा होना चाहिए जैसा हूं। 
 
हम समझते हैं दुनिया को अपनी चतुराई से समझ से धोखा देकर खुद ऊपर बढ़ रहे हैं जबकि असल में हम अपने आप से नज़रें नहीं मिलाते खुद से सबसे अधिक छल कपट करते हैं। जो लोग बौने कद वाले होते हैं समझते हैं जिनका कद हैसियत उनसे बड़ी ऊंची है उनको छोटा साबित कर खुद उनसे महान और बड़े बन जाएंगे वास्तव में पहाड़ पर चढ़ कर और भी छोटे लगते हैं। ऊंचाई पर खड़े होने से कोई बड़ा नहीं होता है इसी तरह बड़े पद पर आसीन होने से कोई ऊंचाई को नहीं हासिल कर सकता है। ज़िंदगी जीने का अर्थ है देश समाज को सभी को कुछ देने का कार्य करना जो शायद ही हम करते हैं हम तो सिर्फ खुद अपने लिए अपने स्वार्थ सुख सुविधा अधिकार पाने को लालायित रहते हैं किसी पागलपन की तरह धन दौलत शोहरत की अंधी दौड़ में शामिल होकर ज़िंदगी को जीने का अर्थ ढंग सलीका सीखते नहीं कभी। बस जिये और मर गए इक नाम बनकर।
 

 
 
    

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