अप्रैल 18, 2021

मुसीबत से डरने वाले ( जंग नहीं लड़ना ) डॉ लोक सेतिया

    मुसीबत से डरने वाले  ( जंग नहीं लड़ना  ) डॉ लोक सेतिया

    ये ऐसे कैसे पेड़ लगाए हैं हमने जो छाया नहीं देते कोरोना की धूप में। कोरोना इक दुश्मन है जिसने हमला किया तब सीमा पर तैनात सैनिक सोये हुए थे अर्थात सरकार स्वास्थ्य विभाग और विश्व स्वास्थ्य संघठन निक्क्मे नाकाबिल साबित होने के बाद नसीहत देकर अपनी गलती को स्वीकार ही नहीं करते हैं। सोचो अगर सीमा पर तैनात फौजी दुश्मन के हमले पर सामने डटकर लड़ने की बजाय लोगों को भागो अपनी जान बचाओ घर में बंद हो जाओ अपने आप को छुपाओ किसी को नज़र नहीं आओ सबको दुश्मन समझो हाथ से हाथ नहीं मिलाओ दूर होकर उसको दूर भगाओ। ये कोई नहीं बता सकता है सरकारी रोज़ बदलते आदेश किस काम आये मुमकिन है जिनको कोरोना से बचाया जा सकता था नहीं बचे क्योंकि बचाने वाले सैनिक अपनी जान को खतरे में नहीं डालना चाहते थे उनको छूना तक नहीं जांच और उपचार कैसे संभव है आडंबर किया जाता है। जिनको पैसा और शोहरत अधिक महत्वपूर्ण लगते हैं उनको फ़र्ज़ की खातिर जान जोखिम में डालना कैसे मंज़ूर होगा। भगवान जानता होगा अगर कोई भगवान वास्तव में कहीं है कि कितने रोगी किसी और रोग से पीड़ित थे मगर कोरोना के नाम पर बलि चढ़ा दी गई। जब दवा ईलाज वैक्सीन तक सब जगह वास्तविक उपयोग से अधिक महत्व अन्य बातों पर विचार किया जाए और सरकार कंपनी तक इसको खेल समझने का अपराध करते हैं तब नतीजा क्या होगा। 
 
  जो लोग किसी राजनेता को कोई लड़ाई हारने का दोषी बताते रहे खुद उसी दुश्मन की चाल में फंसकर अपनी साख को दांव पर लगाते रहे। जिस समय दुश्मन दोस्ती की आड़ में पीठ में छुरा घोंपता है तब लापरवाही कह सकते हैं मगर जब वही दुश्मन फिर से आपके साथ उसी बात को दोहराता है तब हम मूर्ख साबित होते हैं। सरकार टीवी सोशल मीडिया स्वास्थ्य विभाग ने साल में कोरोना से जंग लड़ने का शोर किया है लड़ने की तैयारी नहीं की बस टोटके आज़माते रहे और केवल अपने बचने के रस्ते ढूंढते रहे। 130 करोड़ जनता की जान से अधिक उनको सत्ता चुनाव और धर्म के नाम पर भीड़ जमा कर अपनी नासमझी से हालत बिगाड़ने का काम किया है। असली जंग का मैदान छोड़कर ये सभी खुद को जो बन नहीं सकते होने कहलाने की कोशिश करते रहे। क्या ऐसे नेताओं और सरकारों के आपराधिक आचरण की अनदेखी की जा सकती है। अस्पताल श्मशानघाट सभी शहर गांव उनकी नाकामी और विवेकहीनता विचारहीनता की मिसालें सामने देख रहे हैं। अंधी पीसे कुत्ता खाये यही हो रहा है क्या अपने इस से बदतर हालात पहले कभी देखे हैं। 

 

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