नवंबर 22, 2020

आपको कब किस पैथी से ईलाज करवाना चाहिए ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

       आपको कब किस पैथी से ईलाज करवाना चाहिए ( आलेख ) 

                                       डॉ लोक सेतिया 

सबसे पहले ये बताना ज़रूरी है कि मैंने जी ए एम एस ( आयुर्वेदाचार्य ) कोर्स पांच साल का किया था 1973 वर्ष में जो अलोपैथी और आयुर्वेद दोनों की शिक्षा का इंटीग्रेटेड सिस्टम का डिग्री कोर्स हुआ करता था। मैंने 45 साल तक निजी क्लिनिक में स्वास्थ्य सेवा देने का कार्य किया है शुरुआत में दोनों पैथी से उपचार किया मगर पिछले दस साल से मुख्यता आयुर्वेद का उपयोग किया है। मैंने आयुर्वेद की जानकारी को लेकर पहले कई बार पोस्ट लिखी हैं मगर मेरी कोई निर्धारित धारणा अथवा निहित स्वार्थ नहीं रहा है मकसद रोगी को उचित सलाह देना रहा है। अपने लेखों में मैंने सोशल मीडिया अख़बार इश्तिहार टीवी विज्ञापन और किसी के हज़ारों की भीड़ भरी सभाओं में देसी अथवा आयुर्वेदिक उपचार करने की अनुचित बातों का विरोध किया है और ऐसा करने वालों को आयुर्वेद का शुभचिंतक नहीं उसका दुश्मन कहा है। वास्तव में आयुर्वेद या अन्य पैथी एलोपैथिक होम्योपैथिक सिद्ध एवं यूनानी पद्धति कोई मुनाफ़ा कमाने का व्यवसाय नहीं होकर समाज को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाना मुख्य मकसद था और होना चाहिए। 
 
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि हमने पुरानी सभी पैथियों को कितने सालों तक कोई महत्व नहीं देकर बड़ी भूल की है जबकि आधुनिक अलोपैथी को बदलते समय के साथ और अच्छा और उपयोगी बनाने का काम किया है। रोग की जांच से उपचार और दवाओं के शोध अदि से स्वास्थ्य सेवाओं को गंभीर रोगों का ईलाज सफलता पूर्वक करने का लाजवाब काम किया है। ऐसा आयुर्वेद या बाकी पैथी पर ध्यान नहीं दिया गया क्योंकि सरकार देश या राज्य की का स्वास्थ्य सेवाओं का करीब करीब पूरा बजट अलोपथी पर खर्च किया जाता रहा है। लेकिन इधर आजकल सरकार और लोगों का ध्यान आयुर्वेद की तरफ होने लगा है ये समझ कर कुछ लोगों ने आयुर्वेद को ईलाज दवा रोग जांच अदि की समझ या चिंता परवाह छोड़ अवसर का फायदा उठाने को अनुचित ढंग से उपयोग करना शुरू कर दिया है। बगैर शोध या सबूत झूठे दावे कर घटिया स्तर की दवाओं का सामान की तरह उपयोग करने का चलन शुरू कर लोगों को गुमराह करना शुरू किया है। 
 
आपको सावधान रहना चाहिए क्योंकि जब आपकी ज़िंदगी का स्वास्थ्य रहने का सवाल हो तब आपको सबसे अच्छे और कारगर उपचार को अपनाना चाहिए। जो भी आपको हृदय रोग उच्च रक्तचाप कैंसर मधुमेह जैसे रोगों या चर्बी मोटापा घटाने को देसी नुस्खे बताते हैं उनका कोई शोध आधुनिक समय अनुसार किया नहीं गया है अत: भरोसा करना कठिन है कि फायदा होगा या नहीं होगा। क्या सीमा पर किसी सैनिक को ऐसा हथियार देना सही होगा जिसका यकीन नहीं हो कि जंग होने पर काम करेगा या नहीं। रोग होने पर आपको रोग के कारण से लड़ने और जीतने तंदरुस्त होने को ठीक उसी तरह निर्णय करना चाहिए। सस्ता महंगा नहीं असरकारी उपचार होना चाहिए। 
 
आपको शायद ये बात बहुत पहले समझनी चाहिए कि अपने स्वास्थ्य को हमेशा महत्वपूर्ण मानकर नियमित रूप से अपने विश्वसनीय डॉक्टर की सलाह लेते रहना चाहिए। फीस बचाने के लालच में खुद अपने डॉक्टर नहीं बनना चाहिए न ही बिना शिक्षा पाए लोगों की बात मानकर खुद अपनी ज़िंदगी से खिलवाड़ करना चाहिए। सतर्क रहें सावधान रहें विज्ञापन सुनते हैं आरबीआई कहता है , बस उसको यहां भी ध्यान रखेंगे तो नुकसान से बच सकते हैं। ध्यान रहे आपकी जान की कीमत आपकी बैंक राशि से कहीं बढ़कर है बेशक जमाराशि करोड़ों करोड़ ही क्यों नहीं हो। आपको ये बात सही लगे तो अपने दोस्तों और जानने वालों को संदेश भेज सकते हैं। 
 
आयुर्वेद हज़ारों साल पुराना होकर भी अधिकांश बातों में आधुनिक संदर्भ में सही साबित होता रहा है अपने काल में किसी लैब में टेस्ट की सुविधा नहीं होने के बावजूद जानकर वैद्यों ने अनुभव और निदान के ढंग से उपयोग करने के बाद तार्किक विश्लेषण किया तभी औषधि एवं उपचार विधि घोषित की थी। सबसे महत्वपूर्ण उनका हानिकारक लक्षण नहीं होना और हमेशा सही पाया जाना उसकी उपयोगिता को महत्वपूर्ण बनाता है। साथ ही ज़रूरत है उसको और भी आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से जांचने परखने की आवश्यकता को अपनाना। बेशक इस काम को अंजाम देने को बहुत कार्य करना अभी बाकी है। मगर हमें इस बात को अनदेखा नहीं करना चाहिए कि बहुत रोग अभी भी ऐसे हैं जिनका उपचार आयुर्वेद से ही पूर्णतया संभव है। वास्तव में कोई भी अकेली पैथी देश या विश्व भर के स्वास्थ्य के लिए काफी नहीं है और सभी पैथी के शिक्षित चिकित्सक आपसी तालमेल बिठाकर अपने उद्देश्य को हासिल कर सकते हैं। 
 
जैसे हमने कहीं जाना होता है तो हम पैदल चलकर या किसी वाहन से अथवा हवाई जहाज़ या जलमार्ग से कश्ती या अन्य साधन उपयोग करते हैं। मकसद जिस मंज़िल को पाना है उसको ध्यान में रखकर अपनी ज़रूरत और सुविधा को समझ कर निर्धारित करते हैं। खतरे और दुर्घटना के साथ सुविधाजनक होने तक सभी का विचार रहता है मगर घर बैठे मंज़िल नहीं मिलती है जाना होता है। जीवन के सफर में कठिनाई मुश्किल डगर मिलती है तब साहस से आगे बढ़ते हैं यही हमने रोग होने पर स्वस्थ होने की राह चलने को करना होता है। भविष्य कोई नहीं जानता फिर भी आशावादी सोच रखते हैं कि भविष्य अच्छा और बेहतर होगा। 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें