महिमा लॉक डाउन की ( खेल करोड़पति का ) डॉ लोक सेतिया
महानायक कहलाते हैं कोई किसी को कॉल करता है तो उपदेश दे रहे हैं अभी आप घर बैठे खेलिए जब तक उपचार नहीं कोई तकरार नहीं। आप खुद घर बैठ ठाठ से रह सकते थे कोई दाल रोटी की चिंता नहीं थी हिसाब नहीं लगाया कितना धन बैंक खाते में जमा है। आयु भी वरिष्ठ नागरिक वाली है लोग भले कहते रहें आपकी जवानी का क्या राज़ है। बड़े और महान लोग जो आपको समझाते हैं खुद नहीं समझते कभी। हर सवाल पर इसको उसको उनको लॉक किया जाये पूछते हैं कर देते हैं आप खुले में सांस लेते हैं। घर एक नहीं कई बंगले हैं चैन घर में नहीं उस जगह मिलता है जहां धन दौलत की बारिश हो। नसीब वाले हैं शासक की तरह शान भी रखते हैं गुणगान भी करवाते हैं और भगवान भी बन जाते हैं। तुलसीदास की नहीं आधुनिक काल के राम की कथा सुनाते हैं झूमते हैं नाचते नचवाते हैं खुद पर इतराते हैं। सात करोड़ का सवाल है सोचकर जवाब देना दोहराते हैं। घर बैठे भी आमदनी होती रहती है फिर भी करोड़पति खेल से दिल बहलाते हैं टीवी चैनल से मिलकर धंधा चलाते हैं। आपको दो गज़ दूरी हाथ धोना है ज़रूरी पाठ पढ़ाते हैं बहती गंगा है मनोरंजन और तकदीर आज़माने का खेल जुआ मत कहना समझदारी बतलाते हैं।
सबसे पहले लॉक डाउन लक्ष्मण जी ने रेखा बनाकर समझाया था इस से बाहर निकलोगी तो रावण बनकर कोरोना अपहरण कर सकता है। सोने का भाव महंगा है लेकिन आपको हिरण चाहिए सोने का पहले सुरक्षित रहने का उपाय जान लो अन्यथा सोने की लंका मिलेगी फिर भी खुश नहीं रहोगी। आदमी को नसीब दो गज़ ज़मीन भी होती नहीं है क़फ़न तक नापकर देते हैं फिर भी कितना कुछ और चाहिए। बंद ताले में कितना धरा रहेगा तिजोरी का खज़ाना और बैंक बैलेंस साथ जाता नहीं जिनको मिलेगा उनकी काबलियत पर भरोसा रखते तो हज़ार झूठ वाले धंधे जाने किस किस को ठगकर लूटकर रईस बनने की ज़रूरत नहीं पड़ती। सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है गायक मुकेश गीतकार शैलेंदर संगीत शंकर जयकिशन फिल्म तीसरी कसम। सच बोलना मुश्किल नहीं होता लेकिन सच बिकता नहीं बाज़ार झूठ से चलता है। अदालत भी गवाही सबूत पर फैसला करती है और गवाह झूठी गवाही देकर कमाई करते हैं सबूत घड़ने को देश की पुलिस सीबीआई का कोई सानी नहीं है टीवी चैनल कल्पना करने में बेमिसाल हैं जो नहीं हुआ खबर बन सकता है और जो हर जगह घटता है खबर में नहीं होता है।
बैंक और सोने के गहने का विज्ञापन से लेकर भुजिया खाने तक सभी मुनाफ़ा कमाने के काम आते हैं। जब किसी को बोलने के पैसे मिलते हैं तो उसको वही बोलना होता है जो बाज़ार वाले चाहते ख़रीदार को पसंद आये सच है चाहे झूठ या फिर छलने की बात । फोन पर समझाते हैं हर उलझन को सुलझाते हैं सोचते हैं लोग नासमझ हैं बार बार समझाते हैं ज्ञान की गंगा जिधर मर्ज़ी बहाते हैं। लालच बढ़वाते हैं फिर लोभ मोह माया छोड़ने का संदेश भी सिखलाते हैं। सप्ताह के दिन तक गिनते गिनवाते हैं दुनिया में लोग खाली हाथ आते हैं खाली हाथ वापस जाते हैं ये जो मोह माया से बचने की राह दिखाते हैं अपने दिल पर काबू नहीं रख पाते हैं। हर सप्ताह किसी वास्तविक सामाजिक कार्यकता को कर्मवीर नाम से बुलवाते मिलवाते हैं कमाल है दर्शक फिर भी असली और नकली का अंतर समझ नहीं पाते हैं। ऐसे लोग जब देश समाज की दुर्दशा पर दर्द भरी वास्तविकता बतलाते हैं कभी कभी महानायक दांतों तले उंगली दबाते हैं हैरानी जतलाते दिखलाते हैं मगर शायद ही सोचते हैं खुद जो खेल खेलते खिलवाते हैं क्या वास्तव में कोई सही दिशा दिखलाते हैं। बदनसीब बाल मज़दूरों शोषण की शिकार महिलाओं और करोड़ों लोगों की जीवन की वास्तविक समस्याओं की बात जानकर शायद भूलकर किसी फ़िल्मी कहानी की तरह अपने बोलो डायलॉग की तरह मख़मल के बिस्तर पर चैन से सो जाते हैं। करोड़पति खेल टीवी शो नहीं इक सुनहरे सपनों का जाल है जानते हैं मगर कभी अपने खेल की सच्चाई समझाने वाले सवाल किसी से पूछे नहीं जाते हैं।
सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है
न हाथी है ना घोड़ा है,
सजन रे झूठ मत बोलो,
न हाथी है ना घोड़ा है,
सजन रे झूठ मत बोलो
तुम्हारे महल चौबारे,
अकड़ किस बात की प्यारे
अकड़ किस बात की प्यारे,
सजन रे झूठ मत बोलो,
भला कीजे भला होगा,
बही लिख लिख के क्या होगा
बही लिख लिख के क्या होगा,
सजन रे झूठ मत बोलो,
लड़कपन खेल में खोया,
बुढ़ापा देख कर रोया
बुढ़ापा देख कर रोया,
सजन रे झूठ मत बोलो,
न हाथी है ना घोड़ा है,
सजन रे झूठ मत बोलो,
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को "अन्नदाता हूँ मेहनत की रोटी खाता हूँ" (चर्चा अंक-3893) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत खूब
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