अगस्त 30, 2020

तुझे हंसना मना है जुर्म रोना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 तुझे हंसना मना है जुर्म रोना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

तुझे हंसना मना है , जुर्म रोना है 
यहां औरत है क्या बस इक खिलौना है ।

नई कोई कहानी लिख नहीं सकते 
तुझे फिर से ज़लीलो-खार होना है । 

समझते लोग खुद को सब फ़रिश्ते हैं 
शराफ़त बोझ तेरा तुझको ढोना है । 

मुहब्बत ढूंढना मत जाके महलों में 
नहीं उसके लिए कोई भी कोना है । 

सरे-बाज़ार बिकना तुझको आखिर है 
तुम्हारी लाश पर चांदी है सोना है । 

बताओ कोख़ हर इक पूछती सब से 
उगाये फूल कांटों का बिछौना है । 

न पूछो हाल "तनहा" क्या हमारा है 
ये आंचल आंसुओं से रोज़ धोना है ।

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