अगस्त 26, 2020

ज़िंदगी मिली अजनबी सी ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

      ज़िंदगी मिली अजनबी सी ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

मिली ज़िंदगी फिर भी मिलती नहीं 
दूर रहती कभी पास आती ही नहीं

कुछ ख़राबी नहीं अच्छी लगती नहीं 
जैसी हम सोचते हैं वैसी होती नहीं । 

जिन्हें महफ़िल की चाहत अकेले हैं 
एक हम हैं जो तन्हाई अपनी नहीं 

कोई अपना सा कहीं मिलता कभी 
वरना तन्हाइयां हमको खलती नहीं । 

फ़ासले भी नहीं करीबी अजीब है ये 
कुछ कहते नहीं कुछ भी सुनते नहीं

दो किनारे हैं बहती इक नदी बीच में 
चलती रहती कहीं भी ठहरती नहीं । 

जानते नहीं कोई भी अजनबी नहीं
मिला हमको वो कम भी तो है नहीं 

जीने को जीते हैं जीते मगर हम नहीं 
ख़ुशी ज़िंदगी नहीं कोई ग़म भी नहीं । 

ग़ज़ल कविता नहीं और कहानी नहीं
प्यास बाक़ी नहीं मिलता पानी नहीं 

कौन समझे ख़ामोशी की दास्तां को 
जो नहीं समझे उसको सुनानी नहीं ।




   







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