अप्रैल 02, 2020

कोरोना के अंत की शोध-कथा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

   कोरोना के अंत की शोध-कथा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

   आप सभी जानने को उत्सुक हैं कि कोरोना क्या बला है और क्या इस से बचा जा सकता है कब इसका अंत होगा। आप के मन की दुविधा और संशय का अंत करने को ये अध्याय शुरू किया गया है। कोरोना डर है और कायरता है और डर और कायरता का अंत निडरता और साहस से किया जा सकता है। क्या कोई भी रोग ऐसा है जो अगर नहीं होता तो लोग अमर हो जाते ये तो आपको विदित है जो भी आया है उसको जाना है ये कोरोना भी केवल बहाना है। मौत के सौ नहीं असंख्य बहाने हैं जाने किस बहाने कब कहां उस से मिलन या मुलाकात हो जाये , ज़िंदगी से पहचान हो नहीं हो मौत से सामना होना विधि का विधान है। अपने सुना होगा जब कभी किसी जगह कोई मानवीय आपदा कोई महामारी फैलती थी तब शासक अन्य भले लोग खुद जाते थे उन की सहायता करने को घबराते नहीं थे कि हमको भी वहां जाकर कोई रोग हो सकता है और मौत के डर से भलाई का कार्य करना नहीं छोड़ते थे। अब आपको उनसे दूर रहकर घर में छिपने की सलाह देने वाले आपकी सुरक्षा नहीं करने और आपको खुद अपनी जान बचाने की सलाह देते हैं क्योंकि उनको केवल अपने जीवन ही नहीं जो जो भी हासिल किया है जिस किसी भी तरह से सत्ता धन ताकत उन सभी के खोने का भय है उनकी मोहमाया उन्हें अपने जाल में जकड़े हुए है। अब आपको रामायण और महाभारत टीवी सीरीयल से बहलाने की बात करते हैं मगर क्या वास्तव में उस में जैसा बताया सब उचित और आदर्श था फिर किस बात का झगड़ा था , राजा की गद्दी और सुंदर महिला को हासिल करना और दुश्मनी और सत्ता ताकत का अहंकार ये सभी तो थे और कोई भी बचा हुआ नहीं था। आपको जब जिस बात को जैसे चाहा अच्छा खराब उचित अनुचित बता दिया गया और आपको समझाया गया इस पर कोई शक कोई सवाल नहीं करना ये अधर्म है। जो धर्म खुद को विवेचना की कसौटी पर खरा साबित करने से डरता घबराता है उसको कैसे कोई कसौटी अच्छाई बुराई को तय करने को मापदंड बना सकते हैं। 

   किसी को कोई वरदान किसी को अभिशाप किसी को क्या क्या अधिकार कैसे कैसे हथियार असंभव को संभव बनाने के उपाय कपोल कल्पना के पंख लगाकर दादी नानी की कहानियां जैसा स्वप्नलोक बना दिया। लेकिन जिनके बारे अमरत्व और काल को बंधक बनाने की बात बताई गई उनका भी अंत हुआ ही। कोरोना भी कोई सदा रहने का वरदान नहीं पाया हुआ कोई राक्षस ये भी स्वयं बुलाया हुआ संकट है। आपको मंत्र की शक्ति और आवाहन करने की बातें बताई गई हैं अगर उनमें सच्चाई है तो याद करो कौन है जो अभी कुछ महीने पहले इस शब्द को ऊंची ऊंची आवाज़ में कह रहा था "कोरोनोलॉजी को समझिये "। और हर कोई रटने लगा था क्या ये वही दैत्य तो नहीं जिसको कोई नफरत की आग जलाकर उसकी रट लगा रहा था जब सामने आया कोरोना तो वो खुद कहीं छुपा हुआ है। आपको अपने इतिहास से सबक सीखने को मिले तो बहुत हैं मगर आपने समझा नहीं सीखना क्या था सीखा जो नहीं सिखलाया गया था। ये राजनीति युग युग से उल्टी पढ़ाई पढ़ती पढ़ाती रही है और कोई भी राजा कोई भी शासक विशेषकर राजनेता कभी मसीहा नहीं होते हैं। सत्ता सिंहासन के लिए इन्होंने क्या क्या नहीं किया है। जिनको वफ़ा का अर्थ नहीं मालूम उन्हीं से लोग वफ़ादारी की अपेक्षा रखते हैं। भूल गए राजनीति और वैश्यावृति दुनिया के सबसे पुराने पेशे हैं और इन दोनों में बहुत समानता है। वैश्या तो फिर भी खुद को बेचती है ये सत्ता की खातिर ईमान तक बेच देते हैं। 

    आपको अब तो प्यार मुहब्बत की कोई बात कोई कहानी याद नहीं है। जबकि दार्शनिक और अध्यात्म से साधु महात्मा तक आपको इंसान से इंसान को प्यार करने की बात करते रहे हैं। आपके भीतर कितनी नफरत कितने लोगों को लेकर भरी हुई है और प्यार तो उस हृदय में रहता ही नहीं जिस में नफरत हो। आपको नफरत वाले अच्छे लगते हैं उनकी जयजयकार करते हैं तो खुद आप विषपान करते हैं और ज़हर पीकर जीने की आशा करते हैं। ज़िंदगी चार घड़ी की है और वही जीवन है जो प्यार भाईचारे और मानव कल्याण की खातिर जी जाये अन्यथा सौ साल जीना व्यर्थ है। मुसीबत के समय लोग मिलकर मुकाबला करते थे और मुसीबत को खत्म कर देते थे मगर अब हम मुसीबत से नहीं आपस से मुकाबला कर इक दूजे को दोष देकर हराना चाहते हैं ये इतिहास समझाता है कि भेदभाव और बांटने की नीति हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है जो दुश्मन को ताकतवर बनाती है और हमें विवश और कमज़ोर। कोरोना ही नहीं हर दुश्मन और समस्या का अंत इस कथा को समझने से मुमकिन है। विवेकशील बनकर विचार करें।  

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