दान का चर्चा है कमाई पर पर्दा है ( कड़वी बात ) डॉ लोक सेतिया
कल की बात कोई सुनी सुनाई नहीं सामने देखी और खुलकर समझी समझाई बात है। इक बड़ा सा विज्ञापन लगा था किसी आयोजन का सत्ताधारी नेता का नाम फोटो मुख्य अतिथि के रूप में दे रखा था। जो लोग आयोजन कर रहे थे उनसे जाकर पहचान की अपना परिचय दिया। आप लेखक हैं पचास हिंदी अख़बार मैगज़ीन में चालीस साल से रचनाएं छपती हैं हमारे साथ जुड़ें आपका स्वागत है। मैंने कहा पहले आप मुझे समझ लें मैं भी आपको जान लेता हूं और तमाम वास्तविक घटनाओं की बात हुई। उनकी जानकारी पर कोई सवाल नहीं उठाना चाहता मगर फिर भी जब विषय आया सत्ताधारी नेताओं अधिकारियों के गुणगान का तो कहना पड़ा मुझे नहीं आता ये काम। उनको शायद इस की उम्मीद नहीं थी कि कोई ऐसा भी बेबाक सच कह सकता है , मैंने कहा आपने जिनको मुख्य अतिथि बनाया है उनको जो उपहार देने वाले हैं उनकी किस विशेषता को देखकर। समाज को देश को उन्होंने क्या दिया है बल्कि सत्ता पर रहते खूब ऐशो आराम से देश सेवा के नाम पर शान से रहते हैं। अपने उनके सचिव से जो मोलभाव किया है सांसद निधि से आपको धन मिलने का बाकायदा इक हिस्सा उनके दल को देने का वो भी बिना किसी रसीद या चेक द्वारा न देकर नकद दो नंबर से ही वास्तव में देश भर में चलते भ्र्ष्टाचार का ही उद्दाहरण है। मैंने उनको बताया कि कभी हमारे शहर के उपायुक्त ने तबादला होने पर खुद मुझे फोन किया घर बुलाया था और जाने पर कुछ हज़ार का इक चेक थमाया था सरकारी खाते से और ऐसा अन्य सौ लोगों को सहायता के नाम पर दे रहे थे बदले में उनको विदाई करते हुए सम्मानित और पुरुस्कृत करने की बात थी। मैंने उनको चेक लौटा दिया था और हमने विदाई में उनको स्मृति चिन्ह दिया था सदस्यों ने अपने पास से राशि खर्च कर के क्योंकि वो हमारे लेखक सदस्य थे संस्था के।
यहां कल की इक और बात याद आई है मोदी जी के इक अंध समर्थक ने लिखा मुझे भेजा व्हाट्सएप्प पर कि मोदी जी ने पिछले पांच साल में उनको मिले उपहार और इनाम की राशि दान कर दी है। साथ ये भी था पिछले सत्ताधारी दल वालों ने कितना दान किया था बताओ। उनकी जानकारी सोशल मीडिया से हासिल की हुई है न उन्होंने देश के पिछले इतिहास को पढ़ा न कभी समझने की कोशिश की है। पहली बात उनको धर्म की जानकारी बहुत होने का दावा है तो समझ लेना चाहिए दान देकर इश्तिहार देना दान नहीं नाम पाने को कारोबार कहलाता है जो तमाम लोग करते हैं। वास्तविक दान कहते हैं एक हाथ से दो और दूसरे को भी
पता नहीं चले ऐसा होना चाहिए। मगर इस परिभाषा को भी छोड़ देते हैं हालांकि आखिर में रहीम और गंगभाट का वार्तालाप फिर दोहराना होगा। मोदी जी को देश विदेश से जो भी उपहार मिले हैं कोई खैरात में नहीं मिले अगर उनकी काबलियत से मिलने होते तो राजनेता बनने से पहले ही मिल जाते। उनके हर ऐसे उपहार की कीमत देश ने चुकाई है उनको जिन्होंने भी उपहार दिए बहुत कीमत वसूली है जो हम आप नहीं जानते हैं। उनकी सारी शोहरत देश के ख़ज़ाने को खर्च नहीं बर्बाद कर के हासिल की गई है। इक बात आपको कोई नहीं बताएगा कि जब नेहरू जी देश के प्रधान मंत्री बने तो उन्होंने अपनी सब जायदाद देश को दे दी थी जिसकी कीमत का आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं क्योंकि जैसा सब जानते हैं उनके पिता और दादा इतने बड़े अमीर थे जो नेहरू को विदेश भेजा था शिक्षा पाने को। उनकी काबलियत और देश को आधुनिक बनाने ही नहीं देश में लोकतंत्र स्थापित करने में उनका योगदान ऐसा महान कार्य है जो आजकल के तथाकथित महान नेता करना तो क्या उसको सुरक्षित तक रखने को सक्षम नहीं हैं। मोदी जी ने खुद पर अपने नाम का शोर का डंका पीटने पर देश का पैसा बर्बाद किया है जिस का कोई हिसाब नहीं है। कोई नहीं बताएगा उनके खुद के रहन सहन सैर सपाटे पर कितना खर्च किया गया 375 करोड़ केवल विदेशी दौरों में किराए के विमान पर खर्च हुए ये साल पहले जानकारी मिली थी। देश में 75 शहरों में भाजपा के दफ़्तर बनाये गए हैं जिन पर कितना खर्च हुआ और वो पैसा किस ने कैसे दिया कोई नहीं जान सकता क्योंकि उन्होंने अपने लिए नियम कानून बदल दिए थे दल को विदेशी दान की बात गोपनीय रखने से।
आप उसको देश सेवा नहीं कह सकते जिस में आप करते क्या हैं नहीं पता मगर आपको सरकारी खज़ाने से अपने धार्मिक दान देने की अनुमति है। गुजरात से दिल्ली आते हुए भी दावा किया गया था कुछ लाख जो बचत थी मोदी जी दान कर आये थे। और आने के महीने बाद नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर जाकर 2500 किलो चंदन की लकड़ी करोड़ रूपये की दान दे आये थे। आपको मालूम है धर्म आपको दान अपनी ईमानदारी की कमाई से करने की हिदायत देता है जो पैसा भारत सरकार के खज़ाने से खर्च हुआ मोदी जी उस दान को अपने नाम से संकल्प लेकर नहीं दे सकते थे और संकल्प कोई संस्था संगठन नहीं व्यक्ति करता है। आप को पता है मोदी जी के चुनाव आयोग को दिए ब्यौरे में कितना धन दौलत है उनके पास देख लेना। जिस ने 35 साल भीख मांग कर पेट भरा ऐसा बताया गया और वेतन भी दान दे देते हैं उनके पास पैसा कैसे जमा है कोई जादू की छड़ी या अलादीन का चिराग़ है तो उस से देश के करोड़ों लोगों की गरीबी मिटाते। आपको सच नहीं बताया जाता है फिर भी जिस पर रोज़ लाखों रूपये राजसी शान से जीने पर खर्च होते हैं उस जैसी देश सेवा और गरीबी कौन नहीं चाहता करना। ये सब माफ़ होता अगर देश की जनता को अच्छे दिन न भी मिलते ऐसे बदलाल खराब दिन तो नहीं भोगने पड़ते। कहने को बहुत है मगर जिनको नहीं समझना कितना विवरण दे कर भी कुछ हासिल नहीं होने वाला है।
रहीम इक नवाब से कवि थे मगर रईस थे और दान दिया करते थे दरबार में जो भी ज़रूरतमंद मांगने आता। उनकी दरबार के इक सदस्य कवि गंगभाट थे , उनहोंने ध्यान दिया कि दान देते समय रहीम अपनी नज़रें ऊपर नहीं रखते झुकाये रहते हैं। विचार किया और इक दोहा पढ़कर सवाल किया था।
सिखिओ कहां नवाब जू ऐसी देनी देन , ज्यों ज्यों कर ऊंचों करें त्यों त्यों नीचे नैन।
रहीम ने उनके दोहे का जवाब दोहा पढ़ कर दिया था।
देनहार कोऊ और है देवत है दिन रैन , लोग भरम मोपे करें या ते नीचे नैन।
बात मोदी की हो या किसी भी सत्ताधारी शासक की उनके इश्तिहार उनकी जिस बढ़ाई की चर्चा करते हैं कि मनोहर उपहार या मोदी योजना अदि बेहद अनुचित और धर्म नैतिकता के विरुद्ध है क्योंकि जो भी खर्च किया जाता है उनकी खुद की कमाई नहीं देश राज्य की आमदनी से किया जाता है।
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