मन की उलझन सुलझती नहीं ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया
कोई उधर जाने कोई इधर जाने की बात करता है। जाता कोई कहीं नहीं है ठहरे हुए पानी की तरह विचार भी कहीं अटके हुए हैं। बहता हुआ पानी कुछ भी हो थोड़ा पीने के काबिल रहता है रुका हुआ पानी बदलना चाहिए दुष्यंत कुमार कह गए हैं। अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ये कंवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं। सुबह कोई कुछ कहने लगा तो मैंने कहा आपको संदेश भेजा था इस को लेकर कहने लगे फुर्सत नहीं है पढ़ने की। सोशल मीडिया पर लोग दिन रात लिखते हैं बिना पढ़े ही और फिर सबको कहते हैं मेरी पोस्ट पढ़ना। गांव में कहावत है आप बैल को तालाब तक ले जा सकते हैं पानी पीने को विवश नहीं कर सकते छी-छी कहने से पानी नहीं पीता है पशु भी। मुझे कहोगे आप क्यों लिखते हैं जब लोग पढ़ते नहीं तो कारण मन की उलझन है सुलझती नहीं है। विचलित होने की आदत है जब भी कुछ देखता सुनता हूं बिना लिखे बेचैनी नहीं जाती है। रात को कोई मिला कुछ बात कहना चाहता था , मुझे जानते हो कहने लगा , उधर घर है फलां परिवार है , मैंने कहा मालूम है। फिर कोई बात कहने लगे किसी को लेकर भाषा सभ्य नहीं थी तो मैंने कहा मुझे इस भाषा में चर्चा करना पसंद नहीं है सुनते ही नौ दो ग्यारह हो गए। जानता था पहचाना कल रात उनको।
किसी ने कोई बात लिख कर सवाल किया हज़ारों साल पहले लिखा हुआ है ये सच लगता है आप साफ बताओ। मैंने कहा नहीं जानता सच क्या है खुद आपको कोई किताब धर्म की पड़नी चाहिए फिर समझना होगा। धर्म कोई भी हो जो आपको प्यार मुहब्बत नहीं नफरत का सबक सिखलाता है धर्म नहीं हो सकता है। भगवान अल्लाह जो भी हो ऊपर वाले को न किसी से बैर है न किसी से लगाव सब बराबर हैं विधाता की नज़र में इतनी बात समझने को कोई उपदेश कोई किताब पढ़ना ज़रूरी नहीं है। पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोई , ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय। बस ढाई अक्षर समझना ज़रूरी है। कोई पढ़ता नहीं तो भी मुझे संदेश भेजना है कोई विवशता नहीं किसी का मन हो पढ़ सकता है। मुझे हर उस जगह दीपक जलाना हैं जिस जिस जगह अंधकार छाया हुआ है। जहां समझते हैं बड़ी चकाचौंध रौशनी हैं उसी के पीछे अंधेरा देखा है लाल कालीन के नीचे गंदगी छिपी हुई और जो नेता अधिकारी जनकल्याण की बात करते हैं उन्हीं में अहंकार और कर्तव्य नहीं निभाने की वास्तविकता नज़र आती है। उन पर असर हो नहीं हो कहना मेरा काम है नाराज़ हो जाते हैं तो उनकी समझ की बात है।
लोग जलसे करते हैं जाने किस कारण जब दुष्यंत कुमार के शब्दों में यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं , खुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा। यहां तक आते आते सूख जाती हैं सभी नदियां , मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा। ठहरा हुआ पानी गंदला कीचड़ बनता जाता है ज़रूरत पानी को साफ करने की है तो पहले खराब पानी बाहर निकालना होगा। हम गांव के लोग किया करते थे यही मगर ये पढ़े लिखे गंदे पानी में साफ पानी मिला कर उसको भी खराब करते हैं। खुद को अच्छा साबित करना होता है किसी और को खराब साबित करने से आपकी अच्छाई नहीं सामने आती कभी भी , आपकी मानसिकता का पता चलता है। मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारा जाने से नहीं अपने भीतर झांकने से विधाता को जान सकते हैं। हम धर्म को या कोई जानकारी हो उसे समझने की कोशिश नहीं करते सुन कर रटते हैं बिना अर्थ जाने , ये तो अज्ञानता की बात है। चिंतन करना ज़रूरी है अन्यथा समय बर्बाद करने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। अभी इतना ही और पहले खुद समझ कर आपसे चर्चा करनी है उपदेश नहीं देता हूं मैं कोई उपदेशक नहीं हूं चिंतन करना चाहता हूं ।
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