बदनाम है शोहरत बहुत है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
हालत ऐसा है कोई कटाक्ष किसी और को लेकर करता है तब भी उनके चाहने वाले बवाल खड़ा कर देते हैं कि अपने हमारे आराध्य को लेकर कोई बात कही क्यों। मतलब उनको भगवान बताने या बनाने वाले भी स्वीकार करते हैं कि ये बात उनके लिए ही कही जा सकती है। बड़े बज़ुर्ग समझाया करते थे साथ कुछ भी नहीं जाना है नाम की कमाई बाकी रहती है। सच भी है दादा जी को गुज़रे पछास साल ताऊ जी को गुज़रे चालीस करीब और पिता जी को तीस साल होने को हैं गांव के लोग आज भी उनकी बात बड़े आदर से करते हैं। मुझे मालूम है मैंने कैसा नाम कमाया है सच बोलकर लिखकर दोस्तों को अपना दुश्मन बनाता रहा हूं। कभी कभी हैरान होता हूं साहित्य सृजन सच का आईना दिखाना तो होता है प्यार मुहब्बत का सबक पढ़ना पढ़ाना भी हुआ करता है। क्यों हमने मुहब्बत की ग़ज़ल कविता कहानी लिखना छोड़ खलनायक को नायक बना हिंसा को मनोरंजन का नाम दे दिया है। समाज का चेहरा इतना डरावना कब कैसे हो गया है कि हर साधु महात्मा नज़र आने वाला हमें नकली लगता है और हम दोगलेपन का शिकार हुए उनके पांव भी छूते हैं और मन ही मन उनको ढौंगी भी कहते हैं। यही विचार मन में आया था जो दो दिन पहले मैंने गुरु जी श्री आर पी महरिष जी का शेर सोशल मीडिया पर लिखा था आजकल के हाल पर , ये है वो शेर।
ये अलग बात है कि बना फिरता है जोगी ,
आज के दौर में हर शख़्स है रावण की तरह।
एक शिक्षित और सभ्य महिला जिनको मैं उनके आदर्श राजनेता का आलोचक लगता हूं ने सभ्य शब्दों में संदेश भेजा सब गलत वही करते हैं आपकी नज़र में। उनकी गलतफ़हमी जाती नहीं फिर भी बताया ये उनकी बात नहीं है हर शख़्स शब्द उपयोग किया गया है जिसका मतलब सभी से है और ये जब लिखा गया था पचास साल पहले तब आपके नेता जी की कोई पहचान नहीं थी मगर बात तब भी सच थी और लिखने वाले शायर के दुनिया छोड़ जाने के कुछ साल बाद अभी भी सच ही है। उनका निधन कुछ साल पहले सौ बरस की आयु के करीब होने पर हुआ था। अच्छी दोस्त हैं जो खुलकर बात कहती हैं समझ सकती हैं समझाया जा सकता है मगर कितने जो उन नेता जी को भगवान मानते हैं खुद भी भक्त नाम से बदनाम हैं अपनी भक्ति का दिखावा करते हुए अपशब्द गाली हिंसा पर उतर आते हैं जाने ये कैसी भावना है जो विवेक संयम खो देती है। उन्हें इतना भी समझ नहीं आता कि कोई कुछ भी कहता लिखता है आपको क्यों हर खराब बात अपने तथाकथित भगवान को लेकर लगती है इस का अर्थ तो यही है कि आप को भी बात सच लगती है मगर सच सुनना पसंद नहीं है। अर्थात आपको कोई कलयुगी अवतार लगता है और खुद भी आप भक्त हैं कलयुगी ही और आपकी भक्ति भी कुछ उसी तरह की है जैसे कोई अभिनेता नाटक फिल्म या टीवी सीरियल में नेगेटिव रोल करता दर्शकों को भा जाता है।
शायद उनको भी पता है वो जो भी दावा करते हैं सच नहीं है उनको भगवान कहलाना है बनकर दिखाना नहीं है। और इतिहास भरा पड़ा है ऐसे शासक हुए हैं जो खुद को भगवान घोषित करते थे और कर्म विपरीत किया करते थे जो उनको भगवान नहीं मानता था उसको जान से मारने अन्याय करने में कोई कमी नहीं छोड़ते थे। मगर आखिर उनका असली रूप सामने आया भी ज़रूर था पढ़ा होगा अपने या भूल गए होलिका दहन की कथा रावण जलाने की बात हर साल दोहराते हैं फिर भी। ज्ञानी बलशाली था मगर अभिमानी अहंकारी और विवेक की बात को नहीं समझने के कारण अंजाम क्या हुआ। मगर अब लोग राम का नाम भी लेते हैं और किसी भी मर्यादा का पालन नहीं करना चाहते तभी उनको ऐसे ही भगवान अच्छे लगते हैं मगर उनकी ये भक्ति उनका कल्याण नहीं कर सकती है न देश समाज का कल्याण संभव है। सच और झूठ अच्छाई और बुराई वास्तविक आचरण और आडंबर ऐसे शब्दों की परिभाषाओं को बदलना उचित नहीं है। कैसी भक्ति है जिसने भक्त शब्द को बदनाम कर दिया है वास्तविक भगवान भी घबराते होंगे ये देख कर कि भक्त ऐसे भी हो सकते हैं। इक बात तो है कि लोग अच्छी बातों को याद नहीं रखते बुरी बातों को कभी भूलते नहीं हैं। बदनाम हैं तो भी नाम तो है मानने वाले लोग हमेशा रहे हैं। गब्बर सिंह सबको याद है ठाकुर किसी को याद नहीं रहता है शोले फिल्म की मिसाल सामने है। मगर किरदार निभाने वाले दोनों अभिनेता किसी और दुनिया में साथ बैठे ठहाके लगा रहे होंगे।
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