कथा शैतान की ( व्यंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया
पूर्वकथन - ये कथा उस वक़्त की है जब दुनिया बनाई जा रही थी। आदमी पशु पक्षी जानवर के बाद जब शैतान बनाने की बारी आई तब लेखक भी खड़ा था। मगर दुनिया बनाने वाले का आदेश था कि ये कथा सुनानी नहीं है मुंह बंद रखना है आज लिख रहा हूं क्योंकि कोई सुनता नहीं समझेगा भी नहीं विश्वास भी नहीं करेगा यही निर्देश मिला था जब ऐसा समय आएगा तभी लिखना बेशक कोई ऐतबार करे नहीं करे पढ़े नहीं पढ़े। कथा शुरू करते हैं।
इंसान जानवर पशु पक्षी कीड़े मकौड़े जाने कितना कुछ बनाते गए कोई कुछ नहीं बोला। सबको अपनी पहचान उचित लगी थी। मगर जब शैतान बनाने लगे तो उस को पसंद नहीं आया अपना रंग रूप और सबसे अलग नज़र आना। हाथ जोड़ बोला हे दुनिया बनाने वाले इस तरह सब देखते समझ लेंगे मैं बुरा नहीं बेहद बुरा हूं कोई पास रहने नहीं देगा मेरा जीना दूभर हो जाएगा। दयालु हैं उनको दया आई और पूछा फिर किस तरह से शक्ल सूरत बनाई जा सकती है। उसने कहा आप मुझमें शैतान की सब बातें शामिल कर दो मगर मुझे रहना इंसानों के साथ ही है जानवर पशु पक्षी से अलग मुझे उन्हीं जैसा इंसान बना दो। सबको बता दो शैतान क्या है शैतानियत किसे कहते हैं लोग समझदार हैं सबको दिमाग मिला है समझ लेंगे। शैतान की बातों में ऊपर वाला भी आ गया था हम आप क्या हैं। ऊपर वाले ने हर दसवां इंसान शैतान बनाया जो दस नंबरी कहलाया। दस नंबर का जूता हर किसी को फिट नहीं आया जिसने भी पहना घबराया बचकर भाग आया।
शैतान की पहचान आसान नहीं थी उसकी कोई भाषा कोई ज़ुबान नहीं थी रंग बदलने में महारत हासिल थी। शैतान हर घर हर गांव रहता है खुद को अच्छा औरों को शैतान कहता है शिक्षक समझता है ये कुछ कच्चा है हर बच्चा लगता शैतान का बच्चा है। शैतान की खुद अपनी पढ़ाई है शैतान कोई नहीं है इंसान का भाई है , उसका सब कुछ है उसकी चतुराई है। दुनिया भर की सरकार शैतान की बनाई है हर जगह किसी शैतान की शैतान से लड़ाई है। शैतान खुद नहीं जंग कभी लड़ता है उसके इशारे पर इंसान लड़ा करता है। जिस तरफ देखो हुकूमत शैतान की है ख़ामोशी छाई है आहट तूफ़ान की है। सब जानते हैं पुरानी कहानी है बिल्ली है जो वही शेर की नानी है। शैतान की भी इक नानी है राजनीति की बुढ़िया कितनी पुरानी है , मरती नहीं मरने नहीं देती है ये इक जिस्मफरोश है जवां थी रहेगी रहती है। अभी सोलह बरस की खुद को कहती है।
हर दिल शैतान का बना बसेरा है बेकार का लफड़ा है क्या तेरा है क्या मेरा है। ये दुनिया समझ लो इक रैन बसेरा है चल उड़ जा रे पंछी ये देश बेगाना है। कलयुग क्या है शैतान का आशियाना है इंसान का नहीं कोई भी ठिकाना है , ये उसी की बस्ती है किस्सा पुराना है। शैतान कहता है बदलने वाला है ये बात कुछ नहीं बस इक बहाना है। शैतान ने कोई तीर अपना चलाना है। शैतान है पैसा शैतान है ताकत भी शैतान का महल है दौलतखाना है। शैतान सबको लगता मगर अपना है शैतान बन जाने का हर किसी का सपना है। क्या तुमने भी हाथ उससे मिलाया है शराफत खोई है कुछ भी नहीं पाया है। शैतान की महिमा का गुणगान जिस किसी ने गाया है मत पूछो किस तरह ऊपर फिर पहुंचाया है। बात खत्म करने से पहले इक गुज़ारिश है। मेरी इक पुरानी ग़ज़ल को सुन कर विचार करना।
ग़ज़ल - डॉ लोक सेतिया
फिर कोई कारवां बनायें हम ,
या कोई बज़्म ही सजायें हम।
छेड़ने को नई सी धुन कोई ,
साज़ पर उंगलियां चलायें हम।
आमदो रफ्त होगी लोगों की ,
आओ इक रास्ता बनायें हम।
ये जो पत्थर बरस गये इतने ,
क्यों न मिल कर इन्हें हटायें हम।
है अगर मोतिओं की हमको तलाश ,
गहरे सागर में डूब जायें हम।
दर बदर करके दिल से शैतां को ,
इस मकां में खुदा बसायें हम।
हुस्न में कम नहीं हैं कांटे भी ,
कैक्टस सहन में सजायें हम।
हम जहाँ से चले वहीँ पहुंचे ,
अपनी मंजिल यहीं बनायें हम।
दुनिया बनाने वाले ने तरह तरह की कथाएं कहानियां बनाई हैं। कथा शैतान की भी बिना उसके चाहने से नहीं लिखी जा सकती थी। उसकी इच्छा बिना पत्ता भी नहीं हिलता है। शैतान को अपनी दुनिया से भगाना है इंसान को फिर से इंसान बनाना है। उपाय कठिन नहीं बताता हूं ये कथा ध्यान से सुना करो हर दिन सुनाता हूं। कथा बाकी है पर अभी जाता हूं उस शैतान ने इसी तरफ अभी आना है मुझे जाने दो अब मुझे जाना है।
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