अप्रैल 19, 2019

प्यार करने का अभिनय ( वयंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया

      प्यार करने का अभिनय ( वयंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया 

       तुमने कसम दी है सच सच लिखने की हिदायत भी की है हमारी कहानी को जिन दो कहानीकार दोस्तों को बतानी है तुम और मैं दोनों नहीं समझ पाये कभी भी इतने साल तक हम उन्हीं के लिखे किरदार का अभिनय ही कर रहे थे। शायद अभी भी मेरी तरह तुम भी हैरान हो सकते हो जानकर कि वास्तविकता क्या है। उन दो लिखने वालों की कल्पना थी तुम मैं दो सच्चे प्यार करने वाले हो सकते हैं। किस मकसद से मुझे नहीं मालूम उन्होंने हम दोनों को किसी कहानी के किरदार की तरह साथ लाने से लेकर तमाम घटनाओं की पटकथा नियमित लिखी और हम उनके इशारों पर अभिनय करते रहे। मुझे एक लिखने वाले ने बताया तुम मुझे प्यार करते हो और तुम्हें भी दूसरे ने यही बताया कि मुझे तुमसे मुहब्बत है। शायद प्यार करने का अभिनय करते करते हम अपनी वास्तविकता को भूल गये जो हम दोनों को कभी मुहब्बत करने की इजाज़त ही नहीं देती।

हम दोनों ज़िंदगी से निराश होकर अपनी बातें जिनको बताते थे हमराज़ समझ कर उनको प्यार मुहब्बत इक खेल जैसा लगता है अपनी कविता ग़ज़ल कहानी में लिखने को नाम बदलकर पुराने किरदार वापस लाने की। मगर इस बार उनकी कहानी घट रही थी उनकी मर्ज़ी से हम दोनों को उलझाने का काम करते हुए। शायद उनको आज़माना था या तजुर्बा करना था कि कोई किसी के कहने से किसी को प्यार कर सकता है। जब जब हम दोनों को लगता हम प्यार नहीं करते तब तब उन्होंने हमें किसी भी तरह अलग नहीं होने दिया। ये उनका लिखा नाटक था जिस पर जीवन के मंच पर कोई और कठपुतली बन नाच रहे थे। हम दोनों को यही समझने को विवश किया गया कि हम चाहते हैं इक दूजे को। तुम ये समझते रहे कि मुझे तुमसे बेइन्तिहा मुहब्बत है और मैं ये कि तुम मुझसे बेहद मुहब्बत करते हो। इनकार करने पर या ये बताने पर कि कोई एहसास दिल में नहीं है सोचते कहीं कोई अनहोनी नहीं घट जाये। सहानुभूति थी या परवाह करना मगर साथ रहते रहते कुछ अपनत्व होता गया मगर वास्तविक बंधन मुहब्बत का आधे सच आधे झूठ की बुनियाद पर नहीं कायम हो सकता है।

सब को कोई पसंद आये और उस से मुहब्बत हो ये मुमकिन नहीं है। शायद पहली बार तुमने भी जो कहा किसी और के कहने में आकर नहीं कहा और असलियत को समझना चाहा और मैंने भी किसी से बिना बात किये अपनी बात अपने शब्दों में व्यक्त की है। हम प्यार मुहब्बत करते हैं या नहीं भी करते हैं मगर इतना तो है कि हम आपस में कोई झूठा दिखावा छल कपट नहीं करना चाहते और सोचने लगे हैं कि और अभिनय नहीं करना है। जो भी हम दोनों को महसूस होता है स्वीकार करना है , हम ज़िंदा इंसान हैं किसी किताबी कहानी का फिल्म का नाटक का किरदार बनना मंज़ूर नहीं है। अपनी कहानी की शुरुआत चाहे किसी भी नाटकीय ढंग से हुई हो अंत हमारी मर्ज़ी से होना चाहिए और कोई काल्पनिक मोड़ अब नहीं आना संभव है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें