अप्रैल 17, 2019

हमको उनसे बचाओ ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

     हमको उनसे बचाओ ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

   चुनाव हो रहे हैं ऐसे में पहली बार साहस कर पुरुषों ने भी अपना अधिकार मांगना याद रखा वो भी समझदारी से अपने तरीके से। महिलाओं के संगठन अपनी बात मनवाना जानते हैं मगर पुरुषों को भी समझाने नारदमुनि जी धरती पर खुद चले आये और पुरुषों की समस्या को समझ ऊपर जाकर भगवान से मुलाकात भी फिक्स करवा दी ज़िंदा रहते आमने सामने। नारदमुनि ने जैसा समझाया था पुरुषों ने बहुत शालीनता से मगर चालाकी से बात शुरू ही चुनावी ढंग से करते हुए कहा कि आपके सामने कोई और भी दावेदार खुद को भगवान साबित करता है जिस के भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही है और इस बार जीत जाने पर आपसे बढ़कर उसी की महिमा का गुणगान होने लगा तो तैयार रहना। हम पुरुष भी महिलाओं की तरह आधी दुनिया का तमगा बिना लगाये भी संख्या में कम नहीं है। हम आपकी शरण आये हैं और आप ही को भगवान मानते हैं मगर आपको भी उनकी तरह अपने भक्तों का ख्याल रखना चाहिए। भगवान उनकी मांग सुन कर चकित रह गये समझ गये खेल नारद जी का रचाया हुआ है। नारद जी बात संभालते हुए कहने लगे भगवान मुझ पर समझना शंका मत करना मैंने खुद धरती पर वास्तविकता को देखा और समझा है। आपकी चिंता भी मुझे मालूम है मगर आपकी अनुमति के बिना महिलाओं की वास्तविकता की कथा पढ़कर सुनाना उचित नहीं था तभी यहीं आपकी आज्ञा से कथा सुना कर उपाय की बात कर सकते हैं। भगवान की इजाज़त से कथा सुना रहे हैं। 

       दुनिया बनाने के बाद हवा पानी नदी समंदर पशु पक्षी कुदरत के सभी रंग बनाने के बाद इन सभी को इस्तेमाल करने को इंसान बनाये गये तो केवल पुरुष ही बनाने का विचार था मगर जैसे ही पुरुष को सोचने को दिमाग मिला उसने सबसे पहला सवाल ही भगवान से आप कौन हैं क्यों हैं सवालों की झड़ी लगा दी। तरह तरह से बच्चों को खिलौनों से बहलाने की तरह कोशिश की गई मगर पुरुष जितना बड़े होते गए समझदारी से भगवान को चुनौती देने का काम करने लगे। पुरष को उसकी समझदारी को टक्कर देने को महिला बनाई गई जो वास्तव में नासमझ थी जैसा कहा जाता है उनका दिमाग एड़ी में होता है मगर भगवान ने हर नारी को बनाते समय सब से समझदार काबिल सुंदर होने का तमगा थमा दिया। इतना ही नहीं उनको इक अतिरिक्त गुण भी दिया गया पुरष को मूर्ख समझने और बनाने का , अपने आधीन करने का और अपने बीच भी हर महिला को खुद से कमतर समझने की सोच साथ देकर दुनिया में भेजा गया। जिस जिस व्यक्ति को ये राज़ समझ आया कि महिला नासमझ होने के बावजूद भी उनको उल्लू बनाती हैं और दासी कहलाती है पर राज़ वही करती है उस पुरुष ने महिला के जाल में फंसना स्वीकार नहीं किया अविवाहित रहने का निर्णय किया या शादी कर बैठे तो मौका देखते ही पिंजरा छोड़ उड़ गये। जिनकी हार जीत की बात चुनाव में दांव पर है वो ऐसे ही पुरुष हैं। भगवान को भी अपनी धर्मपत्नी से हर बात की आज्ञा लेनी होती है जबकि उन जनाब को रोकने टोकने वाला कोई नहीं है। 
   
       महिला मां बनकर पत्नी बनकर बहन बनकर या फिर दोस्त बनकर भी पुरुष को सुधारने को हाथ धोकर लग जाती है और पहला काम ही पुरुष को कुछ नहीं जानते नासमझ और किसी काबिल नहीं हो खुद मानना और उसको मनवाना होता है। कुछ पुरुष भी इसी तरह के होते हैं जो सभी पर अपनी राय थोपते हैं ये कह कर कि जो आपको लगता है करना चाहिए नहीं ठीक है जो हम कहते हैं आपको वही बिना चाहे भी करना चाहिए आपकी ही भलाई की बात है। भलाई करने का ठेका लेकर औरों की ज़िंदगी उनके ढंग से जीने नहीं देना अपने आप में समस्या है समाधान नहीं। महिलाओं को आपकी दुखती रग पता चल जाए तो बार बार उसी को दबाती हैं और आपके ज़ख्म सीने की बात करती आपके ज़ख्मों को कुरेदती रहती हैं कभी ज़ख्म भरने नहीं देती। शल्य चिकिस्या की शुरुआत किसी वैद्य ने नहीं नारी ने की होगी , महिलाओं के पास अचूक हथियार होते हैं जिसका कोई लाइसेंस नहीं लिया जाता बाकी कोई हथियार असफल हो सकता है आंसुओं का वार खाली नहीं जाता है। भगवान महिलाओं के साथ रहे हैं पुरुषों को खामोश करवाने को अन्यथा अपने भगवान को निशब्द करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। समझदार होना ठीक था अपनी समझदारी का दिखावा करना ठीक नहीं था। आपको महिलाओं से बचना है तो उनकी नासमझी का उपयोग करना सीखना होगा , महिला को समझदार नहीं समझते हुए भी समझदार होने की बात झूठ ही सही कहकर काम चलाना होगा। ये जो नेता भगवान बना फिरता है इसी कला का माहिर उस्ताद है और आप सबसे बहुत पहले भगवान से आकर ये पाठ पढ़ चुका है। शेर और बिल्ली की कहानी याद है बिल्ली ने शेर को सब ढंग सिखला दिए तो शेर उसी को खाने को झपटा तब बिल्ली ऊपर पेड़ पर चढ़ गई। शेर ने कहा मौसी जी अपने मुझे ये गुर नहीं सिखाया है। बिल्ली बोली क्योंकि अगर सिखलाती तो आज कैसे बचती। इंसान की फितरत है अपने बनाने वाले को ही मिटाना चाहता है सरकार भी इसी ढंग से शासन करती है। मुंबई में येड़ा बनकर पेड़ा खाने की कहावत मशहूर है आपको समझनी होगी।

      चालाक लोमड़ी से चालाकी से पेश आना होगा और भोले बनकर नासमझ और अभिमानी की महिला या नेता को मज़ा चखाना होगा। अपने जीतना है इसलिए हार जाना होगा क्योंकि हार कर बाज़ी जीतने वाले बाज़ीगर कहलाते हैं। बाज़ीगरी क्या है भगवान खुद समझाते हैं , अपनी पत्नी को बिना बात रूठने पर मनाते हैं और इस तरह सब जानते हुए अनजान बन कर मौज मनाते हैं। बाकी खुद सोचोगे तभी बात बनेगी अब आप भी घर जाओ भगवान को भी नींद आई है खुद सोना है पत्नी को जाकर कहना है सो गई क्या इस तरह सोई हुई नारी को जगाते हैं। राज़ की बात जानते हैं सोई हुई महिला सोती हुई भी सचेत रहती है इस मुलाकात की बात पता चलने मत देना वर्ना पछताने से हासिल कुछ नहीं होगा। अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी भगवान भरोसे मत रहना भगवान भी बेबस हो सकते हैं शादीशुदा हैं और साथ साथ रहते हैं। 
    

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