जनवरी 10, 2019

खोकर पाना है ( व्यंग्य कहानी ) डॉ लोक सेतिया

          खोकर पाना है ( व्यंग्य कहानी ) डॉ लोक सेतिया 

                           ( आर्थिक आरक्षण के बाद की कहानी है )

      बेटा और बेटी मिलकर विचार कर रहे हैं। हम दोनों को भी आरक्षण मिल सकता है। भाई को नौकरी मिल सकती है और बहन को उच्च शिक्षा में दाखिला मिल सकता है। पिछले दिनों इक टीवी शो पर जीवन के दोराहे की कहानी भी ऐसी थी जिस में पिता के घर से अलमारी में रखे पैसे बच्चे चुरा लेते हैं जो पैसे पिता को जिसके पास नौकरी करता है उसने दिये थे बैंक में जमा करवाने को मगर बैंक बंद होने से जमा करवा नहीं पाया था। कोई चोर रात को घर में चोरी करने आता है और अलमारी से बैग चुरा ले जाता है , जिस के पैसे हैं वो शक करता है अपने पुराने मुलाज़िम पर और पुलिस थाने रपट दर्ज करवा देता है। इत्तेफाक से हवलदार इक चोर को पकड़ लाता है जिसने वो बैग चुराया था। लेकिन चोर कहता है कि उसने चोरी की थी मगर बैग को खोला तो खाली था उस में पैसे थे ही नहीं। आजकल बच्चे टीवी सीरियल से सबक बहुत अच्छी तरह सीख लिया करते हैं। शायद उनको ऐसे ही किसी टीवी सीरियल से या सोशल मीडिया से किसी वीडियो से ऐसी उल्टी शिक्षा मिली हो।

                        पिता से दोनों ने अपनी समस्या बताई थी , बेटे को नौकरी मिल सकती है कुछ लाख रिश्वत देने से और बेटी को किसी कॉलेज में दाखिला कुछ लाख देकर मिल सकता है। मगर पिता के पास इतने पैसे हैं ही नहीं और इक घर है जिसकी कीमत कुछ लाख हो गई है जो किसी समय कई हज़ार जमा पूंजी से खरीदा था ताकि किराये से बच सके। शाम को फिर से पिता के घर आने पर बात की थी और इस बार कोई घबराहट नहीं थी मन में। बताया कि अब हम उच्च जाति के लोगों को भी आरक्षण मिल सकता है क्योंकि आपकी आमदनी आठ लाख सालाना से कम ही है। मगर इक अड़चन है कि जिसके पास शहर में सौ ग़ज़ का मकान हो उसको इसका लाभ नहीं मिल सकता है। अभी तक आपको घर बेच कर भी बेटे की नौकरी और बेटी के दाखिले के लिए पैसे नहीं मिल सकते थे। अब आपको अपना घर बेच कर पैसे अपने पास ही रखने हैं ताकि हम आरक्षण पाने वालों में शामिल हो कर लाभ उठा सकें। घर बेच कर मिले पैसे किसी को देकर उसके बदले रहने को घर मिल सकता है ये हमने दलाल से बात की है। ख़ुशी की ऐसी लहर उठी जैसे कोई कोई जादू की छड़ी या कोई जिन मिल गया हो चिराग वाला।

                पत्नी को भी उचित लगा और घर बेच कर आरक्षण पाने के अधिकारी बन गये। कुछ खो कर पाना है कुछ पाकर खोना है। बात बन गई और सपना साकार हो गया था। बेटे को नौकरी मिली तो सरकारी मकान भी जिस शहर में नियुक्ति हुई मिल गया और बेटी भी उच्च शिक्षा पाकर नौकरी करने लगी और पिता के घर बेच रखे हुए पैसे दोनों के विवाह करने पर खर्च हो गये थे। अब पिता की मुश्किल है किस से हाथ फैला कर सहायता मांगे बेटे से या बेटी से जब भी आमदनी कम हो और कोई खर्चा अचानक सामने आ जाये। पिता को कोई लाभ आर्थिक आरक्षण से मिल नहीं सकता मगर जो पास था खत्म हो गया उसे हासिल करने में। कई बार ऐसा होता है वास्तविक कीमत बाद में चुकानी पड़ती है।

              किसी और के साथ दूसरे ढंग से हुआ। जितनी भी पांच छह एकड़ ज़मीन थी बेच कर बच्चों को आर्थिक आरक्षण पाने का हकदार बना दिया मगर अब खुद अपनी बेची हुई ज़मीन पर मज़दूरी का काम करता है। आरक्षण के मोहजाल में जाने किस किस की ज़िंदगी की वास्तविक कहानी टीवी सीरियल जैसी बन गई है। उस कहानी में बेटी दहेज के पैसे देकर ससुराल चली जाती है और बेटे को नौकरी मिल जाती है , लेकिन ईमानदार पिता चोरी के झूठे इल्ज़ाम में बंद बिना अपराध पकड़े चोर को छुड़वा खुद चोरी का इल्ज़ाम अपने सर ले लेता है। उसका मालिक सचाई जानकर अपना केस वापस लेकर उसको छुड़ा लेता है। मगर क्या असली जीवन में कोई भोलेपन और शराफत को समझ ऐसा करेगा , नहीं लगता है। शायद कभी कोई ख़ुदकुशी करेगा तब खोजने पर मालूम होगा कि आरक्षण पाने की खातिर जो पास था दे दिया और बाद में कुछ भी नहीं था चैन से रहने को। सरकार को भी कोई दोष नहीं दे सकता उसका हर कदम कहने को जनता की भलाई को होता है मगर सालों बाद नतीजा निकलता है कि ये नहीं करते तो अच्छा था। आरक्षण की वास्तविकता यही है काश इसकी शुरुआत कभी हुई नहीं होती। अब इसको इस तरह समझा जा सकता है। एलोपैथिक दवाओं में स्टीरॉइड्स नाम की ऐसी दवाएं भी होती हैं जिन से रोग ठीक नहीं होता है। डॉक्टर देते हैं और रोगी को चैन मिलता है दर्द नहीं मालूम पड़ता ज्वर उतर जाता है दमा के रोगी को सांस लेने में आसानी होती है , लेकिन असल में लक्षण पता नहीं चलते रोग बढ़ता जाता है। लगातार लेते रहने से और भी कई रोग दुष्प्रभाव से लग जाते हैं। ये ऐसी दवा है जो आपको लाईलाज रोग देती है जो मौत के साथ ही जाते हैं। सरकार भी देश की जनता को आराम देना चाहती है ताकि जनता को तकलीफ और लक्षणों से मुक्ति मिले और बदले में खुश होकर उसको वोट और सत्ता का अधिकार। सरकार को भी कुछ देकर कुछ पाना भी है। ये कहानी निरंतर चलने वाली है देखते हैं कब तक।

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