मैं भी मैं भी मैं भी ( नंगा समाज ) डॉ लोक सेतिया
बंद कमरों की राज़ की बातें जब खुलती हैं तो बहुत कुछ ध्वस्त होता है। हम जिसे सभ्य समाज मानते रहे वो कितना बड़ा फरेब था हर कोई हैरान है। नहीं उन महिलाओं पर अविश्वास नहीं करना चाहता मगर ये सवाल ज़रूर आता है कि इतनी लंबी ख़ामोशी उस समाज की जो महानगर में आज़ाद था किसी गांव में या वीराने में बंदी नहीं था कि बोल भी नहीं सके। अपने साथ अनुचित होने देना चाहे आर्थिक विवशता रही हो बाकी महिला जगत को भी गलत संदेश देता है और जो पुरुष कुछ भी करने के बाद शान से रहे उनके गलत इरादों को भी बढ़ावा देता है। मगर इस में दोष हमारे समाज का भी है जो अमिताभ बच्चन और रेखा को लेकर अलग सोच रखता है , हेमा मालिनी के विवाहित पुरुष से विवाह को मंज़ूर करता है , राजकपूर के साथ कितनी नायिकाओं को जोड़ते हुए और राय रखता है। लेकिन अपने आस पास किसी को मुहब्बत करने की अनुमति नहीं देता है। अभिनेता तक अपनी सिक्स ऐप्स को दिखाते हैं टीवी फिल्म शो में। जो महिलाएं चाहती तो ये सब पहले ही बता सकती थीं मगर खामोश रहीं क्या उनका दोष नहीं है अपने समाज को और गंदा होते देखते रहने का। शायद तब उनको खुद को छोड़ बाकी महिला समाज की चिंता ही नहीं रही थी। यही महिलाओं की सब से बड़ी गलती है। आज भी तमाम महिलाओं को अपनी शख्सियत से अधिक चिंता अपने सुंदर दिखाई देने को रहती है। आज भी क्यों नारी पुरुष से उपहार पैसे सोना चांदी के गहने की अपेक्षा रखती है। समानता क्या यहां नहीं ज़रूरी है। माना पुरुष की मानसिकता गंदी होती है जगज़ाहिर है मगर क्या कई महिलाएं अभी भी मेनका की तरह खुद भी ये करने की दोषी नहीं हैं।
अपराधी महिला जगत के ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
आप हां आप भीशामिल हैं महिलाओं के विरुद्ध
बढ़ रहे अपराधों में
किसी न किसी तरह ।
आप जो अपने कारोबार के लिये
परिधान के विज्ञापन के लिये
साबुन से लेकर हर सामान
बेचने की खातिर दिखाते हैं
औरत को बना कर
उपभोग की एक वस्तु ।
आपकी ये विकृत मानसिकता
जाने कितने और लोगों को
बनाती है एक बीमार सोच।
जब भी ऐसे लोग करते हैं
व्यभिचार किसी बेबस अबला से
होते हैं आप भी उसके ज़िम्मेदार।
आपके टी वी सीरियल
फ़िल्में आपकी जब समझते हैं
औरतों के बदन को मनोरंजन का माध्यम
पैसा बनाने कामयाबी हासिल करने के लिये।
लेते हैं सहारा बेहूदगी का
क्योंकि नहीं होती आपके पास अच्छी कहानी
और रचनात्मक सोच
समझ बैठे हैं फिल्म बनाने सीरियल बनाने को
सिर्फ मुनाफा कमाने का कारोबार।
क्या परोस रहें हैं अपने समाज को
नहीं आपको ज़रा भी सरोकार
आप हों कोई नायिका चाहे कोई माडल
कर रही हैं क्या आप भी सोचा क्या कभी
थोड़ा सा धन कमाने को
आप अपने को दिखा रही हैं
अर्धनग्न सभ्यता की सीमा को पार करते हुए।
आपको अपनी वेशभूषा पसंद से
पहनने का पूरा हक है मगर पर्दे पर
आप अकेली नहीं होती
आपके साथ सारी नारी जाति
का भी होता है सम्मान
जो बन सकता है अपमान।
जब हर कोई देखता है बुरी नज़र से
आपके नंगे बदन को आपका धन या
अधिक धन पाने का स्वार्थ ,
बन जाता है नारी जगत के लिए शर्म।
ऐसे दृश्य कर सकते हैं लोगों की
मानसिकता को विकृत
समाज की हर महिला के लिये।
हद हो चुकी है समाज के पतन की
चिंतन करें अब कौन कौन है गुनहगार।
मुझे अपनी पुरानी लिखी कविता लिख कर शुरुआत करनी पड़ रही है। इसका मतलब हर्गिज़ ये नहीं है कि मैं पुरुषवादी अनुचित सोच को सही समझता हूं। मैं मानता हूं हमारे समाज में अधिकतर पुरुषों की सोच आज भी बेहद खराब है और महिला को ऐसी ही नज़र से देखते हैं। मगर मुझे उन महिलाओं से शिकायत है जो अपने बदन की नुमाइश करती हैं पैसे की खातिर। आगे वास्तविक विषय की बात से पहले मेरी इक और कविता लिखना चाहता हूं जो मेरी सोच ही नहीं मेरा विश्वास भी है कि हर औरत को ऐसा सोचना चाहिए।
औरत ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
तुमने देखा है
मेरी आँखों को
मेरे होटों को
मेरी जुल्फों को,
नज़र आती है तुम्हें
ख़ूबसूरती नज़ाकत और कशिश
मेरे जिस्म के अंग अंग में ।
तुमने देखा है
केवल बदन मेरा
प्यास बुझाने को
अपनी हवस की
बाँट दिया है तुमने
टुकड़ों में मुझे
और उसे दे रहे हो
अपनी चाहत का नाम।
तुमने देखा ही नहीं
कभी उस शख्स को
एक इन्सान है जो
तुम्हारी तरह जीवन का
हर इक एहसास लिये
जो नहीं है केवल एक जिस्म
औरत है तो क्या।
क्या अभी भी हम इस सब का अंत नहीं करना ज़रूरी समझेंगे। सोशल मीडिया टीवी सीरियल फिल्मों का काम क्या समाज को रसातल में धकेलना होना चाहिए केवल अपनी आमदनी के लिए। मंदिर शिक्षा के विद्यालय की तरह समाज को राह दिखाने की बात भूल कर किसी कोठे वाली जिस्म फरोश या नाचने वाली वैश्या की तरह पैसे की खातिर सब करना दोनों का अंतर साफ है।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/10/2018 की बुलेटिन, निन्यानबे का फेर - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएं