नेताओं को मुहब्बत है अपराधियों से ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
और कोई शब्द अपनी तरफ से बोलने की ज़रूरत नहीं है। देश की सबसे बड़ी अदालत देश की हालत की सच्चाई बताती है उसी के शब्द हैं। " जो लोग कुछ नहीं ... ..... अब हमारे देश पर बोझ बन चुके हैं , वही हमारे नागरिकों को कष्ट भोगने के लिए मज़बूर कर रहे हैं ....... संविधानिक पदों पर बैठे लोग संविधान के मूल्यों को बनाए रखने की शपथ लेते हैं , भ्र्ष्टाचार रोकने की ज़िम्मेदारी भी उन्हें मिलती है। लेकिन संविधान और लोकतंत्र के होते हुए भी उनके सामने भारतीय राजनीति में अपराधीकरण बढ़ने लगता है। जैसा अपराधीकरण देश देख रहा है , वह लोकतान्त्रिक सरकार की जड़ें काट रहा है।
आपका खून नहीं खौलता अगर ये सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी पढ़कर तो फिर आपकी देशभक्ति की भावना वास्तविक नहीं है। आपको जो भी दल या नेता पसंद हो देश से अधिक कोई भी नहीं हो सकता है।
एडीआर की ओर से वर्ष 2017 में रिकॉर्ड के अनुसार देश के कुल 4896 जन प्रतिनिधियों में 4853 के दिए रिकॉर्ड के मुताबिक। 770 सांसदों ( लोकसभा व राज्यसभा ) में 364 ( 47 % )
4083 विधायकों ( सभी राज्यों ) में 2246 ( 55 % ) दाग़ी हैं।
रौंगटे खड़े करने वाली वास्तविकता है मगर हम मुझे क्या कहते हैं , हम क्या कर सकते हैं। जी आप केवल सोशल मीडिया पर मनोरंजन करिये और जो होता है होने दीजिये। पर एक बार ध्यान से पढ़ तो लो कौन कौन कितने गहराई तक अपराध में डूबा हुआ है।
134 सांसदों पर गंभीर अपराध के मामले
गंभीर अपराध मामलों में भाजपा सांसद सबसे ऊपर , कांग्रेस दूसरे नंबर पर
लोकसभा के 542 सांसदों में से 179 के खिलाफ आपराधिक मुकदमें हैं। इनमें 114 सांसद गंभीर अपराध की श्रेणी में हैं। इसी तरह राज्यसभा के 228 सांसदों में 51 के खिलाफ आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं जिनमें 20 गंभीर अपराध की सूचि में हैं। भाजपा के 339 सांसदों में सबसे अधिक 107 ने आपराधिक मामलों की घोषणा की है। भाजपा के 64 सांसदों पर गंभीर मामले चल रहे हैं। कांग्रेस के 97 सांसदों में 15 पर मुकदमें चल रहे हैं। 8 गंभीर अपराध की श्रेणी में हैं। हत्या और अपहरण भाजपा शीर्ष पर है। भाजपा के 16 माननीयों पर अपहरण और 19 पर हत्या के मामले चल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने विधि आयोग की रिपोर्ट के ज़रिये राजनीति के अपराधीकरण की तस्वीर सामने रखी है। 5253 उम्मीदवारों पर 13984 अपराधों के मुकदमें दर्ज थे ...... 1187 जीते और संसद विधानमडलों में पहुंचे। उत्तर प्रदेश अव्वल है , 2004 में 24 % थी निर्वाचित लोकसभा में इनकी संख्या जो 2009 में 30 % हो गई। उत्तर प्रदेश के 47 % विधायकों पर आपराधिक मुकदमें हैं।
( अमर उजाला 26 सितंबर 2018 की खबर से आभार सहित उपरोक्त जानकारी और आंकड़े )
अब मेरी बात। सियासत की बदहाली पर रोना आया। जिस देश की सरकारें अपराधी चलाते हों उस में आज़ादी संविधान लोकतंत्र की दशा यही हो सकती है। सवाल ये है कि माजरा क्या है खुद को मसीहा घोषित करने वाले क्यों गुनहगार को अपने दल में शामिल करते हैं मंच पर उनकी तारीफ करते हैं और उनको महान देशभक्त बताते संकोच नहीं करते हैं। सत्ता की हवस ने सभी को पागल कर दिया है , सत्ता क्यों चाहिए देश को ऊपर उठाने को नहीं और भी रसातल में गिराने को और जनता को कुछ देने को नहीं खुद शान से महलों में गरीबों की कमाई से राजसी ढंग से जीने को। वास्तव में राजनीति वैश्यावृति से अधिक गंदी हो गई है वैश्या अपना जिस्म बेचती है ये अपना ज़मीर क्या देश को बेचते हैं। दुष्यंत कुमार की बात याद आती है।
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