ताकि ज़माना याद रखे ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
किसी शायर की ग़ज़ल के शेर है :- बाद ए फनाह फज़ूल है नामो निशां की फ़िक्र , जब हमीं न रहे तो रहेगा मज़ार क्या। मगर सत्ता वालों को यही फ़िक्र सबसे अधिक होती है। साहिर लुधियानवी की नज़्म है :- इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर , हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक। मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझको। जब ताजमहल फिल्म बन रही थी तो साहिर को उस फिल्म के गीत लिखने को कहा गया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया अपनी कही नज़्म की बात को बदल नहीं सकते थे। आजकल के कवि शायर से जो चाहो करवा लो , यू ट्यूब पर कविता के नाम पर चुटकुले सुनकर हंसाते कवि कविता का कत्ल करते हैं या चीरहरण। पत्थर के सनम पत्थर के खुदा पत्थर के ही इंसां पाये हैं , तुम शहर ए मुहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आये हैं। ग़ज़ल लिखने वाले ने जो कहा वही आज सामने है। वक़्त बदला तो पत्थर की जगह फौलाद के बुत बना रहे हैं ताकि याद रहे , दस्तावेज़ में आखिर में लिखने वाला अपना नाम दर्ज किया करता था या है और लिखता पढ़कर सुनाई है , ये वसीयत लिख दी है ताकि सनद रहे। अच्छे लोगों को लोग कभी भूलते नहीं हैं , बुरे लोगों को भुलाना आसान नहीं होता है। जो किसी ओर के नहीं होते उनकी याद में मंदिर और श्मशानघाट में पत्थर पर नाम लिखवाते हैं।
इधर इमरजेंसी की याद आई उनको जो आपत्काल में डरे छिपे रहे। मेरी क्लिनिक के पड़ोस में इक मास्टरजी रहते थे जो सरकारी नौकरी में थे। शाम को अख़बार पढ़ने आया करते थे मेरे पास और चर्चा हो जाया करती थी। आपत्काल का दौर था और मास्टरजी भले आदमी थे और आर एस एस से जुड़े हुए भी थे। मैं तब भी निडरता से अपनी बात कहता था और वो तथा मेरे बहुत और साथी मुझे समझाते थे चुप रहने को। शायद भगवान साथ था जो कभी तब मेरे साथ कोई गलत व्योवहार हुआ नहीं , लेकिन अब बिना आपत्काल घोषित होता है। वो काली अंधियारी रात थी ये घना अंधकार छाया हुआ है। विश्व में भूखों में भारत की हालत बदतर है। महिलाओं के लिए मेनका गांधी भी कहती हैं देश डरावना है। सरकार ने चार साल नाम बदलने के इलावा कुछ भी नहीं किया है। अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले लोग बड़े बड़े पदों पर बैठे हैं , विज्ञान की बात अंधविश्वास की बात साथ साथ नहीं हो सकती।
कभी सभी मानते थे कि झूठ से बड़ा पाप कोई नहीं है। आज झूठ सामने आने पर कोई लज्जित नहीं होता है। मैंने पहले ही लिखा था कि आज अगर झूठों की प्रतियोगिता आयोजित हो तो सब से पहला नंबर हमारे देश के नेता का होगा ही होगा। टीवी वाले रोज़ खबर को छोड़ कर वारयल सच की बात करते हैं। सोशल मीडिया पर चल रहे विडिओ को लेकर। ये क्या कर रहे हो। मेरे पास किसी ने एक विडिओ भेजा बिना सिलेंडर के चूल्हा जल रहा है , भाई जिस धर्म की बात करते हो वो तो अंधविश्वास से लड़ते रहे और समझाते रहे अपना दिमाग इस्तेमाल करो। कोई कहानी सुना रहा कि अमुक संत के सतसंग से सालों से सूखा बाग़ हरा भरा हो गया। वास्तव में उन कथाओं का मकसद कुछ और होता था मगर लोग चमत्कार को नमस्कार करते हैं इसलिए बात को बदल दिया गया। आज इक मैसेज मिला जिस में भगवान को एक तारीख के दिन घर आने की शर्त कही गई और वही कहानी में हुआ। अगर इनको आधार बनाओगे तो बहुत पछताओगे। लाओ कोई संत जो सूखे पेड़ों को हरा कर दिखाए , जो बिना सिलेंडर गरीबों के घर का चूल्हा जला दिखाए , जो भगवान सामने आकर खड़ा हो जाये। आपको हैरानी होगी मुंबई में इक संस्था यही बात करती है , हर सप्ताह अख़बार निकलता है भगवान सामने आओ। सोचो जो भी आजकल हो रहा है सच सच लिखा गया किसी इतिहास की किताब में तो पचास साल बाद लोग पढ़कर हंसेंगे मज़ाक उड़ाएंगे कि हम ऐसे मूर्खतापूर्ण कार्य करते थे या करने वालों का समर्थन तालियां बजाकर किया करते थे। मुझे मरने के बाद नाम की बदनामी की चिंता नहीं है , मगर मुझे मूर्खों में शामिल समझा जाये ये कभी मंज़ूर नहीं है। समझदार नहीं हूं जनता हूं , ज्ञानी भी नहीं हूं मानता हूं ये भी मगर लोग मुझे मूर्ख समझते हों ये नहीं स्वीकार कर सकता कभी। नासमझ लोग कभी जिस डाल पर बैठे हों उसे नहीं काटते है ये मूर्ख लोग हैं जो उसी शाख को काट रहे जिस पर बैठे हैं। संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को बचाना ज़रूरी है नेता आते जाते रहते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें