भूली बिसरी कहानी ( लघुकथा ) डॉ लोक सेतिया
बनने को तो ये उनकी कहानी उपन्यास भी बन सकती थी , मगर अब ज़िंदगी शीर्षक से लघुकथा बनकर रह गई है। अभी कुछ दिन हुए उसी मेरी लिखी पुरानी कहानी के दूसरे पात्र से फिर से मुलाकात हो गई। पहले आशिक से बात होती थी उसकी महबूबा का इतना ही पता उसने बताया था कि उस नाम की फेसबुक किसी दोस्त के बनाई है मगर फेसबुक पर रहती नहीं है केवल नाम को बना रखी है। उसने मेरी कुछ रचनाओं को कॉपी पोस्ट किया हुआ था जो मुझे पसंद नहीं और मुझे उसको ब्लॉक करना ही उपाय लगा। मगर इक दिन राह चलते अजनबी व्यक्ति से सफर में बात हुई तो मेरा नाम सुनकर उसने बताया कि अभी जिस लड़की से मिलने गया हुआ था वो मेरी रचनाओं की पाठक है और प्रशंसक भी है। सफर में उसने अपनी प्रेम कहानी बताई और लिखने को भी कहा नाम बदलकर। फिर मुलाकात नहीं हुई मगर कुछ महीने फोन पर बात करता रहा और जो जो होता बताया मुझे। अभी अधूरी थी कहानी मगर बाद में पता चला उस लड़की की किसी सहेली ने उनको घर से भागकर शादी करने में सहयोग दिया। उस आशिक का नंबर बदल गया और सालों से फिर बात नहीं हुई।
कुछ दिन पहले फेसबुक पर दोस्त बनाया तब पता चला ये वही है। मगर समझ नहीं आया माजरा क्या है। फेसबुक पर विवाहित पति पत्नी की तस्वीर देखी तो हैरान हुआ , ये कोई और है जो मुझे मिला वो तो नहीं है। अपने दुविधा मिटाने को मैसेज किया शायद आप वही हैं जिनकी बात मुझे बताई थी किसी ने। कुछ दिन बाद जवाब मिला आपको याद है , मैंने कहा आपने ही कहानी में अपनी पसंद का नाम प्रेमी का दिया था ये भी याद है। पता चला जिस से इश्क़ किया था और घर से भागकर बगावत कर साथ साथ रहे उससे निभी नहीं और वापस घर चली आई है और अब शादी किसी और से की है। वास्तव में आधुनिक युग में ऐसा ही इश्क़ होता है जो कब आशिक और महबूबा के दिमाग से इश्क़ वाला भूत उत्तर कर ज़िंदगी की असलियत को समझने लगता है और भावना की बात त्याग देता है कोई नहीं जनता। मुझे कहा है जो बातें आपको बताई थी उसके आशिक़ ने किसी को मत बताना। क्या नहीं बताना मुझे नहीं पता कोई भी बात राज़ की रही नहीं और किसी और को मैंने उनका नाम भी नहीं बताया अभी तक। राज़ को राज़ ही रहने तो दूं मगर राज़ है क्या मुझे समझ नहीं आया। विवाह की शुभकामनाएं और उन दोनों का साथ इस जन्म बना रहे यही दुआ है। अगले जन्म में कौन क्या होगा भगवान जाने।
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