इंसान हैं , इंसानियत नहीं है ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
आज पार्क में सैर करते हुए सोच ही रहा था कुछ इसी तरह के विषय की बात , हमारी कथनी और करनी की बात तथा अधिकतर अपने अधिकारों पद सत्ता धन ताकत के अनुचित उपयोग की बात। पार्क से निकलने को ही था कि तीन चार लोगों की बातें सुनाई पड़ीं। इक व्यक्ति कह रहा था इन सफाई कर्मचारियों की मांगे नहीं मानी जानी चाहिएं थी। रुक गया और उनको भी रोका और सवाल किया क्या उनका शोषण नहीं किया जाता रहा अभी तक , दो वक़्त खाना मिल जाये इतना ही मांगते हैं। बोले ये अपना काम नहीं करते ठीक तरह से। मैंने कहा आपने अधिकारी करते हैं ठीक से काम , नगरपरिषद के सभापति से विधायक मंत्री मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री तक क्या सभी ठीक काम कर रहे हैं। करते तो सब कुछ सुधर सकता था। मगर हम उनके खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकते , जो मुफ़लिस हैं गरीब हैं उनके लिए जो चाहे बोलते हैं। कोई अधिकारी आपको बिना बात डांट देता है मगर आप खामोश सहते हैं , किसी सफाई कर्मचारी ने आपको सलाम नहीं किया तो आपका अपमान हो गया। उसने आपकी बात नहीं मानी तो आप नाराज़ हो गए , मगर जिनको खुद आपने चुना वो आपकी बात को नहीं सुनते तब भी हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। सब से पहले हमें ये कायरता छोड़नी होगी , टकराना है तो अपने से बड़े के साथ टकराओ सही बात पर। यही अधिकतर लोगों का चरित्र है। हम अपने साथ अन्याय होने पर रोते हैं आहें भरते है , किसी और पर अन्याय होता देख विचलित नहीं होते , और खुद किसी पर अन्याय करते भी संकोच नहीं करते हैं। मेरे जीवन में कई बार ऐसी घटनाएं घटी हैं और उसी तरह सब को ऐसे कड़वे अनुभव होते हैं , जब उल्टा चोर कोतवाल को डांटता जैसी बात हो।
किसी ने अपनी कार मेरे घर के गेट के सामने खड़ी कर रखी थी , उनसे कहा आप इसे थोड़ा परे खड़ा कर लो तो वो बोले मैं हुडा विभाग का हूं और मुझे पता है आपने जो रैंप बनाया हुआ है वो कितना अनुमति है। इसे क्या कहोगे , धौंस दिखाना , वो इंसान उसी समय जिस की दुकान पर खड़ा था उसने विभाग के प्लाट पर फुटपाथ पर कब्ज़ा कर रखा था जो उसको दिखाई नहीं दिया मगर मेरा रैंप जो सामन्य सभी की तरह से बना है उसको नियमानुसार नहीं लग रहा था , शायद उसके विभाग के नियम उसको ऐसा अमानवीय आचरण करने के अधिकार देते हों , देश का संविधान तो सब को बराबरी से न्याय की बात करता है।
कुछ ऐसा ही इक और बार हुआ , कार में बैठ शराब पी रहे लोगों को मना किया कि ये क्लिनिक है जहां आपने दरवाज़े के सामने रोक कर कार खड़ी की हुई है और शराब पी रहे हैं। जनाब आये बाहर और बेशर्मी से बोले आप फोटो ले लो और शिकायत कर लो पुलिस को , मैं पुलिस में ही हूं। मैंने कहा तब तो और गलत बात है आपको जिस अनुचित काम को बाकी लोगों को रोकना हैं खुद वही कर रहे हैं , तभी तो देश की हालत ऐसी है। मैं बहुत ईमानदार पुलिस वालों को जनता हूं मगर ये कुछ लोग जो समझते हैं थानेदार हैं तो कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे लोगों को देश समाज और नियम कायदा कानून से कोई सरोकार नहीं होता है। जब तक हम सभी अपने आचरण को सही नहीं करते बाकी समाज की कमियां निकालते रहेंगे मगर हासिल कुछ नहीं होगा।
कोई दुकानदार कारोबार करते उचित दाम की बात याद नहीं रखता , मगर किसी और के अधिक दाम मांगने पर लूटता है कहता है , जो सफाई वाले को 400 रूपये दिन के काम के मिलने को सोचता है इतना काम नहीं करता है वो , खुद हज़ारों की दिन की कमाई पर उचित अनुचित की बात नहीं करता। बाज़ार में कम होने पर ब्लैक करते उसको अपराधबोध नहीं होता है। हम सोचते हैं मंदिर जाने से पूजा अर्चना करने से दान करने से हम भगवान के भक्त हो गये , मगर नहीं। नानक जी कहते हैं ये तो सांप का कुंचल स्नान की तरह है। भाई इंसान है नाग नहीं बनिये , कुंचल नहीं बदलिए , सवभाव बदलिए। जपुजी साहिब में लिखा है , सोचे सोच ना होवई , जे सोचे लख वार , भुखियां भूख ना उत्तरी जे बन्ने पूरियां भार। अर्थात नहाने धोने से आप पावन नहीं हो जाते बेशक लाख बार स्नान करते रहो। और लालच की भूख मिटती नहीं चाहे कितना पास जमा किया हुआ हो।
मगर इस देश में जिस में मानवधर्म की बात सदियों से होती रही ये हो क्यों रहा है। क्योंकि हम ने धर्म की किताबों को , जीवन की सही राह दिखाने वाली नीतिकथाओं की बातों को भुला दिया है। ज्ञान हासिल नहीं किया और तोते की तरह राम राम रटते हैं। जब किसी और की गलतियां ढूंढते हैं तो खुद अपनी गलतियां और कमियां भी देख लिया करें। समाज हम सभी से है पहले खुद को बदलना होगा। ये बात शायद आजकल समझना कठिन है , मगर हमने बार बार पढ़ा है कि साधु का काम क्या है चोर को भी इंसान समझना। इक साधु ने देखा इक बिच्छु पानी में डूबता जा रहा , कहानी आपने सुनी होगी , हर बार साधु उसे हाथ बढ़ाकर बचाने को कोशिश करता और हर बार बिच्छू काट लेता। किसी ने कहा ये आप क्या कर रहे हो। साधु बोलै कि जब मर रहा है फिर भी बिच्छू अपना सवभाव नहीं छोड़ता तो मेरा सवभाव है डूबते को बचाना मैं कैसे अपना सवभाव त्याग दूं। कोई आपसे अन्याय करता है तो आप किसी और से उसका बदला नहीं लें किसी अपने से छोटे पर अन्याय कर के। इक बार हम पाप पुण्य और कर्मों के फल की बात को भी छोड़ देते हैं , मगर आप को अपनी आत्मा अपने विवेक का सामना तो करना ही होगा। चाहे सारी दुनिया आपकी बढ़ाई करती हो मगर आपका मन आपकी असलियत जनता है कि जो लोग समझते हैं आप वो नहीं है तो ऐसे झूठे गुणगान का क्या मतलब है। इंसान खुद अपनी नज़र में गिर जाये तो उस से अधिक नीचे नहीं गिर सकता कोई।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सामाजिक कार्यकर्ता - अरुणा रॉय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएं