अप्रैल 04, 2018

अंदोलन कैसे करें सीखने का कॉलेज ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

   अंदोलन कैसे करें सीखने का कॉलेज ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

      बहुत कम लोग होते हैं जो कुछ नया तलाश करते हैं , बहुत लोग से पुराने किसी काम को फिर से आधुनिक रूप में सामने लाते हैं और लोग समझते हैं ये इसी की खोज है। मगर ऐसे चतुर लोग पुराने पर नया लेबल लगा खूब माल बनाते हैं। किसी ने पहले नहीं सोचा था कि योग करना सिखाना भी करोड़ों का धंधा हो सकता है। इसी तरह धर्म समाज सेवा और निशुल्क शिक्षा और ईलाज भी कमाई का साधन बनाया हुआ है तमाम चतुर लोगों ने। मुझे अब समझ आ रहा है भविष्य में किस धंधे  में अधिकतम संभावनाएं हो सकती हैं। आजकल आंदोलन आये दिन होते हैं मगर कोई अंदोलन किस तरह करे कोई इस की शिक्षा नहीं देता है। स्कूल कॉलेज में अंदोलन होते हैं मगर उनकी इक सीमा है और अंदोलन बिना स्कूल कॉलेज में दाखिल हुए भी हो सकते हैं ये कोई पढ़े लिखों का विशेष अधिकार नहीं है। मुझे चालीस साल हो गए हैं आंदोलनों को देखते हुए। इतना अनुभव काफी होना चाहिए खुद को शिक्षक घोषित करने के लिए। इसलिए मैंने राज्य में ही नहीं देश भर में पहला स्कूल कॉलेज खोलने का फैसला किया है जो सभी को बिना भेदभाव के अंदोलन करने की पढ़ाई पढ़ाया करेगा। 
 
            आप चाहे कोई भी शिक्षा पा चुके हों या पाना चाहते हों , आपको नौकरी करनी हो या कारोबार अथवा नेतागिरी ही करनी हो , हर दशा में अंदोलन की समझ अनिवार्य है। अंदोलन करने वाले महात्मा गांधी , लोकनायक जयप्रकाशनारायण और आधुनिक काल में अन्ना जी तक खुद कोई भी कुर्सी पर नहीं बैठा मगर उनके आंदोलनों ने कितने मुख्य मंत्री और बड़े बड़े पदों पर बैठने वाले लोग दिए हैं। हम सब को इसकी पढ़ाई करनी ही चाहिए। शिक्षा ही ऐसा धंधा है जिस में जो लोग डॉक्टर इंजिनीयर आईएएस आईपीएस नहीं बन सकते और किसी तरह से डिग्री हासिल कर लेते हैं वो शिक्षक बन कर पढ़ाने से खुद अपना स्कूल कॉलेज खोलने तक का काम का सकते हैं। बाज़ार से हर विषय में अधिकतम अंक पाने वाले बेकार पढ़े लिखे बेरोज़गारों को सस्ते दाम रखते हैं और पढ़ने वालों से सौ गुणा फीस वसूल करते हैं।

       लेकिन मुझे दो बातें पहले से कहनी हैं , भले बाद में इन बातों का कोई अर्थ नहीं रहे। पहली बात ये है कि मैं अपना घर बार छोड़ कर देशसेवा करने को ये काम करने आया हूं और सब को सबक सिखाना मेरे जीवन का मकसद है। समझ गए आप सबक सिखाने की बात। अब दूसरी ज़रूरी बात ये है कि मैं उनकी तरह नहीं हूं जो लोभ लालच में नकली और बेकार की पढ़ाई करवाते हैं , मुझे खुद अपने लिए कुछ नहीं चाहिए जो भी आमदनी होगी समाजसेवा पर खर्च करनी है। आप मेरे धंधे को समाजसेवा समझ सकते हैं। अभी मेरे स्कूल कॉलेज का नाम पेटेंट के लिए आवेदन भेजा है और पंजीकरण के बाद इसके इश्तिहार सब को दिखाई दिया करेंगे। सरकार का आभार जो फेक न्यूज़ की इजाज़त दे दी है अन्यथा मुझे भी कठिनाई हो सकती थी। आप मेरे धंधे में शामिल होकर खूब कमाई कर सकते हैं जिस के लिए आपको मेरी एजेंसी या शाखा अपने शहर में खोलने के लिए आवेदन भेजना होगा।

               हम केवल शांतिपूर्वक अंदोलन करने की शिक्षा देंगे , ऐसा घोषित किया जाना ज़रूरी है। इधर जब तक हिंसा नहीं हो अंदोलन हुआ की खबर तक नहीं छपती। हिंसा और लोगों को उकसाना भड़काना अब केवल राजनेताओं का काम नहीं रह गया है। टीवी चैनल हर घटना को बार बार दिखला कर ऐसा माहौल बना देते हैं कि राई भी पहाड़ बन जाती है। हम उन सभी एंकरों की सेवाएं भी लिया करेंगें उनके भड़काऊ अंदाज़ सीखने बेहद ज़रूरी हैं। नेताओं की तो शांति कायम रखने की अपील काफी होती हैं आग लगाने को। सब से पहले हम हर अन्दोलनकारी को अदालत का और कानून का आदर सम्मान करने की शपथ खाने के बाद जो चाहे करने की हिदायत देना चाहेंगे। फिर बेशक धारा 144 और कर्फ्यू की परवाह नहीं करें। धारा 133 भी लगाई जा सकती है।

                       आंदोलन कौन कौन करते हैं ( भूमिका )

      जनता कभी अंदोलन नहीं करती है , जनता को ज़ुल्म सहने की आदत होती है और उसे आज़ादी और गुलामी में भेद करना नहीं आता है। किसी न किसी की जयजयकार करना उसकी ज़रूरत ठीक उसी तरह है जैसे कोई न कोई भगवान चाहिए बंदगी करने को। विपक्ष वाले अंदोलन तभी करते हैं जब पांच साल पूरे करने को होती है सरकार और चुनाव में जनता को अपने पक्ष में करना होता है। क्योंकि सत्ता से बाहर रहते आन्दोलन और सभाओं का आयोजन करना कठिन होता है। खुद सरकार को भी जब लगता है लोग खुश नहीं हैं तो धर्म और भेदभाव की दीवार खड़ी करने को अंदोलन की ज़रूरत होती है। मगर सब से अधिक अंदोलन करवाने के पीछे सत्ताधारी दल के असंतुष्ट लोग होते हैं जो विपक्षी नेताओं से लेकर तमाम संस्थाओं तक को उकसाते हैं और सरकार की कमियां बतला कर अंदोलन करने की सलाह देते हैं। मुझे मालूम है मेरे पास जो है उसका खरीदार कौन कौन है। इसलिए अपनी दुकान में हर खरीदार भगवान है। जिन को अंदोलन करवाना हो उनको एक सप्ताह पंद्रह दिन और महीने का क्रैश कोर्स भी करवाया जायेगा। पहले आओ पहले पाओ , इंतज़ार करते हुए नहीं पछताओ। आंदोलन करना राजनेताओं की ज़रूरत है मगर सामन्य नागरिक भी खुद अपने खिलाफ साज़िश अथवा अन्याय या शोषण के खिलाफ विरोध जताने को आंदोलन करने को आज़ाद हैं चाहे सरकार को आपकी आज़ादी कभी अच्छी नहीं लगेगी और विरोध की आवाज़ दबाने को तमाम हथकंडे अपनाने सत्ताधारी नेताओं को आते हैं। जब तक बच्चा रोयेगा नहीं मां भी नहीं समझती दूध पिलाना है अपनी भूख प्यास सामने लाना ज़रूरी है।    

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया व्यंग्यात्मक आलेख लिखा है sir... बहुत बहुत साधुवाद। एक बात से असहमति- सभी शिक्षक इसलिए शिक्षक नहीं बने हैं कि वे कुछ और(इंजीनियर, आई ए एस, आई पी एस...) न बन सके तो शिक्षक हो गए। बहुत से शिक्षक वाक़ई शिक्षक बनना चाहते हैं और बनते हैं।

    ख़ैर... लेख जानदार शानदार है👌👍

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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