व्यवस्थिक ढंग से अव्यवस्था की सरकार ( वास्तविकता )
डॉ लोक सेतिया
अब राज़ खुल गये हैं , साधु संतों और धर्म वालों के ही नहीं , नेताओं सरकारों और कानून व्यवस्था कायम रखने को तगड़ा वेतन सुख सुविधाएं हासिल करने वाले अधिकारियों तक सभी के। सब शामिल हैं व्यवस्थिक तरीके से अव्यवस्था फैलाने में। जब चलना ही जंगलराज है तब इन सब सफेद हाथियों की ज़रूरत ही क्या है। घोषित ही कर दो देश में आज़ादी है जो चाहो करो , कोई रोक टोक नहीं कोई सज़ा नहीं। सज़ा हो तो सब को मिलनी चाहिए जो जो तमाम अपराध होते देखते रहे , अपराधियों को बचाते रहे। एक अपराधी को अपराध की दुनिया बनाने देने को कितनों ने अपनी ईमानदारी अपने कर्तव्य की अनदेखी की , कोई हिसाब नहीं। बात किसी एक जगह की नहीं एक शहर की नहीं एक कारोबार की नहीं है। आज ही देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुगांव में स्कूल में इक बच्चे के कत्ल पर यही कहा है। सवाल देश भर के मासूमों का है और हर स्कूल का है शिक्षा से जुड़े सभी लोगों और सरकारों का है। टीवी वालों को हर खबर इक अवसर लगती है अपने लिए ये देख हैरानी होती है।
अगर वास्तव में देश में शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर वास्तविकता को समझा जाये तो पता चलेगा जैसे यहां कोई नियम कानून नहीं कोई देखने वाला नहीं कोई पालन करने वाला नहीं किसी भी कायदे का। कितना बड़ा कारोबार बना दिया है आपने इन दो बुनियादी ज़रूरतों को जनता की। और जो करोड़ों वसूल करते उन पर कोई निगाह ही नहीं किसी विभाग की। कैसे शिक्षक कैसी शिक्षा , कैसे हॉस्पिटल कैसे डॉक्टर्स और कैसी सुविधाएं और किस तरह के कर्मचारी और उपकरण। सब जानते हैं सरकारी ही नहीं निजि बड़े बड़े नर्सिंग होम और हॉस्पिटल किसी भी मापदंड पर खरे नहीं हैं। किसी सरकार की इस से बड़ी लापरवाही क्या हो सकती है कि आप देखते ही नहीं शिक्षा और इलाज के नाम पर लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ होता है। किसी खुली जगह कोई अपने धंधे को बढ़ाने को मुफ्त टेस्ट और उपचार की बात कर लोगों की ज़िंदगी से खेलता है क्योंकि कोई रोकने वाला नहीं है। कल ही मेरे इक दोस्त को बुखार हुआ तो इक डॉक्टर की लैब ने प्लेटलेट्स की कमी बताई दूसरी लैब ने टाईफाइड और तीसरी लैब ने कुछ और बताया। क्योंकि कोई नियम ही नहीं कौन करेगा जांच खून की , अनुभवी टेक्निटिशन या कोई भी लड़का दसवीं पास , जबकि होना पैथोलोजिस्ट डॉक्टर चाहिए। मगर कोई भी डॉक्टर मरीज़ को किसी पैथोलोजिस्ट के पास नहीं भेजता , क्योंकि उनको निदान की नहीं हिस्से की चिंता है। क्या ये भ्र्ष्टाचार नहीं है। हॉस्पिटल हो या स्कूल सब को सस्ता स्टाफ चाहिए और अधिक से अधिक कमाई भी। इक आपराधिक चलन हो गया है बड़े बड़े हॉस्पिटल्स को मरीज़ भेजने में हज़ारों का कमीशन मिलने का।
ये सरकार खुद को ईमानदार सरकार बताती है मगर इसका तौर तरीका आपराधिक ही है। कभी मुख्यमंत्री की सभा में जाने वालों से काली जुराब तक उतरवाई जाती हैं तो कभी पूरा हाईवे ही बंद किया जाता है चाहे कोई एम्बुलेंस ही क्यों नहीं हो। मानवता की बात सरकार प्रशासन और पुलिस में नहीं है तभी अपराधी अपराध करते डरते नहीं हैं। नेताओं की औलाद के अपराध का बचाव लोग करते हैं और सरकार भी अपराधियों के पक्ष में खड़ी है। अच्छे दिन ऐसे होते हैं किसी को पता नहीं था।
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