आंखों वाले अंधे ( तीर-ऐ-नज़र ) डॉ लोक सेतिया
अभी जब सुबह सैर को गया रास्ते पर चौराहे पर देखा इक बोरी में कुछ डाल गया था कोई चौराहे पर। किसी ने उसको बताया होगा ऐसा करने से अच्छे दिन आ जायेंगे। अक्सर जादू टोने और लाल किताब वालों के ऐसे उपाय लोग आज़माते हैं। कभी मैं भी खुद शामिल रहा हूं इस सब में मुझे ये स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है कि पढ़ लिख कर भी हम कूप मंडूक बने रहते हैं। लोग विदेश में जाकर देखते हैं कोई गंदगी नहीं करता इस तरह। क्योंकि उनको ने केवल सभ्य रहना किसे कहते हैं समझाया गया है बल्कि असभ्य होने पर शर्मिंदा ही नहीं सज़ा और जुर्माना भी भरना होता है। हमारा प्रशासन कभी गलत होने को रोकता ही नहीं है। गलत होते को देख कर भी अनदेखा करता है। आप जाकर बताओ तब भी विवश होकर भी उसे अपना फ़र्ज़ निभाना पसंद नहीं और कोई करवाई नहीं करने के सौ बहाने बनाता है। मैंने इक अधिकारी को बताया कुछ लोग जो खाने पीने का सामान बेचते हैं अपना कूड़ा और गंदगी बीच सड़क डालते हैं और सड़क या फुटपाथ पर चलना मुश्किल हो गया है। हर विभाग किसी दूसरे पर दोष देता है। ये काम नगरपरिषद का है , नगरपरिषद वाला बताता है विकास प्राधिकरण की जगह है उनको अपनी जगह पर अवैध कब्ज़े हटाने हैं , विभाग बताता है हम पुलिस को बताते हैं करवाई करे। शहर के अधिकारी स्वच्छता पर भाषण देकर खुश हो जाते हैं इनाम पाकर। सरकार को बेईमानों को अपना फ़र्ज़ नहीं निभाने वालों को कुछ नहीं कहना , केवल ईमानदारी का तमगा लगा गिनती करते जाना है। ईमानदारी क्या कोई स्लोगन है। कोई भी विभाग ईमानदार होकर अपना फ़र्ज़ नहीं निभाता और आपकी सरकार ईमानदार है। आजकल शर्म नहीं आती किसी को भी। कहते कुछ हैं करते कुछ भी नहीं।
बैंगलोर में झील का पानी ज़हरीला होकर झाग बनकर उड़ता है क्योंकि सत्तर उद्योग उस में अपनी गंदगी डालते रहे और प्रशासन आंखे बंद किये रहा। तमाम नदियों तालाबों को गंदा कर दिया है। आप पूजा पाठ के नाम पर कितना कूड़ा नहर में बहाते हैं , इक गंगा ही नहीं हर नदी पवित्र है आपने सब को मैली कर दिया। ये धर्म नहीं है। बहुत अनुष्ठान धर्म नहीं हैं , जो समाज को ज़हर दे प्रदूषित करे उसे पूजा पाठ नहीं कहना चाहिए। लोग अपने पड़ोसी के घर के बाहर कुछ डालते हैं ताकि उस का बुरा हो , अपनी नफरत अपनी जलन को भी लोगों ने धर्म से जोड़ दिया है। अख़बार में विज्ञापन देते हैं दुश्मन को खत्म करने वाले यंत्र और खुद को धनवान बनाने वाले यंत्र। ये क्या है , अपराध ही है , ठगी है। मानसिक दिवालियापन है। कोई नेता कोई अधिकारी सोचता ही नहीं जो गलत है उसको होने नहीं देना है। पुलिस और निरीक्षक लोग तो चाहते हैं लोग गलत करें ताकि उनकी कमाई चलती रहे। ईमानदारी तो हर सरकारी दफ्तर की दीवार पर टंगी हुई है जब दिखानी हो अधिकारी ओढ़ लिया करते हैं। ईमानदार होना नहीं कहलाना है।
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