चैन की बंसी बजाने वाले लोग ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया
हम कौन हैं शायद सोचते ही नहीं , नीरो के वंशज हैं देश जल रहा है और हम जश्न मना रहे हैं। कोई सड़क पर तड़पता मर जाता है और लोग व्हाट्सएप्प पर सोशल मीडिया पर विडिओ अपलोड करने में लगे हैं। किसी को स्मार्ट फोन पर गेम खेलनी है किसी को संगीत सुनना है किसी को पिक्चर मैसेज भेजने हैं मानवता के उपदेश से धर्म की बातों वाले। कोई है जो चुटकुले बना रहा है , जैसे मनोरंजन ही जीवन का मकसद होता है। सत्तर साल जीना बेकार है जब वास्तव में सार्थक कोई काम नहीं किया। क्या इक पागलपन है अथवा कोई नशा है ये सब जिसमें हम भूल जाना चाहते हैं कि देश समाज ही नहीं मानवता और धर्म भी रसातल को जा रहा है। वाह रे टीवी वालो राम रायसीना हिल्स में घोषित करने लगे हैं। राम मंदिर में नहीं आलिशान भवन में रहेंगे अब देश के सब से बड़े पद पर बैठे। किसे कब खुदा किसे कब शैतान बताना मीडिया की मर्ज़ी है , मगर खुद को नहीं देखते क्या थे क्या हो गए हैं आदमी थे दुकान बन गए हैं। चलो आपको गोविंद जी के गांव लिए चलते हैं टीवी उद्घोषक बताता है। सत्तर साल पहले इसी पेड़ के नीचे पढ़ते थे आज भी गांव उसी तरह बदहाल है मगर गांव का नाम सब को पता चल गया यही बड़ी बात है। दीवाली की तरह पटाखे बज रहे हैं दलित कहां से कहां पहुंच गया , क्या इसी तरह दलित कल्याण किया जायेगा। सत्ता बड़ी शातिर है लोग उसकी चाल नहीं समझते , बात दलित उद्धार की नहीं है वोट की है और कौन सत्ताधारी दल के लिए निष्ठा रखता है इस का महत्व है। उनको किसी को महल में संविधान की रक्षा को नहीं बिठाना , इक मोहर चाहिए अपने हर कागज़ पर लगाने को। ये क्या वास्तव में सही दिशा को जाना है।
चुने जाने के बाद गोविंद जी बचपन की बात दोहराते हैं कच्चा घर , मगर जब 150 एकड़ में बने भवन में सैकड़ों कमरों में महाराजा की तरह रहेंगे तब क्या विचार करेंगे इसका अर्थ क्या है। एक दिन का खर्च राष्ट्रपति भवन का लाखों रूपये है और इतनी जगह लाखों लोग रह सकते हैं। कोई नहीं जनता उस भवन में रोज़ इतना खाना गटर में डाला जाता है जिस से हज़ार लोग भूख मिटा सकते हैं। किसी का सत्ता मिलना बड़ी बात नहीं होता सत्ता पाकर जो किया उसका महत्व होता है। लेकिन अब ध्येय ही सत्ता विस्तार बन गया है , बाकी सब झूठे प्रचार और भाषण तक सिमित हैं। क्या देश का प्रधानमंत्री कोई तमाशा दिखाने वाला है जो बातों से मनोरंजन करता है और हम ताली बजाते हैं , तमाशबीन हैं। गरीबी भूख बदहाली हर तरफ है मगर हम देख कर भी अंधे बन चैन की बंसी बजाते है और समझते हैं हम राष्ट्रवादी हैं।
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