जुलाई 02, 2017

आज़ादी अपनी नहीं सभी की ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

       आज़ादी अपनी नहीं सभी की ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

आपको भी शायद बहुत मज़ा आता होगा , यू ट्यूब पर फेसबुक पर सोशल मीडिया में अजीब अजीब हरकतें करते बच्चे जानवर पशु पक्षी न जाने क्या क्या। कभी सोचा इस की कीमत क्या है , इक महिला अपनी एक साल की बच्ची को कीर्तन करना सीखा रही है। बच्ची को करना होता जैसा मां आदेश देती , उसको भूख लगी है या चॉकलेट का लालच दिया जाता है। इक और साहब ऐसा अपने तोते से कराते हैं , उसको खाने को तभी मिलेगा जब तोता मालिक की कही बात दोहराएगा। किसी की बेबसी मज़बूरी का फायदा उठाना या किसी को लालच देकर अपनी बात मनवाना बताता है कि आप आज़ादी पसंद नहीं हैं। जानवर से प्यार का ढोंग करते हैं और अपनी अंदर की शासक होने की ललक को पूरा करते हैं। बहुत हैरानी की बात है हम सत्तर साल से दावा करते हैं कि आज़ाद हो चुके मगर आज़ादी के अर्थ तक को नहीं समझते। पिता सोचता है बेटा जैसे मैं कहता उसी तरह जिए क्योंकि मैंने उसको जन्म ही नहीं दिया पाला पोसा ही नहीं बल्कि उसको काम करने को पैसे मुझ से लेने हैं तो मेरी शर्त माननी ही चाहिए। कोई पति सोचता पत्नी को घर चलाने को कमाई देता हूं तो उसको मेरी हर बात माननी ही होगी। पत्नी भी अपने ढंग से सोचती है कि जब मुझ से विवाह किया है तो पति को हर कदम मेरी पसंद से चलना होगा। जब जिस का बस चलता तब वही दूसरे को अपने अधीन रखना चाहता है। आप हम बेशक कितने आधुनिक और पढ़ लिख कर सभ्य हो जाने की बात समझते हों , शायद ही कभी सोचते हैं वास्तविक आज़ादी किसे कहते हैं। आप अपनी आज़ादी चाहते हैं मगर दूसरों की आज़ादी की कदर नहीं करते हैं। अमीर गरीब की आज़ादी को खरीदता भी है तो सोचता है उचित कर रहा हूं। 
 
       आज फेसबुक पर इक पेज देखा बीस साल और मोदी। तमाम लोगों ने पसंद किया हुआ बिना समझे कि आप क्या कर रहे हैं। आप केवल किसी व्यक्ति की चाटुकारिता ही नहीं कर रहे अपितु देश के संविधान और डेमोक्रेसी को भी ताक पर रखने की बात कर रहे हैं। और ऐसा कर भी क्या देख कर रहे हैं , आपको मालूम भी है देश की अधिकतर आबादी की हालत कितनी बुरी है मगर इस आपके तथाकथित महान आदमी की किसी योजना में आम गरीब को कोई अधिकार शिक्षा का स्वास्थ्य का जीवन की बुनियादी सुविधाओं का कोई ज़िक्र तक नहीं है। हर पुरानी सरकार की तरह उनको खैरात के टुकड़ों पर रहना है की योजना है। आप के सामने आएगा इस तरह देश की हालत नहीं सुधरने वाली। अभी विदेश जाने से पहले बहुत दवाओं को उस सूचि से बाहर किया गया जिस में दवा कंपनी बिना सरकारी अनुमति मोल नहीं बढ़ा सकती। यही सरकार जब अपनी पीठ थपथपानी हो तब आपको बताती है हमने निर्धारित किये हैं दवाओं के दाम। मगर जब दवा कंपनी वालों से मिलना होता तो उनकी बात पहले ही पूरी कर दी जाती है। अगर तब भी आपको इस में कोई घोटाला नहीं समझ आता तो आप बापू के बंदर हैं जो आंख मुंह कान बंद रखे हुए हैं। 
 
               आज तक किसी ने सवाल नहीं किया मगर अब करना कोई , सूचना के अधिकार का उपयोग कर पता लगाना आपका प्रधानमंत्री हर दिन कितना धन खुद पर खर्च करता जनता ही का। क्या पिछली सरकारों से बहुत अधिक और तब हिसाब लगाना करोड़ों रूपये से राजसी शान से रहकर आम जनता की भलाई को वास्तविक मिला क्या है। अगर आपको नहीं पता अभी तक तो इक बार फिर दोहराता हूं , इस देश का सब से बड़ा घोटाला और कुछ नहीं सरकारी विज्ञापन हैं जिन पर जितना धन सत्तर साल में अपने महिमामंडन पर बर्बाद किया गया उसी से देश को खुशहाल बनाया जा सकता था। जनता के धन की लूट में कौन कौन शामिल है कभी विचार किया। आपको टीवी चैनल वाले बताएंगे बड़ी तेज़ दौड़ रहे हैं , लेकिन उनसे कोई कहे आप को सरकारी विज्ञापन या और तमाम ऐसे लोगों के झूठे विज्ञापन जिन से जनता को गुमराह किया जाता धोखा दिया जाता है की असलियत कभी क्यों नहीं खोलते। बैसाखियों पर चलने वाले अपाहिज लोग हैं , और ये भी कहां ईमानदार हैं। खबर किसे कहते हैं , पत्रकारिता क्या होती है , नहीं जानते। खुद को सब से ऊपर मानते हैं। इक शब्द लोग भूल गए हैं पीत पत्रकारिता। आज का मीडिया टीवी अख़बार सब पीलिया रोग से पीड़ित हैं। सच बोलते नहीं हैं झूठ को सच साबित कर बेचते हैं। और विचारों को अभिव्यक्त करने की आज़ादी इनको केवल अपने लिए ज़रूरी लगती है , बाकी कोई बोले तो हंगामा खड़ा हो जाता है। 

 

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