मुझ में ज़िंदा हैं जे पी ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
कोई किसी की मूर्ति कोई किसी की तस्वीर कोई किसी की कोई निशानी दीवार पर सजा कर रखता है। कोई किसी के नाम पर कुछ बनवाता है , कोई किसी की याद में ताज बनवाता है। मैं शायद पहली बार गया था उनको सुनने को 42 साल पहले रामलीला मैदान दिल्ली में और बस उसी दिन मैंने इक मकसद बना लिया था , मेरा जन्म उसी जगह उसी दिन हुआ था। आज वो जननायक जयप्रकाश नारायण किसी को याद तक नहीं है मगर मैंने उसे अपने दिल में ज़िंदा रखा हुआ है। आज उन्हीं के नाम पर मैंने इक फेसबुक बनाई है जो किसी को नकली लग सकती है , मगर मुझे नहीं। क्योंकि मुझ में मेरा अपना कुछ शायद नहीं ज़िंदा मगर जे पी अभी भी मुझ में जीवित हैं। अधिकतर लोगों को सोशल मीडिया मनोरंजन करने से अपने स्वार्थ सिद्ध करने तक की जगह लगता है , मुझे वहीं अपने विचार सांझा करने हैं। ये जानते हुए भी कि अब किसी को फुर्सत ही नहीं और की बात सुनने की। फेसबुक व्हाट्सएप्प पर सब अपना अपना ज्ञान बांट रहे हैं , मैं ज्ञानीपुरुष नहीं कोई। केवल चिंतन करता हूं हर दिन और देखता रहता देश की समाज की हालत को। पता नहीं क्यों उस को देख कर मुझे अचरज होता है कैसे लोग आस पास ये सब देख कर अपने मनोरंजन और कई तरह के काम करते हैं अपनी ख़ुशी की खातिर। आप ऐसे समाज में रहते हैं जहां हर तरफ हाहाकार चीख पुकार सुनाई दिखाई देता है लेकिन आप आँखे बंद कर कान पर हथेली रख होंठ सी लेते हैं। मुझ से नहीं हुआ ऐसा कभी भी , मैंने हर दिन इक लड़ाई लड़ी है नफरत स्वार्थ और कायरता की नीतियोँ के साथ। आपको ये मेरा पागपन लगता है तो मुझे अपना पागलपन पसंद है , पागल होना किसी सार्थक मकसद के लिए बुरा नहीं है। मुझे भी निराशा हुई है जब देखा जो कभी सत्ता की मनमानी और तानाशाही के विरुद्ध जे पी जी की जंग में साथी बने वही खुद और भी भृष्ट और अलोकतांत्रिक बन गए। उन लिए संपूर्ण क्रांति कोई मकसद नहीं केवल इक सीढ़ी थी सत्ता हासिल करने की। कितनी विडंबना है इक नेता जिस ने कभी कोई बड़ा पद नहीं स्वीकार किया उसके अनुयायी कहलाने वाले सब कुछ किसी भी तरह हासिल करने को तत्पर हैं। सत्ता ही उनका सब कुछ है। मैं अकेला चलता रहा और चलना भी आखिरी सांस तक उस काम को पूरा करने को। आप भी मेरे साथ चलना चाहोगे , बिना कोई स्वार्थ लिए मन में , देश और समाज की खातिर।
बढ़िया संस्मरणात्मक लेख👌👍
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