अप्रैल 20, 2017

की उसने मेरे कत्ल के बाद कत्ल से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

 की उसने मेरे कत्ल के बाद कत्ल से तौबा (  व्यंग्य )  डॉ लोक सेतिया

  पच्चीस साल बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने माना उन्होंने आपराधिक षड्यंत्र किया था। सत्तर साल उनको समझ आया लाल बत्ती कल्चर सही नहीं है। जो उनको चुनते वो लोग आम और विधायक सांसद मंत्री ख़ास भला क्यों हो सकते हैं। तो अभी तक आप अनुचित करते आये और आज अनुचित करना छोड़ रहे क्या इसको महान कार्य कहोगे। सवाल इतना भर नहीं है , सवाल ये है क्या भविष्य में आप खुद को वी आई पी और ख़ास समझना छोड़ दोगे। मगर इंसाफ की इक अदालत और भी है जहां कोई वकील आपको बचा नहीं सकता है। उस ऊपर वाली अदालत में फैसला देरी से नहीं होता , न ही ऐसा देखा जाता है कि आप अभी किसी संवैधानिक पद पर हैं इसलिए आप पर मुकदमा चल नहीं सकता। हैरानी की बात नहीं है क्या , कोई षड्यंत्रकारी किसी राज्य का राज्यपाल है।  नैतिकता की बात कौन करता है। जब ऊपरी अदालत में फैसला होगा तब भगवान राम भी सवाल करेंगे आपने मेरे नाम पर देश और संविधान की मर्यादा से खिलवाड़ किया और खुद को मेरे भक्त बताते हो। अपनी स्वार्थों की राजनीति में मुझे अपना मोहरा बना दिया किस से पूछ कर। कब किस को मैंने कहा था मेरे लिये कोई मंदिर बनाओ , राम राज्य का अर्थ सब को न्याय और जीने के अधिकार होता है न कि मंदिर बनाना। मुझे महलों से कभी प्यार नहीं रहा इतना तो जानते हो और मैं सत्ता का लालची भी नहीं सब को पता है। ये कैसी अजीब विडंबना है आप अनुचित करना छोड़ते हो या छोड़ने की बात करते हो तब भी ये स्वीकार नहीं करते कि अभी तक आपने जो किया वो गलत किया।

           उस ऊपरी अदालत में सब से हर बात का हिसाब मांगा जायेगा। आप तो डॉक्टर थे आपने अपना कर्तव्य निभाया रोगियों की सहायता करने का या किसी भी तरीके लूट खसूट से धन ऐंठते रहे। आप जो दवा बेचते थे ज़हर बांटते रहे जानबूझकर। और न्यायधीश जी आपको उम्र लग गई इतना तय करने में कि उन्होंने कोई धर्म का कार्य नहीं षड्यंत्र रचा। अभी भी भगवा भेस धारण किये कोई दावा करता है जो किया खुल्ल्म खुल्ला किया सब के सामने। भगवान से छुपकर कोई कुछ नहीं कर सकता , उसको जवाब देना जो किया तेरे नाम पर किया , गुनहगार तुम और कीचड़ के छींटे भगवान के सर पर।

            एक दिन की बात चली है किसी ने एक दिन का अवकाश रखने का सुझाव दिया है , एक दिन उनको भी राजपाठ को छोड़ चिंतन करना चाहिए आपको सत्ता मिली किस उदेश्य के लिए थी और आपने उसे किस स्वार्थ की खातिर उपयोग किया है। सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है , न हाथी है न घोड़ा है वहां पैदल ही जाना है। लाल बत्ती वहां काम नहीं आती न कोई पद किसी का कवच बनता है उसकी अदालत में।

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